दिल्ली: कांग्रेस को पराजय के बावजूद ग्यारह फीसदी मतों का फायदा

नई दिल्ली। दिल्ली में हुए एमसीडी चुनावो में कांग्रेस बीजेपी को भले ही नहीं पछाड़ सकी लेकिन उसके वोटो में इज़ाफ़ा ज़रूर हुआ है। वहीँ सबसे बड़ा नुक्सान दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी को हुआ है।

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि एमसीडी चुनावो में बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस जैसे उन राजनैतिक दलों ने भी अपना खाता खोल लिया जिनका दिल्ली में बहुत बड़ा आधार नहीं है।

दिल्ली नगर निगम चुनाव में तीसरे स्थान पर रहने वाली कांग्रेस को साल 2015 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले 11 प्रतिशत ज्यादा वोट मिले हैं। वहीँ नगर निगम चुनाव में 270 सीटों में से 181 सीटेें जीतने वाली भाजपा का वोट प्रतिशत करीब 5 फीसदी बढ़ा है।

साल 2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 32.2 फीसदी वोट मिले थे। इन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 9.7 प्रतिशत मत मिले थे, जबकि एमसीडी चुनाव में यह वोट प्रतिशत बढ़कर 21.28 हो गया है। आम आदमी पार्टी को एमसीडी चुुुुनाव में करीब 26 फीसदी वोट मिले हैं, जो विधानसभा चुनाव में मिले 54.3 प्रतिशत वोटाेें के मुकाबले आधे भी नहीं हैं।

भाजपा ने तीनों नगर निगमों में स्पष्ट बहुमत हासिल कर शानदार जीत हासिल की है। आप के लिए चिंंता की बात यह है कि दिल्ली की जिस जनता ने दो साल पहले पार्टी के 67 विधायक जीताकर विधानसभा पहुंचाए थे, उसी दिल्ली में आप के 67 पार्षद भी नहीं जीत पाए। एमसीडी की 270 में से आप को सिर्फ 48 सीटों पर जीत मिली है।

कहा जा रहा है कि कांग्रेस में टिकिट बंटवारे को लेकर पैदा हुए असंतोष से कांग्रेस को बड़ा नुक्सान हुआ है।  वहीँ चुनाव प्रचार से शीला दीक्षित जैसी कद्दावर नेता का गायब रहना भी पराजय का एक बड़ा कारण हैं।

कांग्रेस सूत्रों की माने तो एन चुनाव के समय पार्टी छोड़ने वाली बरखा शुक्ला सिंह को रोका जा सकता था। सूत्रों ने कहा कि कई जगह जिताऊ उम्मीदवारों के टिकिट काटना भी कांग्रेस को घाटे का सौदा साबित हुआ है।

अपनी राय कमेंट बॉक्स में दें

TeamDigital