दो महिलाओं से बन रहे ऐसे समीकरण कि ‘अभी से बीजेपी,सपा की फूलने लगी सांस’

ब्यूरो(राजा ज़ैद)। यूपी में यदि आज चुनाव हो जाएँ तो सबसे बड़ा नुकसान राज्य में सत्तारूढ़ दल समाजवादी पार्टी और केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी को होगा । समाजवादी को राज्य सरकार की और बीजेपी को केंद्र की सत्ता विरोधी हवा का सामना करना पड़ेगा । ये एक बड़ा इतेफ़ाक़ है कि बीजेपी और सपा को छोड़ अन्य दो मुख्य पार्टियों की तरफ से मुख्यमंत्री पद की दावेदार महिलाएं हैं ।

बहुजन समाज पार्टी के सत्ता में आने पर मायावती मुख्यमंत्री होंगी यह बिलकुल साफ़ है इसमें किसी बदलाव की सम्भावना नहीं दिखती वहीँ सपा की तरफ से भी तय माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री के तौर पर पार्टी फिर से अखिलेश यादव को ही प्रोजेक्ट करेगी । कांग्रेस के सत्ता में आने पर शील दीक्षित मुख्यमंत्री होंगी वहीँ बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री के तौर पर किसे प्रोजेक्ट किया जाएगा इसका अभी खुलासा होना बाकी है ।

फिलहाल जो उत्तर प्रदेश में राजनैतिक परिस्थितियां बन रही हैं उसके हिसाब से बिना गठबंधन किसी भी पार्टी का सत्ता में आना नामुमकिन सा है । गठबंधन चुनाव पूर्व हो या परिणाम आने के बाद , फिलहाल यह तय है कि किसी एक दल को पूर्ण बहुमत मिलने की उम्मीद न के बराबर है ।

चुनाव विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इसी महीने में विधान सभा चुनाव करा दिए जाएँ तो राज्य में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी और केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी को बड़ा झटका लगेगा । विशेषज्ञ मानते हैं कि आज के हालात में सबसे बड़ा फायदा बहुजन समाजवादी पार्टी को हो सकता है वहीँ दूसरे नंबर पर यदि किसी दल को फायदा मिलेगा तो वह कांग्रेस हो सकती है ।

चुनाव विशेषज्ञों का मत है कि शीला दीक्षित को मुख़्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करने से यह तय है कि कांग्रेस की परफॉर्मेंस पिछले चुनाव से बेहतर होगी और यदि कांग्रेस 70-80 सीटों का आंकड़ा पार करने में सफल होती है तो बिना उसके प्रदेश में कोई सरकार नहीं बनेगी । ऐसी स्थति में मायावती की बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस मिलकर प्रदेश में सरकार बनाने के लिए एक अच्छा विकल्प दे सकते हैं ।

दलितों के साथ खाना भी व्यर्थ हुआ :
अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के बीजेपी नेता दया शंकर सिंह द्वारा बसपा सुप्रीमो पर की गई अभद्र टिप्पणी से बहुजन समाज पार्टी वह वोट बैंक वापस आ सकता है जो हिन्दुत्व के बहाव में लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी में चला गया था ।

दयाशंकर सिंह के विवादित बयान से पहले बीजेपी प्रदेश में दलितों और पिछड़ो को पार्टी से जोड़ने की भरपूर कोशिश कर रही थी । दलितों के साथ बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भोजन कार्यक्रम भी इसी रणनीति का हिस्सा था वहीँ दयाशंकर सिंह के बयान ने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का दलितों के साथ भोजन करना भी व्यर्थ कर दिया है ।

फिलहाल उत्तर प्रदेश में जो नयी स्थति बन रही है उससे बीजेपी की सांस इसलिए भी फूल रही है क्यों कि महंगाई के मुद्दे पर मध्यम वर्ग बीजेपी से खासा नाराज़ है । वहीँ लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी से जुड़े युवा मतदाताओं को भी केंद्र से निराशा ही मिली है । फिर चाहे वह बात पंद्रह लाख रुपये के जुमले की हो या रोज़गार पैदा करने की फिलहाल युवा वर्ग खुद को ठगा सा महसूस कर रहा है ।

पिछले चुनाव में स्थति :

UP-Election-2012

कांग्रेस को शीला के अनुभव का फायदा :
प्रदेश में कांग्रेस के मुख्यमंत्री के तौर पर दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का नाम आने से कांग्रेस को एक बड़ा फायदा मिलने की पूरी सम्भावना है । शीला दीक्षित मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए बतौर दिल्ली के मुख्यमंत्री के तौर पर किये गए विकास कार्यो को सामने रख सकती हैं । वे अनुभवी हैं और उनकी छवि फिलहाल साफ़ सुथरी है । चूँकि शीला दीक्षित का यूपी कनेक्शन भी है इसलिए उन्हें कोई बाहरी भी नहीं कह सकता । चुनाव विशेषज्ञों का मानना है कि शीला दीक्षित के मैदान में आने से बीजेपी और सपा के लिए एक नयी मुश्किल पैदा हुई है ।

फिलहाल चुनावो में अभी खासा समय बाकी है तथा आने वाले समय में गणित बदल भी सकता है । सारी सम्भावनाएं गठबंधन के उपर टिकीं हैं । इस चुनाव में पिछले चुनाव की तुलना में कई नये एक्सपेरिमेंट भी होना बाकी है । असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम यूपी में कितनी सीटों पर चुनाव लड़ती है तथा बिहार चुनाव के दौरान नितीश – लालू- कांग्रेस का बना महागठबंधन यूपी में भी लागू होगा या नहीं इसका अभी खुलासा होना बाकी है ।

आज जो समीकरण और परिस्थितियां हैं उनके हिसाब से बसपा सुप्रीमो मायावती और कांग्रेस की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार शीला दीक्षित ने बीजेपी और सपा की सांस ज़रूर फुला दी है ।

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