वरिष्ठ साहित्यकार ने कहा ‘राष्ट्रवाद मूर्खता की निशानी, हम तानाशाही के दौर से गुजर रहे हैं’

देहरादून। देश के वरिष्ठतम साहित्यकारों में से एक नयनतारा सहगल ने कहा है कि राष्ट्रवाद का मुद्दा अप्रासंगिक है और मूर्खता की निशानी है। देहरादून में आयोजित साहित्य महोत्सव ‘डब्ल्यूआईसी इंडिया देहरादून कम्यूनिटी लिटरेचर फेस्टिवल’ के आखिरी दिन सहगल ने कहा, “राष्ट्रवाद मूर्खता की निशानी है।

उन्होंने कहा कि जो देश 70 वर्षो से एक आजाद देश है, उसमें अचानक राष्ट्रवाद का नारा लगाने की जरूरत नहीं है। आज सत्ता में बैठे हुए जो लोग राष्ट्रवाद का नारा लगा रहे हैं, वे देश की आजादी के आंदोलन में कहीं नहीं थे। तब वे अपने बिस्तरों में आराम से सो रहे थे। तो अब वे किस चीज के लिए शोर मचा रहे हैं।”

समारोह के दौरान ‘डिजिटल भारत में राष्ट्रवाद’ विषय पर आधारित सत्र के दौरान प्रतिष्ठित लेखिका ने ये बातें कहीं। इस सत्र में चर्चा में शामिल अन्य प्रख्यात साहित्यकारों में किरन नागरकर, नंदिता हक्सर और हर्ष मंदर शामिल थे। महिला पत्रकार राणा अय्यूब ने इस सत्र का संचालन किया।

सहगल ने कहा, “सत्तारूढ़ दल चाहता है कि सभी उनकी विचारधारा, उनकी हिंदुत्व की विचारधारा- वह भी उनकी परिभाषा के आधार पर – से सहमति जताएं। और जो कोई भी उनका विरोध करेगा उसे कुछ भी हासिल नहीं हो सकेगा।” उन्होंने कहा, “हम तानाशाही के दौर से गुजर रहे हैं। मुस्लिम और अन्य अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है।” बता दें कि नयनतारा सहगल देश में असहिष्णुता के मुद्दे पर अन्य साहित्यकारों के साथ अवार्ड वापसी अभियान में शामिल रहीं थीं ।

सहगल ने मौजूद दर्शकों के सामने वह पूरा वाकया बयान किया, जिसके चलते दो साल पहले उन्होंने साहित्य अकादमी अवार्ड वापस करने का फैसला किया था। सहगल ने कहा कि तीन तार्किक विचारकों एवं लेखकों की हत्या से उन्हें गहरा सदमा लगा था, लेकिन साहित्य अकादमी की चुप्पी ने भीतर तक परेशान कर दिया, जिसके कारण उन्होंने अवार्ड वापस कर अपना विरोध जताया।

सहगल ने मौजूद दर्शकों के सामने वह पूरा वाकया बयान किया, जिसके चलते दो साल पहले उन्होंने साहित्य अकादमी अवार्ड वापस करने का फैसला किया था। सहगल ने कहा कि तीन तार्किक विचारकों एवं लेखकों की हत्या से उन्हें गहरा सदमा लगा था, लेकिन साहित्य अकादमी की चुप्पी ने भीतर तक परेशान कर दिया, जिसके कारण उन्होंने अवार्ड वापस कर अपना विरोध जताया।

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