विकास के नारे लगाने से नहीं बेहतर होगी न्याय व्यवस्था : चीफ जस्टिस
नई दिल्ली । भारत के मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने रविवार को देश में जजों की संख्या बढ़ाने की तत्काल जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि ”हम भले विदेशी प्रत्यक्ष निवेश मंगाते रहे और विकास के नारे लगाते रहें” मगर यह जरूरी है कि इस विकास से पैदा होने वाले विवादों से निपटने के लिए न्यायिक तंत्र को भी बेहतर बनाया जाए।
बिलासपुर हाई कोर्ट में छत्तीसढ़ के न्यायिक अधिकारियों की पहली कॉन्फ्रेंस में जस्टिस ठाकुर ने कहा, ”आज, देश में सिर्फ 18,000 जज हैं और निचली अदालतों में 3 करोड़ मामलों का विशाल बैकलॉग है। मैं इस बारे में सार्वजनिक मंचों पर, प्रधानमंत्री की मौजूदगी में बात करता रहा हूं। और इस बारे में भावुक अपील भी की कि यह भारतीय न्याय व्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती है।
न सिर्फ न्यायपालिका, बल्कि पूरे देश को भुगतना पड़ेगा क्योंकि हम भले ही विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को निमंत्रण देते रहें, हम भले ही नारे लगाते रहें कि देश विकसित हो रहा है मगर न्यायिक व्यवस्था को भी इस विकास से पैदा होने वाले विवादों से निपटने के लिए बेहतर बनाने की जरूरत है।”
जजों की जरूरत पर विस्तार से बोलते हुए, जस्टिस ठाकुर ने कहा, ”देश में प्रति व्यक्ति मुकदमेबाजी साक्षरता और समृद्धि पर निर्भर करती है, खासतौर से साक्षरता पर… इसलिए जनता अपने अधिकारों को लेकर जितनी जागरूक होगी, अदालतों में मुकदमेबाजी उतनी ही बढ़ जाएगी। जैसे सारक्षता बढ़ रही है, समृद्धि बढ़ती है तो अदालताें में जा सकने की लोगों की क्षमता में भी इजाफा होगा।” चीफ जस्टिस ने कहा कि 1987 में ही, विधि आयोग ने न्यायिक व्यवस्था में 40,000 जजों को शामिल करने की सिफारिश की थी।
उन्होंने कहा, ”भारत सरकार को बताया गया था कि इस देश में न्याय तक पहुंच को हकीकत बनाने के लिए कम से कम 40,000 जजों की जरूरत पड़ेगी। 30 साल बाद भी, 40,000 तक पहुंचने की बजाय हम 18,000 तक गिर गए हैं।”
उन्होंने कहा, ”देश में जजों की जरूरी संख्या तय करने के लिए कई तरीके हैं। एक है जज-जनसंख्या अनुपात। अमेरिका में, हर 10 लाख व्यक्तियों पर 150 जज हैं। भारत में प्रति 10 लाख व्यक्तियों पर सिर्फ 12 जज हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने कुछ फैसलों में कहा भी है कि इस अनुपात को पहली बार में ही 12 प्रति 10 लाख से बढ़ाकर 50 प्रति 10 लाख किया जाए। अदालत ने कहा कि इसे तुरंत नहीं, मगर पांच साल के समयांतराल में किया जाए। वे पांच साल अब जा चुके हैं, और पांच साल गुजर रहे हैं। हम अभी तक इस अनुपात को 12 जज प्रति 10 लाख व्यक्ति से ऊपर नहीं ले जा सके हैं। हम वहीं खड़े हैं।”