बीजेपी का चक्रव्यूह भेदने के लिए कांग्रेस को आगे करने होंगे स्थानीय नेता
नई दिल्ली(राजा ज़ैद): किसी भी राजनैतिक दल की सलफता में क्षेत्रीय नेताओं की बड़ी भूमिका होती है, जब राज्य स्तर का कोई चुनाव हो तो यह भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है.
गुजरात में होने जा रहे विधानसभा चुनावो के लिए पार्टियों की जोर आजमाइश को लेकर यदि अब तक की समीक्षा की जाये तो बड़ी सच्चाई यह सामने आती है कि राज्य में विपक्षी कांग्रेस सत्तारुद बीजेपी पर धीमे धीमे हावी हो रही है.
आज की बात करें तो कांग्रेस सोशल मीडिया से लेकर ज़मींन तक बीजेपी पर भारी पड़ रही है. कांग्रेस के आक्रामक रुख के चलते बीजेपी मजबूरन रक्षात्मक रुख अपनाने को मजबूर है.
लेकिन एक बड़ा सवाल यह भी है कि क्या चुनावो तक कांग्रेस इस माहौल और बढ़त को बरकरार रख पाएगी? यह सवाल उस समय और महत्वपूर्ण हो जाता है जब राज्य में पूरी कांग्रेस राहुल गांधी के पीछे खड़ी है और कोई क्षेत्रीय चेहरा आगे आकर पार्टी के अभियान को नेतृत्व नही दे रहा.
पंजाब में हुए विधानसभा चुनावो से कांग्रेस को कम से कम यह सबक तो लेना ही होगा कि राज्य स्तर के चुनावो में क्षेत्रीय नेताओं की बड़ी भूमिका होती है वे अपने बूते राज्य की राजनीति को मोड़ने की हैसियत रखते हैं.
गुजरात में कांग्रेस ने बीजेपी पर शुरूआती बढ़त तो बना ली है लेकिन उसे इस बढ़त को चुनाव तक बरकरार रखने के लिए राज्य के किसी कांग्रेस नेता को आगे करना पड़ेगा. यदि समय रहते कांग्रेस ने इस पर कोई फैसला नही लिया तो गुजरात में बीजेपी को हारने का भ्रम जल्द टूट जायेगा.
अब से कुछ महीने पूर्व यह कहा जा रहा था कि कर्नाटक में बीजेपी की सरकार बनेगी. इतना ही नही चुनाव के जानकारो ने यह भविष्यवाणी करनी शुरू कर दी थी कि कर्नाटक में बीजेपी की लोकप्रियता बढ़ रही है लेकिन आज वही लोग इस बात को मान रहे हैं कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दरमैया ने एक बार फिर राज्य में पकड़ मजबूत कर ली है.
कुल मिलाकर यदि कांग्रेस अपने चुनावी इतिहास का आंकलन करे तो जहाँ जहाँ कांग्रेस ने अपने क्षेत्रीय नेताओं को आगे रख कर चुनाव लड़ा वहां सभी जगह उसे फतह हासिल हुई है.
यही कारण है कि हिमाचल प्रदेश को लेकर अभी कोई यह दावे नही कर रहा कि राज्य में बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस कमज़ोर दिख रही है. हिमाचल में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह पूरे चुनाव की अगुवाई कर रहे हैं. राज्य में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी सिर्फ सभाएं ज़रूर कर रहे हैं लेकिन स्थानीय स्तर पर सारे समीकरणों की निगरानी स्वयं मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ही कर रहे हैं.
चुनावी जानकारों की माने तो हरियाणा में भूपेन्द्र सिंह हुड्डा बड़ी वापसी की तरफ बढ़ रहे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री रहे हुड्डा ने राज्य में फिर से कांग्रेस की वापसी के लिए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी या सोनिया गांधी को आगे रखकर कोई कार्यक्रम करने की जगह खुद अपने स्तर से जुटे हैं.
वहीँ गुजरात की बात करें तो राज्य में पूरा चुनाव अभियान कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के इर्दगिर्द सिमट कर रह गया है. इसका फायदा उठाते हुए बीजेपी ने अपने अलग अलग चेहरे मैदान में उतारना शुरू कर दिए हैं. बीजेपी ने अपनी रणनीति के तहत पहले जल संसाधन मंत्री उमा भारती, उसके बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को और अब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को गुजरात भेजा है.
दूसरी पंक्ति ने नेताओं को गुजरात के चुनावी अभियान में आगे करने की बीजेपी की रणनीति के पीछे एक बड़ा कारण यह है कि वह पहली पंक्ति के नेताओं को एन चुनाव के समय चुनावी मैदान में भेजेगी. जबकि इसके पलट कांग्रेस ने अपनी पहली पंक्ति के सबसे टॉप लीडर को पहले ही चुनावी अभियान में उतार दिया है.
फिलहाल जानकारों का कहना है कि कांग्रेस को जल्दी ही यह तय करना होगा कि राहुल गांधी के अलावा राज्य में दूसरा चेहरा कौन होगा जो पूरे चुनाव अभियान को आगे बढायेगा और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा बीजेपी पर किये गए हमलो को सिलसिलेवार तरीके से जारी रखेगा.