गुजरात दंगा: पैरोल पर गया तो लौटा ही नहीं आरोपी, कोर्ट से कहा- फैसले के बाद आऊंगा

Gulmarg

अहमदाबाद । गुजरात में 2002 के गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार केस से जुड़ा एक और आरोपी ‘लापता’ हो गया है। दो सप्‍ताह से उसका कोई पता नहीं है। बेल या पैरोल पर जाने के बाद आरोपियों के नहीं लौटने का इस केस में यह दूसरा मामला है। इसमें पुलिस की भूमिका पर भी सवालिया निशान लग रहे हैं ।

इससे पहले आरोपी कैलाश लालचंद धोबी पैरोल की मियाद खत्‍म होने के बावजूद नहीं लौटा। उसने गुजरात हाईकोर्ट को एक चिट्ठी भी लिख डाली। इसमें उसने लिखा कि अब वह केस का फैसला (जो मई में आने की उम्‍मीद है) हो जाने पर ही लौटेगा। यह देश में अपनी तरह का पहला मामला है।

अब मामले में सह अभियुक्‍त शिवचरण रामजीलाल नाथ उर्फ जितेंद्र उर्फ लल्‍लू का दो हफ्ते से पता नहीं है। वह जमानत पर था। पत्‍नी का इलाज कराने के लिए हाईकोर्ट ने 31 मार्च को उसकी अंतरिम जमानत एक हफ्ते के लिए और बढ़ा दी थी। उसे 8 अप्रैल को साबरमती सेंट्रल जेल लौट जाने का आदेश दिया गया था।
लेकिन वह जेल नहीं पहुंचा। तब जेल प्रशासन ने इसकी जानकारी पुलिस थाने को दी।

लल्‍लू को इस मामले में एसआईटी (विशेष जांच दल) ने 2008 में अभियुक्‍त बनाया था। वह 2010 तक भगौड़ा घोषित था। 2010 में उसे पकड़ा गया। तब से उसे साबरमती जेल में रखा गया था। लल्‍लू से पहले कैलाश लालचंद धोबी भी नहीं लौटा था। 14 साल से जेल में बंद धोबी पैरोल पर था। 22 जनवरी को उसके पैरोल की मियाद खत्‍म हो गई थी। लेकिन वह नहीं लौटा।

25 जनवरी को हाईकोर्ट ने अंतरिम जमानत बढ़ाने की उसकी अपील भी खारिज कर दी। फिर भी वह नहीं लौटा। उसके करीबी सूत्र बताते हैं कि उसने हाईकोर्ट को चिट्ठी लिख कर कह दिया कि वह अब केस का फैसला आ जाने के बाद ही लौटेगा। लल्‍लू और धोबी गुलबर्ग सोसायटी नरसंहार मामले के 66 अभियुक्‍तों में शामिल हैं।

गौरतलब है कि 2002 के गुजरात दंगों के दौरान गुलबर्ग सोसायटी में 69 लोगों को मार डाला गया था। इनमें पूर्व कांग्रेसी सांसद अहसान जाफरी भी शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गठित एसआईटी ने इस मामले की जांच की है।

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