बेअसर हो रहा पीएम मोदी का जादू, बीजेपी के चेहरे पर उभर आयीं हैं चिंता की लकीरें

बेअसर हो रहा पीएम मोदी का जादू, बीजेपी के चेहरे पर उभर आयीं हैं चिंता की लकीरें

नई दिल्ली। बीजेपी अध्यक्ष आमित शाह जो भी दावे करें लेकिन अब उनके दावों में वह आत्म विश्वास नज़र नहीं आ रहा जो अब से एक साल पहले हुआ करता था।

उत्तर प्रदेश से लेकर राजस्थान, कर्नाटक और महाराष्ट्र तक उपचुनावों में पार्टी का घटिया प्रदर्शन और कई राज्यों में पार्टी के अंदर गुटबंदी के अलावा बेअसर हो रहे पीएम मोदी के जादू के चलते बीजेपी के चेहरे पर चिंता की लकीरें पढ़ी जा सकती हैं।

जानकारों की माने तो बीजेपी की सबसे बड़ी चिंता उत्तर प्रदेश को लेकर है, जहाँ 2014 के आम चुनाव में उसने सर्वाधिक 71 सीटें जीती थीं। राज्य में 2017 में हुए विधानसभा चुनावो में पूर्ण बहुमत मिलने के बावजूद गोरखपुर, फूलपुर और कैराना उपचुनावों में बीजेपी की हार ने पार्टी को एक बार फिर चिंतन करने को मजबूर कर दिया है।

इतना ही नहीं हिंदुत्व के जिस जादू को ध्यान में रखकर योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का सीएम बनाया गया था अब वह पूरी तरह धुल चुका है। वहीँ दूसरी तरफ सपा बसपा गठबंधन के चलते जातीय समीकरणों में फिट नहीं बैठ रही बीजेपी को 2019 के चुनावो की चिंता सताने लगी है।

इस वर्ष मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं। इन चुनावो को 2019 का सेमीफाइनल माना जा रहा है। तीनो राज्य बीजेपी के लिए इसलिए भी अहम् हैं क्यों कि सभी तीनो जगह उसकी सरकार है। ऐसे में बीजेपी को किसी से कुछ छीनने की जगह अपनी सत्ता बचाये रखन बड़ी चुनौती है।

बीजेपी की चिंता सिर्फ यहीं ख़त्म नहीं होती। एनडीए घटक दलों का लगातार बढ़ता दबाव भी उसके लिए बड़ी चिंता है। बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड ने कांग्रेस की 25 सीटों पर दावा ठोंक कर बीजेपी के लिए नई मुकड़ी मुश्किल खड़ी कर दी है। इतना ही नहीं जनता दल यूनाइटेड ने झारखण्ड में लोकसभा और विधानसभा चुनाव भी अपने बुते लड़ने का एलान कर बीजेपी को सोचने पर मजबूर कर दिया है।

बिहार में लोकसभा की 40 और झारखण्ड में लोकसभा की 14 सीटें हैं। कुल मिलकर 54 सीटें होती हैं। 2014 में बीजेपी ने बिहार में 22 और झारखण्ड में 12 सीटें जीती थीं लेकिन इस बार पुराने रिकॉर्ड को दोहरा पाना बीजेपी के लिए लोहे के चने चबाने जैसा होगा।

इतना ही नहीं बीजेपी के लिए एक अहम चुनौती एनडीए का कुनबा बचाये रखे की भी है। तेलगू देशम पार्टी ने हाल ही में एनडीए छोड़ दिया है, शिवसेना पहले ही बीजेपी के बिना महाराष्ट्र में लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने का एलान कर चुकी है। ऐसे में देखना है कि 2019 आते आते एनडीए की तस्वीर क्या रहती है।

बीजेपी के माथे पर उभरी चिंता की लकीरें साफ़ बता रही हैं कि उसके आत्मविश्वास में लगातार गिरावट आ रही है। केंद्र में मोदी सरकार के चार साल के कार्यकाल के दौरान कोई ऐसी बड़ी उपलब्धि नहीं है जिसे लेकर 2019 में चुनाव लड़ा जा सके। स्वच्छ भारत अभियान, नोटबंदी, जीएसटी, सर्जीकल स्ट्राइक या आधार ऐसी उपलब्धियां नहीं हैं जिनसे आम जनता खासकर गरीब और मध्यम वर्ग बीजेपी से खुश हो जाए।

इसके अलावा अधिकतर योजनाओं का काम बेहद धीमी गति से चलने के कारण धरातल पर न दिखना बीजेपी के लिए बड़ी असफलता का सबब बन सकता है।

इतना ही नहीं गंगा की सफाई, काशी को क्योटो बनाने, प्रतिवर्ष दो करोड़ नौकरियां देने, पेट्रोल डीजल के दाम और महंगाई कम करने, स्मार्ट सिटी बनाने, महिला सुरक्षा, कश्मीर में आतंकवाद जैसे 2014 के चुनावी वादे बीजेपी के लिए 2019 में गले की हड्डी साबित हो सकते हैं।

यही कारण है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी सभाओं में किसानो की समस्याओं से लेकर कश्मीर तक कोई मुद्दा नहीं छोड़ रहे हैं। किसानो की बीजेपी से बढ़ती नाराज़गी, बेरोज़गारी बढ़ना, तेल की कीमतों में लगातार बढ़ोत्तरी होना और देश में बढ़ती रेप की घटनाओं से लेकर कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं का बढ़ना तो बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती है। ये वे संवेदनशील मुद्दे हैं जिनके जबाव बीजेपी के नेताओं के पास नहीं हैं और वे इन मुद्दों पर ध्यान भटकाने के लिए अपने ऊल जलूल बयानों का सहारा लेते हैं।

जब इन मुद्दों पर बीजेपी नेताओं से सवाल पूछे जाते हैं तो वे महंगाई को देशभक्ति और विकास से ठीक उसी तरह जोड़ने की कोशिश करते हैं जैसे नोटबंदी के दौरान बीजेपी नेताओं ने किया था। याद दिला दें कि नोट बंदी के दौरान एटीएम की लाइन में लगने को कई बीजेपी नेताओं ने देशभक्ति से जोड़ा था। खुद पीएम मोदी ने दावा किया था कि नोट बंदी से आतंकवाद की कमर टूटेगी, काला धन बाहर आएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

फिलहाल देखना है कि बीजेपी के चेहरे पर उभरी चिंता की लकीरें उसे किस दिशा में ले जाती हैं। जानकारों की माने तो मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में होने जा रहे विधानसभा चुनावो में भी यदि बीजेपी को झटका लगा तो उसकी चिंता उसे डिप्रेशन में भी ले जा सकती है।

अपनी राय कमेंट बॉक्स में दें

TeamDigital