माफ करना आसिफ़ा बिटिया
ब्यूरो(रंगनाथ द्विवेदी)। आसिफ़ा जैसी मासुम बच्चियो के बलात्कार की लाश;महज़ इस देश के किसी भी लहू-लुहान हिस्से मे नही पाई जाती;बल्कि हमारे पशुता और विभत्सता की पराकाष्ठा के जेरेसाया हमारे देश के उस हिस्से के—संगीन के बीचो-बीच “अपने टपकते लहू से ये प्रश्न लिखती है;
हिन्दुस्तान के नक्शे से ये सवाल पुछती है कि मुझे किस जुर्म की सजा दी गई? —-मेरे वे कौन से अंग विकसित हुये जिसे तक इस हद तक बलात्कार की इच्छा बलवती हुई की मुझ मासूम का बलात्कार कर मार दिया गया?”.
मेरे तो वे यौवनांग भी न दिखे थे;ना ब्रा पहने थी न बड़े व खूबसुरत सुस्पष्ट यौवन उभार थे;मुझ मासुम को फिर क्यूँ इस तरह बेरहमी से नोचा व मारा गया. मै एक मासुम सी बच्ची थी मुझे गोद व वात्सल्य चाहिये था लेकिन मुझे क्या मिला बताओ कि आखिर मुझ जैसी मासुम सी बच्ची का दोष क्या था?.
शायद इन प्रश्नो का उत्तर न ये देश दे पायेगा;न यहा की सियासत और न ही यहॉ की जम्हुरियत दे पायेगी. क्योकि आसिफ़ा जैसी मासुम बच्चियो की लाशे भी इन सियासत दा लोगो को—–” अपने सदन की वे सिढ़ियाँ लगती है जिसे लॉघ इस देश के तमाम घिनौने और घृणित नेता सत्ता सुख की तवायफ़ के अजीमोशान मुज़रे का पुरे पाँच साल तक लुत्फ़ और मज़े लेते है सदन की नम आँखे आशिफ़ा सी तमाम सवालात के साथ खामोश व मौन रहती है”.
ये हमारे देश के वे खुशनसीब लोग है जो मंचो और मजलिसो मे चिंघाड-चिंघाड बेटियो को बचाने और उनके पढ़ाने की बात करते है.लेकिन इन्हि की बिरादरी और बस्ती का कोई भी विधायक;नेता;मंत्री सांसद, उन्नाव सा इस देश को एक दर्द दे अपनी पुरी विश्वसनिय निर्लज्जता का परिचय देता है.ये वे चुनिंदा शैतान है दिनकी आवाभगत थानेदार, SP, DM सभी करते है.
“ये दोयम दरज़े की कमिनगी मैने कईयो कई खाकी और खद्दर वाले मे देखी है”. खासकर इनकी हनक मैने मजलूमो और कमजोरो पर ही अधिक देखि है.सच पुछियो तो इनकी दबंगई किसी-किसी मामले मे अपराधी से भी ज्यादा खतरनाक है.अगर अपराध के एक पहलु का नंगा जायज़ा लिया जाय तो आप पायेंगे—” कि आसिफ़ा और उन्नाव जैसी घचना के एक अघोषित पात्र ये भी है ये वे सरकारी कलाकार है जिनकी मदत से कभी-कभी सियासत अपने खून के छिटे भी साफ करवाती है”.
कई अपराधी राष्ट्रिय,अंतराष्ट्रिय जेलो मे बंद हो हत्या पे हत्या करवाये जा रहे है,पर किसी–“उन्नाव सी घटना का फरियादी पिता रो वही पवित्र थाने और जेल मे मार दिया जाता है और उसकी थाने पे ऐफ.आई.आर तक नही लिखि जाती”.सच तो ये है कि बच्ची कोई हो चाहे हिन्दु या मुसलमान की वे आसिफ़ा, गीता हो पशु को महज़ पशु कहा जाये न कि किसी आठ साल की मासुम सी बच्ची के बलात्कार की लाश –“राजनीति के कडाहे मे पका उसे अपनी राजनीति की मदांधता के नानवेज का लेग पीस”.
हां,जबसे मैने आसिफ़ा की वे नग्न जिस्मानी-हवस के नाखुनी निशानो से भरी उसकी वे पीठ देखी है तबसे मुझे जाने क्यूँ लग रहा है कि ये–“आठ साल की मासुम आसिफ़ा ज़मीन पर नही अपितु हमारे और आपके उस गीता के श्लोक और कुरआन की मुकद्दस आयत पे पड़ी है जिसे हम रोज चुमते व पढ़ते है”. अब तो मै बस यही लिख सकता हूं—-“कि उफ! आसिफ़ा बिटिया दोबारा तुम किसी एैसे मुल्क मे जन्मो जहा तुम्हारे मासुम और कोमल से बदन पे ये निशान न हो”.