राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के ज़रिये अल्पसंख्यक संस्थानों में घुसपैठ बना रहा संघ
ब्यूरो (राजा ज़ैद खान) । राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) अपने माइनोरिटी विंग के ज़रिये अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों में घुसपैठ बना रहा है । इन शिक्षण संस्थानों में माइनोरिटी स्टेटस मांग रही दो यूनिवर्सिटी भी शामिल हैं । राष्ट्रवादी मुसलमानो के नाम पर जमा किये जा रहे मुसलमानो को संघ अपने मोहरों के रूप में इस्तेमाल करना चाहता है ।
राष्ट्रीय स्तर , राज्य स्तर के बाद शहरो में राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के नाम से संघ अपने माइनोरिटी विंग का विस्तार कर रहा है । मुस्लिम लोगों को संगठन से जोड़ते समय संघ के लोग परदे के पीछे ही रहते हैं , एक अंजान आम मुसलमान इसे मुसलमानो का एक और संगठन समझकर इसमें शामिल हो जाता है । ऐसे सबूत मिले हैं कि अब संघ इस संगठन की जड़ें अल्पसंख्यक स्वरूप वाले शिक्षण संस्थानों में जमाने में जुट गया है ।
सूत्रों के अनुसार अल्पसंख्यक मैनेजमेंट वाले शिक्षण संस्थानों में संगठन की जड़ें जमाने के पीछे संघ के दो बड़े मकसद हैं , पहला शिक्षकों में गुटबंदी पैदा करना और दूसरा छात्र कल्याण के नाम पर समितियां गठित कर छात्रों को संघ से जोड़ना । सूत्र बताते हैं कि माइनोरिटी कैरेकटर की मांग कर रहे संस्थानों में गुटबंदी पैदा कर संघ संस्थानों की कोशिशों को कमज़ोर करना चाहता है वही एक बड़ा मकसद यह भी है कि संघ चाहता है कि माइनोरिटी कैरेकटर की मांग को लेकर विश्वविद्यालय मैनेजमेंट , शिक्षक और छात्र एकजुट न होने पाएं ।
संघ के इरादों का खुलासा उस वक़्त हुआ जब पिछले दिनों एक अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान में बीफ परोसे जाने की अफवाह उड़ाई गई । हालाँकि विश्वविद्यालय मैनेजमेंट के तुरंत हरकत में आने से संघ अपने इरादों में सफल नहीं हो सका लेकिन इस मामले में जिस तरह भाजपा नेताओं ने अपनी घुसपैठ बनाने की कोशिश की उससे साफ़ ज़ाहिर होगया कि यह सब किसी के आदेश पर हो रहा है ।
वहीँ एक अल्पसंख्यक स्वरूप वाली यूनिवर्सिटी में छात्रों के एक गुट ने रोहित वेमुला आत्महत्या मामले में एचआरडी मिनिस्टर स्मृति ईरानी के खिलाफ प्रदर्शन किया वहीँ दूसरे गुट ने स्मृति ईरानी के कार्यो को सराहा । यह शायद इतिहास में पहली बार ही हुआ होगा कि माइनोरिटी स्वरुप वाले इस विश्वविद्यालय में भाजपा, नरेंद्र मोदी और स्मृति ईरानी के पक्ष में नारे लगे हों ।
सूत्रों के अनुसार संघ चाहता था कि माइनोरिटी स्वरूप वाले संस्थानों में हिन्दू छात्रों की संख्या में बढ़ोत्तरी करके अपना नियंत्रण बनाए लेकिन माइनोरिटी संस्थानों में मुस्लिम छात्र छात्राओं की तादाद अधिक होने के कारण संघ को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी और अंत में यह फैसला हुआ कि संघ अपने एजेंडे को अमल में लाने के लिए मुस्लिम मंच में शामिल मुसलमानो का इस्तेमाल करेगा ।