सिंधु जल संधि पर सरकार का कड़ा रुख, पीएम मोदी ने कहा- पानी और खून एक साथ नहीं बहेगा

सिंधु जल संधि पर सरकार का कड़ा रुख, पीएम मोदी ने कहा- पानी और खून एक साथ नहीं बहेगा

नई दिल्ली । पाकिस्‍तान के साथ सिंधु जल संधि पर भारत सख्‍ती बरत सकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में नई दिल्ली में सोमवार को सिन्धु जल संधि की समीक्षा के लिए एक उच्चस्तरीय बैठक हुई।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जल संसाधन मंत्रालय के अधिकारियों के साथ बैठक में प्रधानमंत्री ने कहा कि खून और पानी एकसाथ नहीं बह सकते। बताया जा रहा है कि पाकिस्‍तान का पानी रोका जा सकता है। इसके साथ ही एक अन्‍य उपाय के रूप में उसको दिए जाने वाले पानी में कटौती की जा सकती है। चिनाब नदी पर बांध बनाने का काम भी तेज किया जाएगा। यहां पर पाकुल दुल, सवालकोट और बुरसर बांध बनाए जाने हैं।

रिपोर्ट्स के अनुसार तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्‍ट पर भारत फिर से विचार करेगा। इस पर साल 2007 में काम रोक दिया गया था। सिंधु जल संधि के तहत भारत पश्चिमी नदियों से 18 हजार मेगावॉट ऊर्जा का इस्‍तेमाल करेगा। इन नदियों पर भारत के अधिकारों के लिए अंतर मंत्रालयी टास्‍क फॉर्स गठित की जाएगी।

बैठक में विदेश सचिव एस जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव नृपेन्द्र मिश्रा शामिल हुए। यह समीक्षा बैठक 18 भारतीय सैनिकों की जान लेने वाले उरी आतंकी हमले का पाकिस्तान को मुनासिब जवाब देने के विकल्पों पर विचार के सिलसिले में बुलाई गई है।

भारत में यह मांग लगातार बढ़ रही है कि आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए भारत सिंधु नदी के पानी के बंटवारे से जुड़े इस समझौते को तोड़ दे।

सिंधु जल समझौते पर सितंबर 1960 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किये थे। इस समझौते के तहत छह नदियों, व्यास, रावी, सतलज, सिंधु, चिनाब और झेलम के पानी को दोनों देशों के बीच बांटा गया था। पाकिस्तान की यह शिकायत रही है कि उसे पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा और इसके लिए वह एक दो बार अन्तरराष्ट्रीय मध्यस्थता के लिए भी जा चुका है।

प्रधानमंत्री ने पांच दशक पुराने भारत-पाकिस्तान के बीच हुए सिन्धु जल समझौते की समीक्षा की। इस दौरान विभिन्न मंत्रालयों के अधिकारियों ने प्रधानमंत्री को जल समझौते के बारे में विस्तृत जानकारी दी। जम्मू कश्मीर के उप मुख्यमंत्री निर्मल सिंह ने पिछले सप्ताह कहा था कि 1960 में किये गये इस समझौते के बारे में सरकार का जो भी फैसला होगा उनका राज्य इसका पूरा समर्थन करेगा।

सिंह ने कहा था, ‘‘इस संधि के कारण जम्मू कश्मीर को बहुत नुकसान हुआ है।’’ क्योंकि राज्य इन नदियों, विशेष रूप से जम्मू की चिनाब के पानी का कृषि अथवा अन्य जरूरतों के लिए पूरा उपयोग नहीं कर पाता है। उन्होंने कहा था, ‘‘केन्द्र सरकार सिंधु जल संधि के बारे में जो भी फैसला करेगी, राज्य सरकार उसका पूरा समर्थन करेगी।’’

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TeamDigital