तीन तलाक पर सुप्रीमकोर्ट के फैसले से जीत कर भी यूँ हार गयी सरकार

तीन तलाक पर सुप्रीमकोर्ट के फैसले से जीत कर भी यूँ हार गयी सरकार

नई दिल्ली। तीन तलाक पर सुप्रीमकोर्ट ने 6 महीने के लिए पाबंदी लगा दी है और इन 6 महीनो के दौरान सरकार से इस पर कानून लाने के लिए कहा है। सुनने में मामला बेहद साफ़ और स्पष्ट लगता है। लेकिन कानून के जानकारो का कहना है कि तीन तलाक पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की हार नहीं हुई बल्कि सुप्रीमकोर्ट के फैसले से सरकार जीत कर भी हार गयी है।

कानून के जानकारों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि सरकार तीन तलाक पर 6 महीनो के अंदर कानून लाये। यहाँ यह भी बता देना आवश्यक है कि कानून बनाने के लिए सरकार को कई पहलुओं पर विचार करना होगा। सरकार पहले एक ड्राफ्ट तैयार करेगी जिस पर संसद में बहस भी हो सकती है। विपक्ष इस कानून पर अपनी राय रखने का हक रखता है। सरकार जो ड्राफ्ट तैयार करेगी उसमे विपक्ष बदलाव के लिए भी दबाव बना सकता है।

जब यह कानून अमल में आएगा तो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को पूरा हक है कि यदि उसे इस कानून में कोई खामी नज़र आती है तो वह इस मामले पर कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा सकता है। इतना ही नहीं मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस मामले में अपनी बात रखने का भी हक रखता है।

सुप्रीमकोर्ट के आज के फैसले से स्पष्ट है कि कोर्ट ने एक साथ तीन तलाक देने पर पाबन्दी लगायी है न कि तलाक देने पर। यानि इस्लामिक तरीके से कोई पुरुष हर तयशुदा मुद्द्त के बाद एक एक कर तलाक दे सकता है।

अगर इसकी और गहराई से व्याख्या करें तो कोई पुरुष एक बार में तीन तलाक कह कर तलाक नहीं पा सकेगा बल्कि उसे पहले तलाक के बाद कुछ महीनो का समय देना होगा अगर इस दौरान पति पत्नी में सुलह हो जाती है तो ठीक है अन्यथा तय समय के अनुसार दूसरा तलाक दे सकता है और इसके बाद भी उसे एक तय समय तक सुलह का इंतज़ार करना होगा।

सुप्रीमकोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अधिकारों को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की। यानि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अपना काम करता रहेगा। इतना ही नहीं, सुप्रीमकोर्ट ने मुस्लिम समुदाय में निकाह और महर की रस्म पर भी कोई टिप्पणी नहीं की और न ही इसकी शर्तो में कोई बदलाव करने के लिए कहा है।

सुप्रीमकोर्ट में सरकार की तरफ से इस मामले में दलील रखने वाले पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने मुस्लिम समुदाय में निकाह के तरीके और महर पर भी सवाल उठाये थे। सरकार की मंशा थी कि किसी भी तरह मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को बीच से हटाकर इसे कॉमन सिविल कोड के दायरे में ले आया जाए। जबकि सुप्रीमकोर्ट के फैसले से ऐसी कोई सम्भवना नहीं बनी है।

सुप्रीमकोर्ट के फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए आल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने भी कहा कि सरकार चाहती थी पूरा तलाक ही खत्म हो जाए पर वो हुआ नहीं।

ओवैसी ने कहा कि भाजपा जितनी मुस्लिम महिलाओं के हित की बात करती है उसमें कोई सच्चाई नहीं है। बीजेपी सिर्फ दिखावा करती है। उन्होंने कहा कि गौरक्षकों ने कई मुस्लिमों को मारा जिस कारण उनकी बीबियां बेवा हो गईं और कई माताओं की गोद उजड़ गई लेकिन सरकार ने कुछ नहीं बोला। उन्होंने कहा कि अगर कानून बनाना है तो विधावों के लिए कानून बनाइये।

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TeamDigital