झूठा है तेरा वादा: मध्य प्रदेश में वादा पूरा न कर पाने वाले मंत्रियों को सीट बचाने के लाले
भोपाल ब्यूरो। मध्य प्रदेश में जहाँ बीजेपी सत्ता में वापसी के दावे कर रही है वहीँ पार्टी के अंदर की हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। राज्य में शिवराज सरकार के आधे से अधिक मंत्रियों को सीट बचा पाना भी मुश्किल हो गया हैं।
पार्टी सूत्रों की माने तो फ़िलहाल स्थति पहले जैसी नहीं है। सत्ता में वापसी के दावे ज़रूर किये जा रहे हैं लेकिन ज़मीनी हकीकत पार्टी के दावों से मेल नहीं खा रही। आने वाले खतरे के मद्देनज़र पार्टी आलाकमान कई सीटों पर नए चेहरे उतारने का मन बना चूका है।
इसका अहम कारण राज्य सरकार के कई मंत्रियों का असंतोषजनक कामकाज और कार्यकर्ताओं की नाराज़गी है। वहीँ पार्टी सूत्रों का कहना है कि अब राज्य का राजनैतिक परिदृश्य पूरी तरह बदल चूका है। स्थानीय मुद्दों के साथ साथ राष्ट्रीय मुद्दे भी पार्टी के सामने मूँह खोलकर खड़े हैं।
महंगाई और महिला सुरक्षा के राष्ट्रीय मुद्दे बीजेपी के समक्ष काल की तरह खड़े हैं। वहीँ राज्य सरकार के मंत्रियों द्वारा अपने वादे पूरा न कर पाना भी एक मुसीबत है। कई मंत्रियों की चिंता है कि वे पुराने वादे पूरे नहीं कर सके तो नए वादे किस मूँह से करेंगे ?
पार्टी सूत्रों की माने तो कुछ मंत्री स्वयं ही चुनाव लड़ने से मना कर चुके हैं। इन सीटों पर पार्टी नए उम्मीदवारों की तलाश कर रही है। पार्टी आलाकमान पहले ही कह चूका है कि नए युवा चेहरों को प्राथमिकता दी जाएगी।
ये बन सकते हैं बीजेपी की मुसीबत:
1- लालसिंह आर्य- फोरलेन सड़क, सिंध का पानी लाने की योजना सहित 110 करोड़ की पेयजल योजना पूरी न होने से नाराजगी, कार्यकर्ताओं में मंत्रीजी के व्यवहार को लेकर असंतोष
2- माया सिंह- पार्टी हाईकमान से टिकिट कटने की जानकारी मिलने के बाद चुनाव लड़ने की इच्छुक नही, पिछला चुनाव मात्र 1200 वोटों से जीती थीं। स्थानीय स्तर पर बीजेपी नेताओं द्वारा विरोध ।
3- जयभान सिंह पवैया- बीजेपी कार्यकर्ताओं को सार्वजानिक रूप से प्रताड़ित करने का आरोप, लोगों और कार्यकर्ताओं से व्यवहार में तल्खी से नाराजगी है।
4- गौरीशंकर बिसेन- कोई भी वादा पूरा नही कर सके, मेडिकल कॉलेज, सरेखा में ओवरब्रिज की घोषणा की थी। वादा अधूरा रहा। आय से अधिक संपत्ति का मामला हाई कोर्ट में।
5- सूर्यप्रकाश मीणा- विवादों में घिरने से छवि खराब। बेटे की दादागीरी के चलते जनता और कार्यकर्त्ता दोनों नाराज़।
6- बालकृष्ण पाटीदार: जनता से दूरी। मंत्री होने के बाद भी क्षेत्र में बड़ा विकास कार्य नहीं कर पाए। किसान भी नाराज।
7- शरद जैन- जनता से दूरी बनाये रहने का आरोप । पार्टी कार्यक्रमों में मौजूदगी कम, संवादहीनता के कारण कार्यकर्ता और जनता दोनों नाराज।
8- डॉ. गौरीशंकर शेजवार- 2008 में चुनाव हार चुके हैं। अब एंटीइनकमबेंसी के चलते बेटे मुदित शेजवार का नाम टिकट के लिए आगे बढ़ा रहे हैं। पुनः टिकिट जाने का विरोध । स्थानीय समस्याओं के निराकरण के लिए प्रयास नही करने का आरोप ।
9- रुस्तम सिंह- गैर गुर्जरों की समस्याओं को नही सूनने का आरोप, जातिवाद की छाप और गैर गुर्जर जातियों में असंतोष, 2008 में हार चुके हैं चुनाव।
10- कुसुम महदेले- स्थानीय स्तर पर कोई काम नहीं किए। सिर्फ जातिगत वोट ही मुख्य आधार।
11- रामपाल सिंह- पुत्रवधु द्वारा आत्महत्या करने से रघुवंशी समाज में नाराजगी।
12- ओमप्रकाश धुर्वे- पत्थरगड़ी के विरोध से समाज से तिरष्कृत, समाज ने हुक्कापानी बंद करवा दिया था।