क्या 2019 होगा मोदी बनाम यंग इंडिया, ये बनेगी चुनावी तस्वीर !

क्या 2019 होगा मोदी बनाम यंग इंडिया, ये बनेगी चुनावी तस्वीर !

नई दिल्ली(राजाज़ैद)। भारतीय जनता पार्टी ने भले ही गुजरात फतह कर लिया हो लेकिन उसकी असल अग्नि परीक्षा 2019 में होगी। यहाँ सबसे बड़ा प्रश्न यही उभर कर सामने आता है कि आगामी लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का अहम मुद्दा विकास होगा या हिंदुत्व ? जैसा कि गुजरात चुनाव में देखा गया, भारतीय जनता पार्टी ने एक के बाद एक मुद्दा बदला। कभी विकास तो कभी हिंदुत्व लेकिन मुद्दा बदलने का सिलसिला तब तक जारी रहा जब तक प्रचार में पाकिस्तान न आगया।

गुजरात चुनाव में बीजेपी की जो भी मजबूरियां रही हों इसलिये उसने मजबुरीवश मणिशंकर अय्यर के बयान को गुजरात की अस्मिता से जोड़कर अपनी ढाल बनाने की पुरजोर कोशिश की। हालाँकि मणिशंकर अय्यर के बयान का गुजरात से कोई लेना देना नहीं था इसके बावजूद पीएम मोदी ने मणिशंकर अय्यर के बयान को अपनी सभाओं में लगातार दोहराया। जब दूसरे चरण के लिए चुनाव प्रचार चल रहा था उस समय बीजेपी को यह स्पष्ट तौर पर आभास हो गया था कि चुनाव उसके हाथ से निकल चूका है। सम्भवतः यही बड़ा कारण था कि मणिशंकर अय्यर के बयान के बाद पाकिस्तान को भी चुनाव प्रचार में घसीटना पड़ा।

बात 2019 यानि अगले लोकसभा चुनाव की करें तो एक चीज़ बड़ी स्पष्ट दिखाई दे रही है, वह यह कि आगामी लोकसभा चुनाव में नई पीढी बीजेपी और पीएम मोदी के लिए बड़ी चुनौती बनेगी। कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर सोनिया गांधी के बाद इस बार राहुल गांधी मैदान में होंगे। वहीँ उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की जगह अखिलेश यादव, बिहार में लालू की जगह तेजस्वी यादव, तमिलनाडु में डीएमके की तरफ से एम् करूणानिधि की जगह उनके बेटे स्टेलिन मैदान संभालेंगे।

हालाँकि यह कहना जल्दबाज़ी होगा कि राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष का गठजोड़ होगा या नहीं लेकिन इतना तय है कि कई राज्यों में भारतीय जनता पार्टी को नई पीढ़ी से जूझना पड़ेगा।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने हाल के गुजरात चुनाव में इस तरह का एक्सपेरिमेंट भी किया। गुजरात में हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर ने कहीं न कहीं यह सन्देश ज़रूर दिया है कि अगला लोकसभा चुनाव पीएम मोदी और यंग इंडिया के बीच होगा।

गुजरात चुनाव में भले ही भारतीय जनता पार्टी को विजय मिली हो लेकिन हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर के कांग्रेस के साथ जाने से बीजेपी को जीत के लिए बड़ी मशक्क्त करनी पड़ी।

लोकसभा चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी की दो बड़ी मुश्किलें हैं। पहला ये कि मुद्दा क्या होगा दूसरा पार्टी का युवा चेहरा कौन है ? जहाँ तक मुद्दों का सवाल है तो कांग्रेस गुजरात की तर्ज पर मुद्दों आधारित प्रचार करेगी। जानकारों की माने तो केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के पांच साल के कार्यकाल पूरा होने के बाद कांग्रेस के पास मुद्दों का टोटा नहीं पडेगा।

किसानो का शोषण, देश में बढ़ती बेरोज़गारी,नोटबंदी, जीएसटी को छोड़ भी दें तब भी कांग्रेस के पास मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करने के लिए मोदी सरकार की विदेश नीति, कश्मीर समस्या, गंगा की सफाई, मेक इन इंडिया तथा अर्थ व्यवस्था को लेकर कई मुद्दे तैयार खड़े हैं। जानकारों की माने तो बीजेपी को कई राज्यों में उसकी सरकार होने का खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है।

जिन जिन राज्यों में बीजेपी की सरकार है वहां सरकार से जनता की नाराज़गी के चलते बीजेपी को विरोध झेलना पड़ सकता है और यह विपक्ष के लिए प्लस पॉइंट बनेगा। जानकारों के अनुसार कई राज्यों में जातिगत समीकरण पूरे चुनाव को प्रभावित करते हैं। यदि आने वाले लोकसभा चुनाव में विपक्ष किसी तरह का गठजोड़ बनाने में कामयाब रहा तो जातिगत समीकरण बीजेपी के खिलाफ जा सकते हैं। खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा ऐसे राज्य हैं जहाँ जातिगत समीकरण पूरे चुनाव पर हावी रहते हैं।

उत्तर प्रदेश में यदि सपा,बसपा, कांग्रेस और रालोद एकजुट हुए तो परिणाम बेहद चौकाने वाले हो सकते हैं। हालाँकि यह तय माना जा रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव में भी सपा और कांग्रेस का गठबंधन जारी रहेगा लेकिन क्या इस गठबंधन में बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल भी शामिल होगा, ये एक बड़ा सवाल है जिसके बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।

वहीँ बिहार में भी यह तय माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल और शरद यादव गुट मिलकर चुनाव लड़ेंगे। इसलिए बिहार में गठबंधन को लेकर फिलहाल कोई टकराव दिखाई नहीं देता।

ठीक ऐसी ही स्थति तमिलनाडु में भी बनती दिख रही है। यहाँ भी कांग्रेस और डीएमके मिलकर चुनाव लड़ने को तैयार हैं और संभावना है कि सीटों का बंटवारा आसानी से हो जायेगा।

जिन राज्यों में विपक्ष के गठजोड़ को लेकर सवाल खड़े होंगे उनमे पश्चिम बंगाल एक ऐसा राज्य है जहाँ यूपी की तरह पेंच फंसेगा। पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट और ममता एक दूसरे के साथ आएंगे ऐसी सम्भावना बहुत कम है। यहाँ बामपंथी कांग्रेस के साथ आने को तैयार दिख रहे हैं लेकिन वे ममता की तृणमूल कांग्रेस के साथ आने को राजी नहीं हैं।

हालाँकि पटना में लालू यादव के राष्ट्रीय जनता दल की महारैली में ममता और कम्युनिस्ट के मंच पर आये थे लेकिन इसका मतलब यह नहीं लगाया जा सकता कि वे चुनावो में भी एक साथ आ सकते हैं।

वहीँ सूत्रों की माने तो राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और शरद यादव विपक्ष का गठजोड़ बनाने के लिए अभी से सक्रीय हैं। सूत्रों के मुताबिक लालू चाहते हैं कि 2019 में बीजेपी के खिलाफ विपक्ष का महागठबंधन बने। सूत्रों की माने तो लालू प्रसाद यादव और शरद यादव इस महागठबंधन में ममता बनर्जी की टीएमसी के साथ बाम दलो और आम आदमी पार्टी से लेकर असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम को भी शामिल करना चाहते हैं।

सूत्रों के मुताबिक विपक्ष के इस प्रस्तावित गठजोड़ में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, शरद यादव गुट का जदयू, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, डीएमके, बामपंथी दल, एच डी देवगौड़ा वाली जनता दल सेकुलर, नवीन पटनायक की बीजू जनता दल, असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम, राष्ट्रीय लोकदल, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी आदि को शामिल किये जाने के लिए बातचीत जारी है।

सूत्रों ने कहा कि विपक्ष को एकजुट करने के काम में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी अपनी अहम भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं। बता दें कि राष्ट्रपति चुनाव के दौरान सोनिया गांधी ही विपक्ष को एकजुट करने के काम में शरद यादव और लालू प्रसाद यादव का सहयोग कर रही थीं।

अगले लोकसभा चुनाव यदि निश्चित समय पर ही हुए तो अभी एक साल से अधिक का समय बाकी है लेकिन ऐसी भी संभावनाएं हैं कि भारतीय जनता पार्टी 2018 के अंत में राजस्थान और मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावो के साथ ही लोकसभा चुनाव कराये। यदि ऐसा हुआ तो विपक्ष को गठजोड़ करने की दिशा में स्पीड से काम करना पड़ेगा।

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