माइनॉरिटी स्टेट्स : एएमयू ने केंद्र सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया हलफनामा
नई दिल्ली । अल्पसंख्यक का दर्जा दिए जाने के मामले में केंद्र सरकार के हलफनामे पर एएमयू ने भी हलफनामे के जरिए अपना जवाब दाखिल करते हुए कहा है कि मोदी सरकार का हलफनामा राजनीति से प्रेरित है और केंद्र को यूपीए सरकार का हलफनामा वापस लेने की इजाजत नहीं देनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को तीन हफ्ते में इसका जवाब दाखिल करने को कहा है।
एएमयू ने कहा है कि सरकार बदलने के साथ दूसरी सरकार का नजरिया नहीं बदलना चाहिए । एएमयू देश की सबसे पुरानी मुस्लिम यूनिवर्सिटी है. इसे मिला अल्पसंख्यक का दर्जा सभी मुस्लिमों के लिए खास मायने रखता है ।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यूपीए सरकार की अपील को वापस लेने का हलफनामा दाखिल किया है। मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा है कि एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं दिया जा सकता । मोदी सरकार ने हलफनामे में 1967 में अजीज बाशा केस में संविधान पीठ के जजमेंट को आधार बनाया है जिसने कहा था कि एएमयू को केंद्र सरकार ने बनाया था न कि मुस्लिम ने ।
केंद्र ने हलफनामे में 1972 में संसद में बहस के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बयानों का हवाला दिया है जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर इस संस्थान को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया तो देश में अन्य अल्पसंख्यक वर्ग या धार्मिक संस्थानों को इनकार करने में परेशानी होगी ।
केंद्र ने यूपीए सरकार के वक्त मानव संसाधन विकास मंत्रालय के उन पत्रों को भी वापस ले लिया है जिनमें फैकल्टी आफ मेडिसिन में मुस्लिमों को 50 फीसदी आरक्षण दिया गया था ।
केंद्र ने 1967 के सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के खिलाफ 1981 में संसद में संशोधन बिल पास करते हुए एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया, उसे भी मोदी सरकार ने गलत ठहराया है । हलफनामे में कहा गया है कि इस तरह कोर्ट के जजमेंट को निष्प्रभावी करने के लिए संशोधन करना संवैधानिक ढांचे के खिलाफ है ।