राष्ट्रपति का राष्ट्र के नाम सन्देश: भारत की आत्‍मा बहुवाद और सहिष्‍णुता में बसती है

राष्ट्रपति का राष्ट्र के नाम सन्देश: भारत की आत्‍मा बहुवाद और सहिष्‍णुता में बसती है

नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने आखिरी संबोधन में कहा है कि भारत की आत्मा, बहुलवाद और सहिष्णुता में बसती है। भारत सिर्फ एक भौगोलिक सत्ता नहीं है। इसमें विचार, दर्शन, बौद्धिकता, शिल्प, नवान्वेषण और अनुभव का इतिहास है। संस्कृति, पंथ और भाषा की विविधता भारत को विशेष बनाती है।

राष्ट्रपति के पद से मुक्त होने की पूर्व संध्या पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए देश में बढ़ती हिंसा पर चिंता जताई। उन्होंने कहा, सहृदयता और समानुभूति की क्षमता हमारी सभ्यता की सच्ची नींव है। आसपास होने वाली हिंसा का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, हमें जन-संवाद को शारीरिक और मौखिक, सभी तरह की हिंसा से मुक्त करना होगा।

राष्ट्रपति ने कहा कि एक अहिंसक समाज ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया में लोगों के सभी वर्गों, विशेषकर पिछड़ों और वंचितों की भागीदारी सुनिश्चित कर सकता है। हमें एक सहानुभूतिपूर्ण और जिम्मेदार समाज के निर्माण के लिए अहिंसा की शक्ति को पुनर्जागृत करना होगा। राष्ट्रपति के तौर पर अपने आखिरी संदेश में प्रणब ने राष्ट्रपति के तौर पर किए कार्यों का भी जिक्र किया।

अपनी उम्र की तरफ इशारा करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, उसकी उपदेश देने की प्रवृति बढ़ती जाती है। पर मेरे पास कोई उपदेश नहीं है। उन्होंने कहा, पचास साल के सार्वजनिक जीवन के दौरान भारत का संविधान मेरा पवित्र ग्रंथ रहा और संसद मेरा मंदिर। हमेशा देश के लोगों की सेवा करने की अभिलाषा रही। राष्ट्रपति के तौर पर भी इसे निभाया।

नव निर्वाचित राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को बधाई देते हुए प्रणब ने कहा कि मैं भावी राष्ट्रपति का हार्दिक स्वागत करता हूं और उन्हें आने वाले वर्षों में सफलता और खुशहाली की शुभकामनाएं देता हूं।

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TeamDigital