गंगा की सफाई पर एनजीटी की केंद्र और राज्य सरकार को फटकार, कहा नतीजा शून्य है
नई दिल्ली । एनजीटी (राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण) ने कहा कि गंगा की सफाई के संदर्भ में केंद्र और उत्तरप्रदेश के प्रयासों का ‘शून्य’ परिणाम प्राप्त हुआ है। एनजीटी ने आज नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए हरिद्वार और कानपुर के बीच नदी में औद्योगिक कचरा प्रवाहित किए जाने के बारे में रिपोर्ट पेश करने को कहा।
हरित न्यायाधिकरण ने गंगा की सफाई के संदर्भ में स्पष्ट रुख नहीं अपनाने के लिए वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, जल संसाधन मंत्रालय, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं अन्य प्राधिकरण की खिंचाई की और इनसे दो सप्ताह के भीतर रिपोर्ट पेश करने को कहा।
एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा, ‘हर कोई हमारे समक्ष आता है और कहता है कि हमने यह किया है, हमने वह किया है। लेकिन इसका परिणाम शून्य है। मुख्य सवाल यह है कि आप हरिद्वार से कानपुर तक गंगा नदी की सुरक्षा कैसे करने जा रहे हैं ? आप क्या करने जा रहे हैं ? अपनी योजना के बारे में बताएं।’
पीठ ने कहा, ‘आप हमारे समक्ष आते हैं और यह बताते हैं कि समस्या गंभीर है। लेकिन इसका समाधान क्या है? दुर्भाग्य से बार-बार निर्देश देने के बावजूद रिकॉर्ड पर कुछ नहीं सामने आया है। राज्य सरकारों की अलग प्राथमिकताएं हैं। लेकिन हमारी एक ही प्राथमिकता है और यह गंगा को साफ करने की है और हम ऐसा करेंगे।’
निर्देशों का पालन नहीं करने से क्षुब्ध एनजीटी ने सभी अधिकारियों, मंत्रालयों और उत्तरप्रदेश सरकार को जरूरी सूचना प्रदान करने के लिए दो सप्ताह का ‘अंतिम मौका’ दिया। हरित न्यायाधिकरण ने चेतावनी दी कि इसमें कोई कोताही होने पर सभी संबंधित सचिवों पर 25-25 हजार रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा।
न्यायाधिकरण ने कहा कि नदी साफ करने की परियोजना, तरल कचरे के उत्सर्जन और गंदे जल की शुद्धि तथा नदी के तट पर सभी उद्योगों पर ऑनलाइन नजर रखने आदि के लिए वित्तपोषण के स्रोत के संबंध में कुछ भी ठोस नहीं हुआ है।
गंगा की सफाई के संदर्भ में याचिका दायर करने वाले वकील एम सी मेहता ने कहा कि नदी तब तक साफ नहीं हो सकती जब तक राज्य सरकारें और उनकी एजेंसियां उद्योगों के आंकड़े स्पष्ट रूप से पेश नहीं करते हैं। उन्होंने इस संदर्भ में 1987 के बाद से गंगा के बारे में उच्चतम न्यायालय के विभिन्न फैसलों का भी जिक्र किया।