सतत विकास लक्ष्य और मानक शिक्षा

ब्यूरो (फौजिया रहमान खान, हैदर गंज, कड़ाह,नालंदा, बिहार)। दुनिया के विकासशील देशों में प्राथमिक शिक्षा की स्थिति यह है कि 91% बच्चे स्कूलों तक पहुंच गए हैं, मगर 57 मिलियन –(पांच करोड़ सत्तर लाख) बच्चे अभी भी स्कूल और शिक्षा से दूर हैं। इनमें अफ्रीकी देशों के बच्चों की संख्या सबसे अधिक है। अमीरों की तुलना में गरीबों के बच्चे अधिक संख्या में स्कूल से बाहर हैं।
लेकिन हमारे देश के लिए यह अच्छी बात है कि प्रारंभिक शिक्षा के मामले में विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, प्राथमिक स्कूल में लड़कियों के नामांकन और समापन दर में सुधार हुआ है, प्राथमिक शिक्षा में प्रवेश का अनुपात (दोनों लिंगों के लिए) 88% वर्ष (2013-14) के बीच रहा है।
दुनिया भर के 195 में से, 193 देशों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में ये लक्ष्य तय किया है कि 2030 तक स्थायी विकास के 17 लक्ष्यों को प्राप्त कर लेंगे जिसमें मानक शिक्षा चौथे स्थान पर है। इस संबंध में हमारे देश ने भी अपना विवरण देते हुए यह वादा किया है कि “हम इस बात को सुनिश्चित करेंगे कि सभी को मानक शिक्षा और आजीवन सीखने के भरपूर अवसर प्रदान किए जाएंगे” इसकी पूर्ति के लिए भारत सरकार ने मिनिस्ट्री ऑफ एच-आर-डी (मानव विकास मंत्रालय) को जिम्मेदारी दी है। इस जिम्मेदारी को स्वीकारते हुए मिनिस्ट्री ऑफ एच आर-डी ने पांच योजनाओं का ऐलान किया है।
(1) राष्ट्रीय शिक्षा मिशन (2) कला संस्कृति विकास योजना (3) नेशनल स्कीम ऑफ इनसेंटिव टू गर्ल्स फॉर सेकेन्ड्री एजुकेशन (4)स्कॉलरशीप फॉर कॉलेज एण्ड यूनिवर्सिटी स्टूडेंट (5) नेशनल फेलोशीप एण्ड स्कॉलरशीप फॉर हाइयर एजुकेशन ऑफ एसटी स्टूडेंट।
उपरोक्त योजनाओं का उद्देश्य और लक्ष्य बताते हुए भारत सरकार के संस्थान नीति आयोग की वेबसाइट के अनुसार (क) वर्ष 2030 तक हम सभी लड़कों और लड़कियों को पूर्ण मुक्त, समानता और गुणवत्ता के साथ प्राथमिक और माध्यमिक, प्रभावी शिक्षा उपलब्ध करवाएंगे (ख) सभी लड़के और लड़कियों को बचपन के विकास, देखभाल और पूर्व-प्राथमिक शिक्षा तक पहुंच हो, ताकि वे प्राथमिक शिक्षा के लिए तैयार हो सकें। (ग) सभी महिलाओं और पुरुषों के समीकरण को सुनिश्चित कर सस्ती और मानक तकनीकी, व्यावसायिक सहित विश्वविद्यालय की शिक्षा उपलब्ध करवाना। (घ) सभी जानने वालों को स्थायी बढ़ावा देने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल, दूसरों के बीच शिक्षा के ज़रिए सतत विकास और स्थायी जीवनशैली, मानव अधिकार, लिंग समानता, संस्कृति विकास, शांति और गैर-विकास आदि।
लेकिन धरातल स्थिति को जानन भी आवश्यक है। इस संबध में बिहार के जिला मुजफ्फरपुर से चरखा फीचर्स के ग्रामीण लेखक अमरीतांज इंदिवर अपने स्कूल के अनुभव की रौशनी में कहते हैं कि “मुजफ्फरपुर जिले के मोतीपुर ब्लॉक के तहत बुरहानपुरा के मीडील स्कूल में बच्चों की छात्रवृत्ति में 200 रुपए और साइकिल योजना में 500 रुपये का हेर फेर हुआ, तो सैकड़ों छात्र-छात्राओं ने हंगामा मचा दिया, अंत में पुलिस को बुलाना पड़ा, तब छात्रवृत्ति वितरण किया गया। सरनियाँ ब्लॉक गोपालपुर न्यूरा के मीडील स्कूल के आसपास की महिलाओं ने डंडे से स्कूल के शिक्षकों पर हमला बोल दिया। किसी तरह शिक्षकों ने स्कूल के कमरों में छुप कर अपनी जान बचाई। पारो ब्लॉक के कई स्कूलों में शिक्षकों के साथ गाली गलौज, मारपीट और बूरा व्यवहार किया गया, चाँद केवाड़ी स्कूल में खिचड़ी बनाने को लेकर स्कूल शिक्षा समिति के सचिव, अध्यक्ष और कुछ नेता बनने का शौक रखने वालों ने ताला लगा दिया। जिससे पढ़ाई प्रभावित हुई।
नालंदा जिले के एक स्कूल की छात्राओं ने साइकिल राशि के लिए अपने शिक्षक की जमकर पिटाई की, कई जगह गोली चली तो कई जगह स्कूल फर्नीचर को आग के हवाले कर दिया गया।”
जिला नालंदा के प्रसिद्ध शहर राजगीर के गांव से संबंध रखने वाले राजेश कुमार कहते हैं कि “मैं एक किसान हूं, नोट बंदी ने हमारी कमर पहले ही तोड़ दी है जबकि शिक्षा का हाल यह है कि यदि पंचायत चुनाव में मैं अपने पसंद के नेता को वोट देता हूं तो इसका बदला हमारे बच्चों से स्कूल में ये कह कर लिया जाता है कि तुम्हारे पिता ने हमारे भाई को वोट नहीं दिया है, इसलिए स्कूल से भाग जाओ, हम कोई नौकर नहीं है, जो अपने दुश्मन के बच्चों को पढ़ाएंगे। बताइए ये वो कह रहा है जिसके हाथों में सरकार नें हमारे बच्चों का भविष्य रख दिया है । मैं आपसे क्या बताउं, बिहार सरकार ने ये अच्छा नही किया कि जाहिलों को शिक्षक बना कर हमारे सिर पर बैठा दिया है”।
नवादा जिले के हिसवा से संबंध रखने वाले संस्कृत के शिक्षक भरत सिंह कहते हैं “आजकल अंग्रेजी शिक्षा ने हमारी सभ्यता और संस्कृति को धूल में मिला दिया है, अंग्रेजी पढ़ पढ़कर लड़के- लड़कियां खराब हो रहे हैं, संस्कृत में कोई भी प्रवेश नहीं लेना चाहता है, जबकि संस्कृत में सब कुछ है, मान सम्मान, छोटे बड़ों का विचार, लेकिन नौकरी नहीं है इसलिए लोग इससे दूर हो रहे हैं, खुद मुझे देखिए चालीस साल बाद किसी तरह भगवान की कृपा से नौकरी मिली है।”
बिहार शरिफ की निकहत प्रवीन स्कूल टिचर हैं, कहती है,” आजकल लड़कियों को जरुर पढ़ाई करनी चाहिए और नौकरी भी क्योंकि नौकरी के बाद आप में आत्मविश्वास आता है, वह किसी की मोहताज नहीं होती, अपने आप को किसी पर बोझ नहीं समझती, बल्कि नौकरी के बाद एक महिला खुद को दूसरों का सहारा बनाती है। बेचारगी वाली मानसिकता से ऊपर उठ चुकी होती है। इसलिए मैंने फैसला किया है कि जो भी हो, मैं अपनी पढ़ाई और काम दोनों जारी रखूंगी। ताकि और लड़कियों को भी बेहतर शिक्षा देने में उनकी सहायता कर सकूं”।
जिला नवादा के भदोनी से संबंध रखने वाले सिविल सर्विस की तैयारी में व्यस्त गुलाम सर्वर कहते हैं कि “दरअसल शिक्षा ही हमारी सफलता की गारंटी है, लेकिन बिहार में प्राथमिक शिक्षा कमजोर होने की वजह से उच्च शिक्षा में विशेष कर कम्पटीशन में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है, उदाहरण मैं खुद ही हूँ, अगर मेरी अंग्रेजी अच्छी होती तो आज कहीं नौकरी कर रहा होता, मेरा हिसाब, जनरल नॉलेज और सारे विषय अच्छे हैं केवल अंग्रेजी में परेशानी होती है जो साक्षात्कार में विफलता का कारण हैं। इसलिए, बुनियादी शिक्षा को उच्च शिक्षा के आधार के रूप में देखा जाना चाहिए और इसके लिए, सरकार, अभिभावक,तथा छात्रों सबको मिलकर सकारात्मक रुप में काम करने की आवश्यकता है।”
अंग्रेजी भाषा में गया कॉलेज, गया से एम.ए कर चुके रणजीत सिंह कहते हैं कि “लोग कहते हैं कि उच्च शिक्षा प्राप्त करो, लेकिन जब उच्च शिक्षा का सपना अपनी आँखों में सजाकर कॉलेज और यूनिवर्सिटी तक जाते हैं तो निराशा होती है। शिक्षा और स्वास्थ्य से खिलवाड़ किया जा रहा है। बुनियादी शिक्षा का उद्देश्य हमारे देश में कठिन दिख रहा है ,क्योंकि खुद केंद्र सरकार ही उच्च शिक्षा से लोगों को रोकना चाहती है इसलिए पहले नेट की परीक्षा का शुल्क बढ़ाया जाता है और जो साल में दो बार हुआ करता था अब केवल एक बार कर दिया गया है। पहले बिना नेट के पी.एच.डी में दाखिला मिल जाता था लेकिन अब नेट पास करना अनिवार्य है”।
इसमें कोई संदेह नहीं कि 2030 का लक्ष्य बहुत ही उत्तम है और इसे पाने के लिए हर संभव कोशिश भी की जानी चाहिए, लेकिन यह काम केवल सरकार और शिक्षा विभाग के चाहने से ही लक्ष्य तक नही पहुंच पाएगा, आवश्यक है कि शिक्षक, छात्र- छात्रों और अभिभावकों को भी अपने हिस्से का काम करना होगा ताकि अपने देश द्वारा किए गए वादे को लक्ष्य तक पहुंचाया जा सके और जब कुछ वर्षों बाद 2030 में फिर से दुनिया भर के 193 देश सिर जोड़ कर अपने लक्ष्य का विश्लेषण करें तो हमारे देश के प्रतिनिधियों का सिर गर्व से उंचा हो और वह गर्व से शिक्षा के क्षेत्र में अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन को दुनिया के सामने प्रस्तुत कर विश्व के नेताओं से प्रशंसा पा सकें।
(चरखा फीचर्स)