बीजेपी चाहती तो मुसलमानो में बना सकती थी अपनी पैंठ लेकिन बीजेपी से और दूर चले गए मुसलमान
नई दिल्ली (डा. मौ. फ़ुरक़ान)। 2014 का आम चुनाव जीतने के बाद भाजपा के पास मुसलमानों के प्रति अपनी छवि सही करने का बहुत अच्छा मौक़ा था। लेकिन भाजपा ने अपने नेताओं के ज़बान पर ना तो लगाम लगाया और ना ही उन नेताओं के ज़रिए दिए गए बयानों पे कोई लब कुशाई की।
भाजपा के तमाम ऐसे नेता बल्कि मन्त्री अपने हल्के, असंवैधानिक बयानों से ना तो सिर्फ मुसलमानों के लिए ज़हर उगलते रहे बल्कि हिन्दुतान की बैनुलक़वामी छवि धोमिल करते रहे।
2014 में बहुत के बाद कहानी घर वापसी से शुरु हुई, लव जिहाद से होते हुए, लिंचिंग पर आकर टिक गई। गाय के नाम पर भीड़ के जरिये मुसलमानों को मारना और इन मौतों पर माननीय प्रधान मंत्री का कोई बयान ना आना इस बात के संकेत देता है कि भाजपा अपने कट्टरवादी वोटों को नहीं छेड़ना चाहती।
इस के साथ साथ एक नई बीमारी और शुरू हुई जिसका नाम था मुसलमानो को पाकिस्तान भेजना, बातों बातों में भाजपा के दर्ज प्राप्त मंत्रीयों ने पाकिस्तान भेजने की पेशकश करने में ज़रा भी देरी नही की। यहाँ तक मुख्तार अब्बास नकवी साहब ने भी इसी बहती गंगा में हाथ धो लिया। उन बेरोज़गार, कम पढ़े लिखे और भीड़ जुटाकर नारा लगाने वालों की बात ही छोड़ दीजिये जो यह कहते नज़र आ रहे हैं कि “एक धक्का और दो, जामा मस्जिद तोड़ दो” और आखिर में समाज के इसी तबके को खुश करने के लिए मुसलमान जगहों के नाम बदले जा रहे हैं। क्योंकि इसके सिवा भाजपा के पिटारा में कुछ नही था।
कोई मुसलमान किसी को ईद मनाने के लिए नही कहता, लेकिन किसी हिन्दू भाई का मुबारकबाद देना इस बात की दलील होता है कि आप ईद मनाइये, हम आपकी इस खुशी में शरीक हैं। पर भाजपा के उच्च कोटि के नेता ने इसपर भी किरकिरी कर दी।
पिछले कुछ सालों में ईद-दीवाली पर बिजली, कब्रस्तान-शमशान और अली-बजरंगबली को लेकर दिये गये बयान, इस बात के साफ संकेत देते हैं कि बहुसंख्यक वर्ग द्वारा मुसलमानों के प्रति नफरत को भाजपा कैश करना चाहती है। हालांकि सच्चाई यही है ना तो मुसलमान पाकिस्तान जाएगा, ना ही बिजली आने में कोई साम्प्रदायिकता होगी और ना तो कभी हैदराबाद के निज़ाम भागे थे ना ओवैसी भागेगा।
तक़रीबन हर समझदार मुसलमान, जिससे हमने अबतक पूछा, वो यही मानता है कि कांग्रेस हमारी कोई हितैषी पार्टी नही है। लोग स्वर्गीय राजीव गाँधी द्वारा बाबरी मस्जिद के खोले गए ताले की मिसाल भी देते हैं। कुछ लोग तो यहाँ तक कहते नज़र आये की 1992 के अयोध्या के ज़िम्मेदार स्वर्गीय नरसिम्हा राव जी हैं, जो भाजपा नही कांग्रेस पार्टी के नेता थे।
अब सवाल ये उठता है कि मुसलमान जाए तो कहाँ जाये? एक तरफ़ मेन्टल टॉर्चर करने वाली भाजपा खड़ी है, जो शहरों के नाम बदल रही है, दूसरी तरफ़ मुसलमानों का अपीज़मेन्ट करने वाली कांग्रेस। लेहाज़ा तीसरा ऑप्शन ना होने की वजह से कम खराब और ज़्यादा ख़राब में किसी एक को चुनना है।
ज़ाहिर सी बात है लोग कम खराब वाले को वरीयता देंगें। कमसे कम ज़हनी सुकून तो मिलेगा। उम्मीद रखता हूँ राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में किसी मुसलमान शहर के नाम नही बदलें जॉएँगे।
(लेखक अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में रिसर्च स्कॉलर हैं)
उपरोक्त लेख लेखक के निजी विचार हैं, लोकभारत का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है।