मलाला से कम नहीं है मेरठ की ज़ैनब के संघर्ष की कहानी

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मेरठ । घर की आर्थिक तंगी और गाँव के ख़राब माहौल के बावजूद ज़ैनब ने वो कर दिखाया जिसे एक आम लड़की सोच भी नहीं सकती । आज जैनब उन लड़कियों के लिए एक बड़ी मिसाल हैं जो ज़िंदगी में आगे बढ़ना चाहती हैं । मेरठ के गांव चंदौरा में जन्मी ज़ैनब खान ने अपनी ज़िंदगी में जो संघर्ष किया वह तारीफ़ के काबिल है ।

ज़ैनब बताती हैं कि हमारे गाँव में लड़कियों को बचपन से ही फैक्ट्री में मजदूरी के लिए भेज दिया जाता है। आर्थिक तंगी के चलते ज़ैनब को भी बचपन से ही फुटबॉल सिलने के पेशे में लगाया गया था। नन्ही जैनब खेलने की उम्र में फुटबॉल सिलकर अपने परिवार का पेट पालने में मदद करती थी।

जैनब पढ़ने का शौकीन थी। लेकिन गांव में अधिकतर लड़कियां 8वीं क्लास के बाद पढ़ाई बंद कर देती थीं। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह थी कि गाँव में सीनियर स्कूल नहीं था उसके लिए दूसरे गाँव जाना पड़ता था । गाँव का माहौल भी लड़कियों के बाहर निकलने की दृष्टि से अच्छा नहीं था । इसलिए कोई भी लड़की स्कूल ख़त्म करने के बाद आगे पढ़ने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी ।

जैनब लगातार अपने पेरेंट्स से सीनियर स्कूल भेजने की बात कहती थी। उसकी जिद थी वह कम से कम 12वीं तक पढाई करे । जैनब के पिता ने उसका सपोर्ट किया और रोज उसे छोड़ने और लेने जाने का जिम्मा उठाया। जैनब के 8 भाई-बहन हैं, जिनमें से 3 बहने हैं। सभी बहनों में 12वीं तक स्कूल पढ़ने वाली जैनब पहली रहीं। जैनब ने हाल ही में ग्रैजुएशन पूरा किया है।

पहली बार हाईस्कूल की परीक्षा देने के बाद जैनब ने ठान लिया था कि वह गांव की लड़कियों को आगे की पढ़ाई के लिए मजबूर करेगी। वो घर-घर जाकर उन सभी लड़कियों के मां-बाप से मिलती है, जो बेटी को कक्षा 8 से आगे पढ़ाना नहीं चाहते। यह जैनब की मेहनत का नतीजा है कि इस समय गांव की लड़कियां हाईस्कूल और इंटर की पढ़ाई कर रही हैं। उन्होंने अपने घर पर ही गरीब बच्चों को बिना फीस लिए ट्यूशन देने का काम शुरू किया है।

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