चुनावी वर्ष में बीजेपी की फजीहत करा सकता है पकोड़ा

चुनावी वर्ष में बीजेपी की फजीहत करा सकता है पकोड़ा

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पकोड़े बेचने को रोजगार बताये जाने के बाद आये राजनैतिक भूचाल को अब मध्य प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने और हवा दे दी है।

राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि पकोड़े बेचने में भी कैरियर बनाया जा सकता है । आनंदीबेन पटेल के इस बयान पर मध्य प्रदेश में राजनीति गर्म होने की संभावना है।

गौरतलब है कि इस वर्ष कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान सहित कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। 2014 में लोकसभा चुनाव के लिए अपने घोषणा पत्र में बेरोज़गारो को प्रतिवर्ष दो करोड़ नौकरियां देने के वादे में फेल रही भारतीय जनता पार्टी की सबसे बड़ी मुश्किल यही है कि अब उसी की पार्टी के सांसद और विधायक सरेआम मोदी सरकार के कामो पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करने लगे हैं।

अभी हाल ही में मध्य प्रदेश के मुरैना से सांसद अनूप मिश्रा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में संसद में केंद्र सरकार की योजनाएं सही से क्रियान्वित न होने का आरोप लगाते हुए कहा कि यदि योजनाएं धरातल तक नहीं पहुंचेंगी तो आम आदमी तक उसका लाभ नहीं पहुंचेगा।

वहीँ देश में बढ़ती बेरोज़गारी के बीच पकोड़े बेचने को कैरियर बनाने की संभावना का मोदी सरकार का जुमला बेरोज़गारो के गले नहीं उतर रहा। हाल ही में राजस्थान में हुए दो लोकसभा और एक विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी बेरोज़गारी में बढ़ोत्तरी का खामियाजा भुगत चुकी है।

जानकारों की माने तो देश का युवा तेजी से बीजेपी से दूरी बना रहा है। गुजरात में हुए विधानसभा चुनावो में बीजेपी का जनाधार घटने का एक बड़ा कारण राज्य में बढ़ती बेरोज़गारी को ठहराया गया था।

वहीँ केंद्र सरकार देश के बेरोज़गारो के लिए दो करोड़ नौकरियां देने के अपने वादे को प्रमाणित करने के लिए स्वतः रोज़गार योजनाओं के अंतर्गत हुए युवाओं के पंजीकरण का हवाला देकर अपने दावों को सही बता रही है।

जानकारों के अनुसार रोज़गार के नाम पर पकोड़े बेचने का बीजेपी का जुमला चुनावो में उसकी फजीहत भी करा सकता है। जानकारों के अनुसार बीजेपी देश में बेरोज़गारी बढ़ने के बड़े मुद्दे को नज़रअंदाज करती रही तो उसे विधानसभा के साथ लोकसभा चुनावो में भी इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

सीएमआईई के आंकड़ों को सच माना जाए तो नोट बंदी के बाद चार महीनों में 15 लाख लोगों की नौकरियां चली गयी थीं। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) द्वारा जारी किए गये जनवरी-अप्रैल 2017 तक के आंकड़ों के अनुसार इन चार महीनों में करीब 15 लाख नौकरियां चली गईं। आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2016 – 2017 में सभी सेक्टरों में नौकरियों में कमी दर्ज की गयी है। सीएमआईई का आंकड़ा अखिल भारतीय हाउसहोल्ड सर्वे पर आधारित है जिसमें पूरे देश के 161167 घरों के 519285 वयस्कों का सर्वे किया गया था।

भारत सरकार के श्रम मंत्रालय के रोजगार सर्वे के आंकड़े भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि देश में नोट बंदी लागू होने के बाद से नौकरियों में कमी आई है। वहीँ सीएमआईई के अनुमान के मुताबिक जनवरी-अप्रैल 2017 के दौरान कुल 40.50 करोड़ नौकरी पेशा लोग थे जबकि उससे पहले के चार महीनों में ये संख्या 40.65 करोड़ थी।

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार लोगों को रोजगार लायक बनाने के लिए चलाई गई इस विशेष योजना पीएमकेवीवाई के जुलाई 2017 के पहले हफ्ते के आंकड़ों के अनुसार पूरे देश में केवल 30.67 लाख लोगों को इस योजना के तहत प्रशिक्षण दिया गया लेकिन उनमें से करीब 10 प्रतिशत (2.9 लाख) को ही नौकरी मिली।

वहीँ आईटी और फाइनेंस को छोड़कर अन्य सेक्टरों की 121 कंपनियों में नोटबंदी के बाद रोजगार में कमी आयी है। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध 107 कंपनियों में एक साल में कर्मचारियों की संख्या में 14,668 की कमी आयी।

वहीँ भारत के लेबर ब्यूरो द्वारा जारी सालाना हाउसहोल्ड सर्वे के आंकड़ों के अनुसार देश में बेरोजगारी दर पिछले पांच सालों के सर्वोच्च स्तर पर है। लेबर ब्यूरो द्वारा जारी 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार देश में बेरोजगारी की दर पांच प्रतिशत पहुंच चुकी थी।

जहाँ केंद्र सरकार ने प्रतिवर्ष दो करोड़ लोगों को रोज़गार देने की बात कही थीं वहीँ श्रम ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2016-17 में कुल 4 लाख 16 हजार लोगों के लिए रोजगार सृजन हुआ है। इनमें से 77 हजार पहली तिमाही में, 32 हजार दूसरी तिमाही में, 1 लाख 22 हजार तीसरी तिमाही में और 1 लाख 85 हजार चौथी तिमाही में रोजगार सृजन हुआ है।

2014 के मेनीफेस्टो में रोजगार बढ़ाना बीजेपी के मुख्य एजेंडे में शामिल था, रोजगार बढ़ाने लिए बड़े-बड़े वादे भी किए गए थे लेकिन रोजगार को बढ़ाना तो दूर की बात है, बड़े महकमे में जो पद सालों से खाली है वो भी अब तक नहीं भरे जा पाए हैं।

अगर बात फैक्ट एंड फिगर पर की जाए तो साढ़े तीन सालों में मोदी सरकार रोजगार देने के मामले में अब भी वो रफ्तार नहीं पकड़ पाई है, जो उसे पाना था। रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए मोदी ने अलग से कौशल विकास मंत्रालय बनाया, थर्ड-फोर्थ ग्रेड की सरकारी नौकरियों में धांधली रोकने के लिए इंटव्यू प्रक्रिया को खत्म कर दिया और इसका एलान खुद पीएम मोदी ने किया था। इसके बावजूद देश में बेरोज़गारी बढ़ी है।

(राजा ज़ैद)

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