राफेल डील मामले में सुप्रीमकोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला
नई दिल्ली। राफेल डील में कथित अनियमितताओं को लेकर सुप्रीमकोर्ट में दायर की गयी याचिकाओं को लेकर सुप्रीमकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा है। राफेल डील को लेकर कोर्ट में करीब चार घंटे तक बहस चली। सरकार और याचिकाकर्ताओं ने अपनी अपनी दलीलें रखीं। कोर्ट ने भी कई सवाल किए।
दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एस के कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने बुधवार को सुनवाई की। भाजपा नेता यशवंत सिन्हा और अरूण शौरी, आम आदमी पार्टी नेता संजय सिंह, सीनियर एडवोकेट एम एल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
बहस के दौरान अटॉनी जनरल ने कहा कि यह मामला इतना गोपनीय है कि सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया गया सीलबंद लिफाफा मैंने भी नहीं देखा है।
इस पर कोर्ट ने कहा कि राफेल लड़ाकू विमानों की कीमत पर कोई भी चर्चा तभी हो सकती है जब तथ्यों को सार्वजनिक पटल पर आने की अनुमति दी जाएगी। हमें इस बात पर फैसला करने की जरूरत है कि कीमतों का ब्यौरा सार्वजनिक किया जाए या नहीं।
सुनवाई शुरू होते ही प्रशांत भूषण ने कहा कि एनडीए सरकार ने ये विमान खरीदने की प्रक्रिया के तहत निविदा आमंत्रित करने की प्रक्रिया से बचने के लिये अंतर-सरकार समझौते का रास्ता अपनाया।
उन्होंने कहा कि राफेल की कीमत का खुलासा करते समय सरकार ने संसद में कोई गोपनीयता का मुद्दा नहीं उठाया। यह सिर्फ कहने के लिए एक फर्जी तर्क है कि वे मूल्य निर्धारण का खुलासा नहीं कर सकते। नए सौदे में राफले जेट्स को पहले सौदे की तुलना में 40 फीसदी अधिक कीमत पर खरीदा गया है। सौदे में फ्रांस सरकार की तरफ से कोई सॉवरेन गारंटी नहीं दी गई थी। वहीं, अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपालन ने कहा कि सौदे में कीमत गोपनीय क्लॉज है जिसे नहीं बताया जा सकता।
राफेल मामले पर सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने प्रशांत भूषण से कहा कि हम आपको पूरी सुनवाई का मौका दे रहे हैं। इसका सावधानीपूर्वक इस्तेमाल कीजिये, केवल जरूरी चीजों को ही कहिये । सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दस्तावेजों को रिकॉर्ड में लेने से मना किया, जिसे पूर्व केंद्रीय मंत्री अरूण शौरी कोर्ट के समक्ष रखना चाहते थे।
एडवोकेट प्रशांत भूषण ने रक्षा खरीद प्रक्रिया का जिक्र करते हुए कहा कि भारतीय वायु सेना को 126 लड़ाकू विमानों की आवश्यकता थी और उसने इनके लिये रक्षा खरीद परिषद को सूचित किया था। शुरू में छह विदेशी कंपनियों ने आवेदन किया था परंतु शुरूआती प्रक्रिया के दौरान दो कंपनियों को ही अंतिम सूची में शामिल किया गया।
उन्होंने कहा कि यह सौदा बाद में फ्रांस की दसाल्ट कंपनी को मिला और सरकार के स्वामित्व वाला हिन्दुस्तान ऐरोनाटिक्स लि इसका हिस्सेदार था। परंतु अचानक ही एक बयान जारी हुआ जिसमें कहा गया कि तकनीक का कोई हस्तांतरण नहीं होगा और सिर्फ 36 विमान ही खरीदे जायेंगे।
भूषण ने कहा कि प्रधान मंत्री द्वारा इस सौदे में किये गये कथित बदलाव के बारे में कोई नहीं जानता। यहां तक कि रक्षा मंत्री को भी इसकी जानकारी नहीं थी।
आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह की तरफ से पेश एडवोकेट ने पीठ से कहा कि 36 लड़ाकू विमान की कीमत सरकार संसद में दो बार सार्वजनिक कर चुकी है। ऐसे में सरकार का यह कहना कि लड़ाकू विमान की कीमत की जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती, यह स्वीकार करने योग्य नहीं है।
केंद्र सरकार ने सोमवार को सीलबंद लिफाफे में राफेल डील की कीमत सुप्रीम कोर्ट को सौंपी है। जबकि राफेल डील के ठेके से जुड़े निर्णय प्रक्रिया के दस्तावेज की एक प्रति याचिकाकर्ताओं को दी गई है।