चुनाव में फिर याद आये भगवान, पढ़िए-मंदिर मुद्दे की सियासी हकीकत
नई दिल्ली(राजाज़ैद)। विकास का ढिढोरा पीटने वाली भारतीय जनता पार्टी को एक बार भगवान् राम की याद आयी है। साढ़े चार साल तक राम मंदिर मुद्दे पर खामोश रहने वाली भारतीय जनता पार्टी और संघ एक बार फिर राममंदिर मुद्दा गर्माने के लिए संतो को आगे कर रही है।
राम मंदिर निर्माण की मांग कर रहे संतो का एक दो दिवसीय सम्मेलन दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में शामिल हुए अधिकांश संतो ने कोर्ट के फैसले में हो रही देरी पर नाराज़गी जताई।
संतो ने कहा कि कोर्ट का सम्मान है लेकिन राम मंदिर हमारा अधिकार है। स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा कि अगर सरकार 2019 चुनाव से पहले राम मंदिर बनवाने में नाकाम रहती है तो भगवान उन्हें सजा देगा. उन्होंने कहा कि कोई इसे लेकर गंभीर हो या नहीं लेकिन संत समाज मंदिर को लेकर गंभीर है।
इससे पहले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ(आरएसएस) की तीन दिन तक मुंबई में चली बैठक के बाद संघ के सरकार्यवाहक भैयाजी जोशी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि अगर जरुरत पड़ेगी तो राम मंदिर के लिए हम एक बार फिर 1992 जैसा आंदोलन करेंगे।
भैयाजी जोशी ने कहा कि अयोध्या को लेकर पिछले 30 साल से हम आंदोलन कर रहे हैं, सामूहिक रूप से समाज की अपेक्षा है कि अयोध्या में राम मंदिर बने। लेकिन अहम सवाल यह भी है कि यदि संघ राम मंदिर निर्माण के लिए गंभीर था तो वह साढ़े चार साल तक खामोश क्यों बैठा रहा। अब आम चुनाव करीब आते ही संघ क्यों जाग गया ?
ऐसे दिए जा रहे भड़काऊ बयान:
राम मंदिर निर्माण में अहम पेंच विवादित ज़मींन को लेकर फंसा है। सुप्रीमकोर्ट पहले ही कह चूका है कि इस मामले की कार्यवाही आम ज़मींन के मामलो की तरह ही होगी। मामला देश की सर्वोच्च अदालत में लंबित है। इसके बावजूद बीजेपी, विहिप और संघ के नेताओं की तरफ से भड़काऊ बयान आ रहे हैं।
विश्व हिंदू परिषद से ताल्लुक रखने वाली साध्वी प्राची ने मंदिर निर्माण पर अपनी आवाज बुलंद करते हुए कहा कि 6 दिसंबर को ही राम मंदिर का शिलान्यास करेंगे।
तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित अखिल भारतीय संत समिति के धर्मा देश में साध्वी प्राची ने कहा कि 6 दिसंबर को बाबरी का ढांचा गिराया गया था. अगर 6 दिसंबर तक या उसके पहले राम मंदिर निर्माण की घोषणा नहीं होती तो संत समाज खुद ही राम मंदिर निर्माण की घोषणा कर देगा.
उन्होंने कहा कि “राम जी का मंदिर बनेगा धूम-धाम से. 6 दिसंबर को ही हमें शिलान्यास करना है। अयोध्या के अंदर हिन्दुस्तान के हिन्दुओं को बुलाओ, राम मंदिर की घोषणा करो। किसी की जरूरत नहीं. राम मंदिर बन जाएगा।”
केंद्रीय मंत्री भी पीछे नहीं:
राम मंदिर निर्माण पर साढ़े चार साल तक कोर्ट का फैसला मानने की बात कहने वाली सरकार के मंत्री भी बयानबाज़ी में पीछे नहीं हैं। उमा भारती ने रविवार को कहा कि हिंदू दुनिया में सबसे ज्यादा सहिष्णु लोग हैं, लेकिन अयोध्या में राम मंदिर की परिधि में मस्जिद बनाने की बात उन्हें असहिष्णु बना सकती है।
उमा भारती ने अयोध्या विवाद को आस्था नहीं बल्कि जमीन का विवाद बताया। उन्होंने कहा कि अब यह मात्र जमीन विवाद का एक मामला है, आस्था का नहीं है। यह तय है कि अयोध्या भगवान राम का जन्म स्थान है।
वहीँ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से लेकर उप मुख्यमंत्री और मंत्रियों की तरफ से भी राम मंदिर निर्माण को लेकर लगातार बयान आना शुरू हो गए हैं। इससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि महंगाई, गंगा की सफाई, बेरोज़गारी जैसे मुद्दों पर फेल हुई मोदी सरकार के पास अब राम मंदिर मुद्दे को भुनाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा है।
क्या कहते हैं बाबरी मस्जिद के पक्षकार:
ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने संघ के उस बयान पर आपत्ति जताई है जिसमे राम मंदिर निर्माण के लिए 1992 जैसा आंदोलन छेड़ने की बात कही गयी है। बोर्ड ने आरएसएस के इरादे को देश के लिये बेहद खतरनाक बताया है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना वली रहमानी ने कहा कि जहां तक मंदिर निर्माण को लेकर तथाकथित हिन्दूवादी संगठनों में बेचैनी का सवाल है, तो साफ जाहिर है कि यह सियासी है। आगामी लोकसभा चुनाव को सामने रखकर यह दबाव बनाया जा रहा है। लेकिन वे संगठन दरअसल क्या करेंगे, अभी तक इसका सही अंदाजा नहीं है।
एक न्यूज़ एजेंसी से बात करते हुए मंदिर निर्माण के लिये वर्ष 1992 जैसा व्यापक आंदोलन छेड़ने के संघ के इशारे के बारे में रहमानी ने कहा कि संघ अगर आंदोलन शुरू करता है तो यह बहुत खतरनाक होगा। इससे मुल्क में अफरातफरी का माहौल पैदा हो जाएगा।
इस आशंका का कारण पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि वर्ष 1992 में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच नफरत इतनी ज्यादा नहीं थी। हाल के वर्षों में दोनों के बीच खाई बहुत गहरी हो गई है।
फिलहाल यह तो तय है कि राम मंदिर निर्माण को लेकर अचानक आयी बयानों की बाढ़ पूरी तरह सियासी है। केंद्र और राज्य में बीजेपी की सरकार है, मामला सुप्रीमकोर्ट में है ऐसे में बीजेपी के पास संतो को समझाने के लिए कोई ठोस कारण नहीं है।
सभी नज़रें संसद के शीतकालीन सत्र पर टिकी हैं। देखना है कि शीतकालीन सत्र के दौरान क्या मोदी सरकार राम मंदिर निर्माण के लिए संसद में कोई बिल लेकर आती है अथवा नहीं। हालाँकि कानून के जानकारों का कहना है कि यदि सरकार राम मंदिर निर्माण के लिए कोई अध्यादेश लाती है तो उसे भी सुप्रीमकोर्ट में चुनौती देकर स्टे लिया जा सकता है।