पीएम मोदी की मौजूदगी में न्यायपालिका की हालत बयान करते चीफ जस्टिस की आँखों से छलके आंसू
नई दिल्ली । मुख्यमंत्रियों व हाईकोर्ट के चीफ जस्टिसों की बैठक में रविवार को भाषण देने के दौरान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया टीएस ठाकुर भावुक हो गए और उनके आंसू निकल पड़े। वे जजों की संख्या और ज्यादा बढ़ाने पर जोर दे रहे थे।
इस मौके पर पीएम नरेंद्र मोदी भी वहां मौजूद थे। ठाकुर ने मांग की कि केसों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर जजों की संख्या में बड़े पैमाने पर इजाफा किया जाना चाहिए। अपने भावुक भाषण में जस्टिस ठाकुर ने आरोप लगाया कि जुडिशरी की मांग के बावजूद कई सरकारें इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाने में नाकाम रहीं।
चीफ जस्टिस ने कहा कि न निपटाए गए केसों की लगातार बढ़ती संख्या के लिए सिर्फ न्यायपालिका को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। ठाकुर के मुताबिक, जजों को बेहद दबाव के माहौल में केसों का निस्तारण करना पड़ रहा है।
उन्होंने रूंधे गले से कहा, ‘‘यह किसी प्रतिवादी या जेलों में बंद लोगों के लिए नही बल्कि देश के विकास के लिए , इसकी तरक्की के लिए मैं आपसे हाथ जोड़कर विनती करता हूं कि इस स्थिति को समझें और महसूस करें कि केवल आलोचना करना काफी नहीं है । आप पूरा बोझ न्यायपालिका पर नहीं डाल सकते।’’
न्यायमूर्ति ठाकुर ने कहा कि विधि आयोग की सिफारिशों का पालन करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में न्यायपालिका की संख्या में वृद्धि का समर्थन किया था। प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता वाली विधि विभाग संबंधी संसद की एक स्थायी समिति ने जजों की संख्या और आबादी के अनुपात को दस से बढ़ाकर 50 करने की सिफारिश की थी।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा, ‘‘1987 में 40 हजार जजों की जरूरत थी। 1987 से लेकर आज तक आबादी में 25 करोड़ लोग जुड़ गए हैं। हम दुनिया की सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से एक हो गए हैं, हम देश में विदेशी निवेश आमंत्रित कर रहे हैं, हम चाहते हैं कि लोग भारत आएं और निर्माण करें , हम चाहते हैं कि लोग भारत में आकर निवेश करें।’’
उन्होंने मोदी के ‘मेक इन इंडिया ’ और ‘कारोबार करने में सरलता’’ अभियानों का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘ जिन्हें हम आमंत्रित कर रहे हैं वे भी इस प्रकार के निवेशों से पैदा होने वाले मामलों और विवादों से निपटने में देश की न्यायिक व्यवस्था की क्षमता के बारे में चिंतित हैं। न्यायिक व्यवस्था की दक्षता महत्वपूर्ण रूप से विकास से जुड़ी है।’’
विधि मंत्रालय द्वारा जारी कार्यक्रम के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी को कार्यक्रम में नहीं बोलना था। हालांकि, मोदी ने कहा कि यदि संवैधानिक अवरोधक कोई समस्या पैदा नहीं करें तो शीर्ष मंत्री और उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ जज बंद कमरे में एक साथ बैठकर इस मुद्दे पर कोई समाधान निकाल सकते हैं।
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि यह तय करना सभी की जिम्मेदारी है कि आम आदमी का न्यायपालिका में भरोसा बना रहे और उनकी सरकार जिम्मेदारी को पूरा करेगी तथा आम आदमी की जिंदगी को सुगम बनाने में मदद करने से पीछे नहीं हटेगी।