शरीयत से छेड़छाड़ मंजूर नही, विधि आयोग की प्रश्नावली का बहिष्कार करेंगे मुस्लिम संगठन
नई दिल्ली । तीन तलाक के मुद्दे पर एकजुट मुस्लिम संगठनों ने विधि आयोग की प्रश्नावली का बहिष्कार करने का फैसला लिया है । पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव वली रहमानी, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी, आॅल इंडिया मिल्ली काउंसिल के प्रमुख मंजूर आलम, जमात-ए-इस्लामी हिंद के पदाधिकारी मोहम्मद जफर, आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य कमाल फारूकी और कुछ अन्य संगठनों के पदाधिकारियों ने तीन तलाक और समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर सरकार को घेरा।
एक साथ तीन तलाक के मुद्दे पर सरकार के रुख को खारिज करते हुए इन संगठनों ने दावा किया कि उनके समुदाय में अन्य समुदायों की तुलना में, खासतौर पर हिंदू समुदाय की तुलना में तलाक के मामले कहीं कम हैं।
जमीयत प्रमुख अरशद मदनी ने कहा कि देश के सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं। सीमा पर तनाव है। निर्दोष लोगों की हत्याएं हो रही हैं। सरकार को समान नागरिक संहिता पर लोगों की राय लेने की बजाय, इन चुनौतियों पर ध्यान देना चाहिए।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव रहमानी ने कहा कि सरकार अपनी नाकामियों से लोगों का ध्यान हटाने की कोशिश में है। उन्हें यह कहना पड़ रहा है कि वह इस समुदाय के खिलाफ युद्ध छेड़ना चाहती है। बोर्ड उसकी कोशिश का पुरजोर विरोध करेगा। बोर्ड के पदाधिकारियों ने यह माना कि पर्सनल लॉ में कुछ ‘खामियां’ हैं और उनको दूर किया जा रहा है।
बोर्ड की महिला सदस्य असमा जेहरा ने कहा कि पर्सनल लॉ में किसी सुधार की जरूरत नहीं है। एक साथ तीन तलाक कोई बड़ा मुद्दा नहीं है और समान नागरिक संहिता थोपने की दिशा में सरकार का कदम लोगों की धार्मिक आजादी को छीनना है। यही वजह है कि वे लोग संघर्ष कर रहे हैं।
मुस्लिम संगठनों का कहना है कि वह मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड को लेकर विभिन्न अदालतों में चल रहे मुकदमों को लेकर कानून के विशेषज्ञों की सलाह लेगी। बोर्ड का कहना है कि शरीयत में एक शब्द का भी बदलाव नहीं हो सकता है। बोर्ड का कहना है कि वह देशभर में मुसलिम हकों को लेकर आंदोलन छेड़ेगी और उनका समर्थन जुटाएगी।
केंद्र सरकार और लॉ कमीशन को मानना होगा कि मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड देशभर के मुसलमानों की आवाज है और वह अपने निजी कानूनों में किसी भी तरह की दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं करेगा। बोर्ड ने देशभर के मुसलमानों से लॉ कमीशन की किसी भी प्रश्नावली में शामिल नहीं होने की अपील भी की है।
गौरतलब है कि विधि आयोग ने सात अक्तूबर को जनता से राय मांगी थी कि क्या तीन तलाक की प्रथा को खत्म किया जाए और देश में समान नागरिक संहिता लागू की जाए।