चुनाव में लाभ लेने के लिए ‘हिन्दुत्व-हिन्दू’ के इस्तेमाल संबंधी फैसले की सुनवाई करेंगे सात जज
नई दिल्ली । चुनावी लाभ के लिए धर्म का दुरुपयोग करने को भ्रष्ट क्रियाकलाप बताने वाले चुनावी कानून पर साधिकार घोषणा वाले दो दशक पुराने हिंदुत्व संबंधी अपने फैसले पर सुप्रीमकोर्ट फिर से विचार करेगा । वर्ष 1995 के इसके फैसले पर सवाल उठाए गए थे और कहा गया था कि ‘हिंदुत्व, हिंदूवाद’ के नाम पर वोट किसी उम्मीदवार को पूर्वग्रह से प्रभावित नहीं करता और तब से शीर्ष अदालत में तीन चुनावी याचिकाएं इस विषय पर लंबित हैं।
प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर, न्यायमूर्ति एमबी लोकुर, न्यायमूर्ति एसए बोब्दे, न्यायमूर्ति एके गोयल, न्यायमूर्ति यूयू ललित, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव के सात न्यायाधीशों वाला पीठ इस मामले में मंगलवार को अपनी अहम सुनवाई शुरू कर सकता है। फरवरी 2014 में शीर्ष अदालत ने यह मामला सात न्यायाधीशों के पीठ के पास भेजा था।
शीर्ष अदालत की तीन न्यायाधीशों के पीठ ने 1995 में व्यवस्था दी थी कि ‘हिंदुत्व, हिंदूवाद उपमहाद्वीप में लोगों की जीवनशैली है और यह मनोवृत्ति है’। यह फैसला मनोहर जोशी बनाम एनबी पाटील मामले में सुनाया गया जिसे न्यायमूर्ति जेएस वर्मा ने लिखा था जिसमें पाया गया कि जोशी का बयान कि महाराष्ट्र में पहला ‘हिंदू राज्य स्थापित होगा’, धर्म के आधार पर अपील के लायक नहीं है।
यह टिप्पणी जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 123 की उपधारा तीन में बताए गए भ्रष्ट क्रियाकलापों के दायरे के संबंध में सवालों से निपटते हुए की गई थी। तीस जनवरी 2014 (शुक्रवार) को इस कानून की धारा 123 की उपधारा तीन की व्याख्या का मुद्दा पांच न्यायाधीशों के पीठ के सामने आया था जिसने इसे जांच के लिए सात न्यायाधीशों के बड़े पीठ के पास भेजा। सात न्यायाधीशोें का पीठ भाजपा नेता अभिराम सिंह द्वारा 1992 में दायर अपील पर गौर करेगा जिनका बंबई हाई कोर्ट ने 1991 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए निर्वाचन निरस्त कर दिया गया था।