जब कील ही स्थिर न रह पाए,
भ्रमण उस चाक का न होगा।
कंठ तृषा बुझा सके ,
सृजन उस पात्र का न होगा।
केंद्र में जो स्थिर रह पाए,
भ्रमण चक्रवात में न होगा ।
जब चित्त ही स्थिर न रह पाए,
शमन तृषा का न होगा ।
आत्म क्षुधा बुझा सके,
अर्जन उस क्षण का न होगा।
(बबिता जोसफ)
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