संत कबीर की नगरी में भी इतिहास को लेकर झूठ बोल गए पीएम मोदी?

लखनऊ। संत कबीर के 620वें प्राकट्य दिवस के मौके पर मगहर पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संत कबीर की समाधि पर चादर चढाई, उसके बाद एक जनसभा को भी सम्बोधित किया था।
जनसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो कुछ कहा उसमे से कुछ अंश इतिहास से बेमेल साबित हो रहे हैं। इतिहास को लेकर प्रधानमंत्री द्वारा रखे गए तथ्यों पर एक बार फिर सवाल उठ रहे हैं।
इससे पहले भी पीएम मोदी द्वारा दिए गए अलग अलग भाषणों में इतिहास को लेकर कही गयी बातें और उनके दावे इतिहासकारो ने ख़ारिज कर दिए हैं। यहाँ अहम सवाल उठता है कि आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों में इतिहास का समावेश करने वाले कौन लोग हैं ? जो इतिहास का अध्यन किये बिना ही इतिहास से उठाकर मनगढ़ंत उदाहरण जोड़ देते हैं।
आज पीएम मोदी ने अपने भाषण में कबीर, गुरुनानक और बाबा गोरखनाथ को लेकर जो बात कही वही ऐतिहासिक दृष्टि से मनगढ़ंत और झूठी साबित हो रही है।
पीएम मोदी ने अपने भाषण में आज कहा कि “समाज को सदियों से दिशा दे रहे मार्गदर्शक, समभाव और समरसता के प्रतिबिम्ब महात्मा कबीर को उनकी ही निर्वाण भूमि से एक बार फिर मैं उन्हें कोटि-कोटि नमन करता हूं। ऐसा कहते हैं कि यहीं पर संत कबीर, गुरु नानकदेव और बाबा गोरखनाथ ने एक साथ बैठकर आध्यात्मिक चर्चा की थी।”
लेकिन पीएम मोदी ने जो कहा वह इतिहास में फिर नहीं बैठता क्यों कि उन्होंने जिन तीन महापुरुषों के एक साथ बैठकर चर्चा करने की बात कही, वह तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है, क्योंकि तीनों के काल अलग अलग हैं।
बाबा गोरखनाथ का जीवनकाल, संत कबीर और गुरु नानक से बहुत पहले का है। बाबा गोरखनाथ का जन्म 11वीं शताब्दी में हुआ था। जबकि 120 साल जीवित रहने वाले संत कबीर का जन्म 14वीं शताब्दी (1398 से 1518) के आखिर में हुआ था।
गुरु नानक का काल 15वीं शताब्दी से 16वीं शताब्दी (1469-1539) के बीच का है। एक ही दौर में होने की वजह से गुरु नानक और संत कबीर की मुलाकात की बात तो समझ में आती है, लेकिन इन दोनों महापुरुषों से 200 साल पहले गोरखनाथ की आध्यात्मिक चर्चा समझ से परे है।