महबूबा का अलगाववादियों पर हमला- मेहमान की नहीं, हमारी बेइज्जती हुई
श्रीनगर। मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती केंद्रीय सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल से न मिलने वाले अलगाववादियों पर मंगलवार को जमकर बरसीं। महबूबा ने कहा कि अगर हम मेहमान के लिए दरवाजा न खोलें और वह हमारे घर से मायूस जाए तो यह मेहमान की नहीं, हमारी बेइज्जती है।
महबूबा ने कहा कि मैं उन तत्वों को अच्छी तरह जानती हूं, जो रात के अंधेरे में लोगों के घरों में जाकर बच्चों को कहते हैं कि सुबह कहां मार्च और पथराव करना है। महबूबा ने कहा कि मरता आम कश्मीरी का बच्चा है। अगर दूसरों के बच्चों के हाथ में पत्थर देने वालों का बच्चा पथराव करता हुआ मारा जाता है, तो मैं राजनीति छोड़ दूंगी।
महबूबा यहीं नहीं रुकी, अलगाववादियों पर कठोर कार्रवाई का संकेत देते हुए उन्होंने कहा कि जब तक मुझमें दम है और जब तक मैं यहां बैठी हूं, किसी को भी अपने नापाक मंसूबों के लिए बच्चों को ढाल नहीं बनाने दूंगी।
महबूबा शेरे कश्मीर इंटरनेशनल कनवेंशन सेंटर (एसकेआईसीसी) में कश्मीर संभाग के लिए उजाला योजना के उद्घाटन समारोह को संबोधित कर रहीं थीं। राज्य में अमन बहाली और कश्मीर समस्या के समाधान के लिए सहयोग व समय का आग्रह करते हुए महबूबा ने कहा कि मैं अगले चुनाव के लिए काम नहीं करूंगी, मैं सिर्फ मुफ्ती साहब के सपनों को पूरा करने के लिए काम करूंगी। चुनावों में क्या होगा, मुझे इसकी फिक्र नहीं, चिंता है तो अपने नौजवानों की, जम्मू-कश्मीर के भविष्य की।
महबूबा ने कहा कि जंगों से मसले हल नहीं होते। 27 साल के आतंकवाद में गोली से मसला हल नहीं हुआ तो फिर पत्थर से कैसे होगा। उन्होंने कहा कि वे लोग (अलगाववादी) नौजवानों को अपने नापाक मंसूबों का मोहरा न बनाएं, मैं यह कतई सहन नहीं करूंगी।
अलगाववादियों ने पहले भी दो मौके गंवाए
मुख्यमंत्री ने दावा किया कि 90 के दशक में केंद्रीय गृहमंत्री रहते हुए मुफ्ती मुहम्मद सईद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्र्वनाथ प्रताप सिंह को कहा था कि कश्मीर मुद्दे को हल कर उपमहाद्वीप के इतिहास को फिर से लिखने का एक मौका है।
वीपी सिंह ने जम्मू-कश्मीर में विभिन्न पक्षों से बातचीत के जरिए समस्या को हल करने की सहमति दी। लेकिन अलगाववादी नेतृत्व ने बातचीत से इन्कार कर कश्मीर मसले को हल करने का पहला अवसर गंवा दिया।
दूसरा मौका तब गंवाया गया जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 2003 में बाहरी व आंतरिक दोनों के मोचोर् पर शांति और सुलह की प्रक्रिया का नेतृत्व किया। हुर्रियत नेतृत्व को बातचीत के लिए फिर बुलाया गया, लेकिन आतंरिक कलह में उलझे अलगाववादी नेतृत्व ने एक और अवसर गंवाया।