डा अंबेडकर के नाम में रामजी जोड़ना बीजेपी को पड़ सकता है भारी

डा अंबेडकर के नाम में रामजी जोड़ना बीजेपी को पड़ सकता है भारी

नई दिल्ली। संविधान निर्माता डा भीमराव अंबेडकर के नाम में “रामजी” शब्द जोड़कर सीना ठोक रही भारतीय जनता पार्टी की कर्नाटक में राम नाम सत्य भी हो सकती है। बीजेपी के रणनीतिकारों ने जो सोचा था उसके विपरीत होता नज़र आ रहा है।

डा अंबेडकर के नाम में उनके पिता का नाम होने का हवाला देकर सरकारी रिकार्ड में रामजी शब्द जोड़ दिया जाने के पीछे बीजेपी की जो भी नीयत रही हो लेकिन बीजेपी ने इस मामले को जिस तरह प्रसारित किया उससे बीजेपी की नीयत पर सवाल उठना लाजमी है।

उत्तर प्रदेश में हाल ही में दो लोकसभा क्षेत्रो के उपचुनाव में सपा बसपा के हाथो पिटी भारतीय जनता पार्टी ने एक तीर से दो निशाने साधने की कवायद के तहत डा अंबेडकर के नाम में रामजी शब्द जोड़ दिया। बीजेपी इसके पीछे जो भी कारण बताये लेकिन एक बड़ी सच्चाई यह है कि ऐसा करके बीजेपी ने देश के दलितों पर हिंदुत्व की धार रखने की अपनी मंशा ज़ाहिर कर दी है।

वहीँ उत्तर प्रदेश सरकार के रिकॉर्ड में डा अंबेडकर के नाम में रामजी लगाने पर दलित समुदाय असहमत दिख रहा है। ज़ाहिर है यह मुद्दा कर्नाटक चुनावो से लेकर 2019 के लोकसभा चुनावो तक बार बार उठेगा।

जानकारों की माने तो कर्नाटक में होने जा रहे विधानसभा चुनावो में बीजेपी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। बीजेपी नेतृत्व वाली सरकारें शहरो और सड़को के नाम बदलने के लिए पहले से बदनाम रही हैं लेकिन अब तो इस देश के संविधान निर्माता का मामला है।

कर्नाटक में दलित मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग है। यहाँ बहुजन समाज पार्टी और जनता दल सेकुलर मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। बसपा प्रमुख मायावती डा अंबेडकर के नाम से छेड़छाड़ का पहले ही विरोध कर चुकी हैं।

बसपा मुखिया मायावती ने भी राज्य सरकार के इस कदम को ‘दिखावटी’ और ‘सस्ती लोकप्रियता’ हासिल करने की कोशिश करार दिया है। उन्होंने कहा कि भाजपा के लोग दलितों के वोट के स्वार्थ के खातिर अपने दिल पर पत्थर रखकर अम्बेडकर का नाम लेते रहते हैं और उनके नाम पर तरह-तरह की नाटकबाजी करते रहते हैं।

उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी को कोई उनके पूरे नाम से सम्बोधित नहीं करता। क्या भाजपा सरकारी विज्ञापनों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का पूरा नाम लिखती हैं? ऐसे में सिर्फ बाबा साहब के नाम पर ही स्वार्थ की राजनीति क्यों हो रही है।

बीजेपी के इस कारनामे को दलितों ने सराहा नहीं बल्कि इसका विरोध शुरू हो चूका है। डा बीआर अंबेडकर के पोतों प्रकाश अंबेडकर और आनंद अंबेडकर ने भी इसे महज वोट बैंक करार दिया है।

प्रकाश अंबेडकर ने एक न्यूज चैनल से बातचीत में कहा कि बीजेपी 2019 चुनाव से पहले अपना एजेंडा चाहती है और ये सारा काम सिर्फ वोट बैंक के लिए कर रही है।

उन्होंने कहा, “बीजेपी चाहती है कि 2019 के चुनाव से पहले इसका अपना एजेंडा तैयार हो जाए, मेरी इंद्रियां कहती है कि चुनाव आते आते ये लोग मतदाताओं को कह सकते हैं कि अंबेडकर भी रामभक्त थे।

डा अंबेडकर के नाम में राम शब्द जोड़ने को लेकर बीजेपी के अंदर भी आवाज़ उठी है। बीजेपी सांसद और दलित नेता उदित राज ने भी कहा कि उनके निधन के इतने सालों पर नाम को बदलने का कोई मतलब नहीं है।

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TeamDigital