‘कौशल विकास योजना’ केन्द्र सरकार नही बल्कि नरेन्द्र भाई मोदी के लिए सबक है
ब्यूरो (संजय रोकड़े)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने तीन साल के कार्यकाल में जितनी भी योजनाएं बनाई है वह धरातल पर असरकारी साबित नही हो पाई है। हर एक साल में एक करोड़ युवाओं के लिए नए रोजगारों के सृजन की बात हो या चाहे आदर्श ग्राम योजना के तहत गांवों को आदर्श बनाना हो या फिर चाहे मेक इन इंडिय़ा या मुद्रा योजना का मामला हो इन सभी में अभी तक काम कम बातें अधिक हुई है।
कौशल विकास योजना को लेकर भी बड़ी-बड़ी बातें की गई लेकिन इसके तहत भी कुछ हासिल नही हुआ है। इस योजना की सफलता में पैसा बाधक न बने इसके लिए अभी-अभी मोदी सरकार ने विश्व बैंक से 25 करोड़ डॉलर का कर्ज भी लिया है। विश्व बैंक ने भी बिना किसी बाधा के इतना बड़ा कर्ज इसलिए दे दिया कि यहां के युवा कौशल हासिल कर कुशल बन कर देश की आर्थिक वृद्धि और समृद्धि में योगदान दे सके। असल में इस योजना की असलियत भी कुछ और ही है।
जब मोदी सरकार ने इसकी सच्चाई जानने के लिए धरातल पर एक इंटरनल सर्वे करवाया तो बहुत चिंताजनक स्थिति सामने आई। कौशल विकास योजना को संचालित करने वाले मंत्रालय की इंटरनल ऑडिट रिपोर्ट में इस बात का स्पष्ट रूप से जिक्र है कि सरकार द्वारा अनुदानित करीब 7 फीसदी संस्थान सिर्फ कागजों पर चल रहे हैं। इनके अलावा 21 फीसदी संस्थान ऐसे है जिनके पास ट्रेनिंग के लिए बेसिक इक्वीपमेंट व संसाधन तक नहीं हैं।
स्किल इंडिया मिशन की हकीकत को जानने के लिए किए गए सर्वे के दौरान सर्वेयर को अनेक स्थानों पर ट्रेनिंग सेंटर की जगह कहीं मैरिज हॉल तो कहीं हॉस्टल मिला। देश के अकुशल युवाओं को हुनरमंद बनाने वालीकौशल विकास योजना मोदी सरकार खास कर नरेन्द्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट रही है। मगर शुरुआती दौर में ही यह फिसड्डी साबित हो रही है।
प्रधानमंत्री ने बड़े ही उत्साह और विश्वास के साथ देश के युवाओं में कौशल विकास पैदा करने, उन्हें हुनरमंद बनाने व उनके स्वरोजगार के लिए स्किल इंडिया अभियान की शुरुआत की थी लेकिन यह धरातल पर उतरने की बजाय सपना ही साबित होते दिख रही है। सनद रहे कि इस योजना को लेकर विश्व बैंक भी बेहद आशावादी रहा है। इसी के चलते मोदी सरकार के ‘स्किल इंडिया’ मिशन को विश्व बैंक ने अपना न केवल समर्थन दिया बल्कि 25 करोड़ डॉलर का कर्ज भी बिना किसी विलंब के मंजूर कर दिया। जब इस योजना की खुबियों के बारे में विश्व बैंक के अफसरों को अवगत किया गया तो वे भी इससे अभिभूत होने से नही बच सके।
विश्व बैंक ने इसकी खुबियों को जानने के बाद एक बयान भी जारी किया- इसमें कहा कि इस योजना से युवाओं को अधिक कुशल बनाया जा सकेगा। उन्हें रोजगार पाने में आसानी होगी। यह कदम कौशल भारत मिशन के अनुकूल है। हम भारत सरकार के युवाओं को अधिक कुशल बनाने के प्रयासों में समर्थन के इच्छुक है। इसके साथ ही बयान में जोड़ा कि 25 करोड़ डालर के कौशल भारत मिशन परिचालन (सिमो) को बैंक के कार्यकारी निदेशकों के बोर्ड ने मंजूर किया है।
बता दें कि बीते साल ऑस्ट्रेलिया के एक थिंक टैंक ने भी इस योजना के तहत भारत की मदद करने को कहा था। उस समय ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न के थिंक-टैंक इंडिया इंस्टीट्यूट (एआईआई) ने कहा था वह कौशल विकास सुधार के लिए भारत की मदद कर सकता है लेकिन उसे मौजूदा प्रशिक्षण व्यवस्थाओं पर मूलभूत शोध करने की जरूरत है। इसके साथ ही योजनाओं को भारत की दीर्घकालीन आर्थिक रणनीति के अनुरूप ढालने की बात कही थी। एआईआई ने ‘स्किल इंडिया’ को भारत सरकार की एक बड़ी नीतिगत पहल भी बताया था। बेशक प्लान अच्छा है लेकिन इरादे मजबूत और नेक नही है।
चालीस करोड़ भारतीय युवाओं को हुनरमंद बनाने वाली यह महत्वाकांक्षी योजना देश का भाग्य बदल सकती है लेकिन यह सच में परिणित तब हो पाएगा जब इसके कर्ताधर्ता ईमानदारी से इसे क्रियान्वित करवाएं। बताते चलूं कि जब इस योजना का लोकार्पण किया जा रहा था तब पीएम नरेन्द्र मोदी ने एक बेहद रोचक बात कही थी- यदि चीन दुनिया की फैक्टरी बन सकता है, तो भारत संसार में मानव संसाधन प्रदान करने वाला धुरी क्यों नही बन सकता है? इसमें कोई दो राय नही कि हम संसार में मानव संसाधन मुहैया करने वाली धुरी बन सकते थे गर इस योजना को ईमानदारी से अमल में लाते। अभी इसके क्रियान्वयन को लेकर जो कारगुजारियां देखी जा रही है उसे देखते हुए तो यही कहा जा सकता है कि अगर आलम यही रहा तो हम संसार के मेनपावर की धुरी बनना तो दूर, अपने युवाओं को देश की अर्थ व्यवस्था में सहभागी तक नही बना पाएगें।
अब तक इस योजना का लाभ कितने युवाओं को मिला, इसका संचालन कैसे हो रहा है इसकी जमीनी सच्चाई क्या है जैसे तमाम व्यवहारिक कारणों को जानने के लिए एक मीडिय़ा संस्थान ने भी धरातल पर स्टिंग किया है। इस संस्थान ने भी अपने स्टिंग में यही पाया कि देश भर में ऐसे सैकड़ों सेंटर हैं, जिनके नाम सरकारी वेबसाइट की लिस्ट में तो हैं लेकिन असलियत में वहां कोई ट्रेनिंग सेंटर नहीं चल रहा है। एक रिर्पोट भी जारी की है। उस रिर्पोट के अनुसार सात फीसदी संस्थान भूतों का अड्डा बन चुके हैं। यानी उन संस्थानों में किसी तरह का कौशल विकास प्रशिक्षण नहीं दिया जा रहा है।
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत चलने वाले ऐसे अधिकांश ट्रेनिंग सेंटर राजस्थान, यूपी और हरियाणा में संचालित हैं। मीडिय़ा संस्थान के कर्मचारी जब दिल्ली से 60 किलोमीटर दूर एनसीआर के ग्रेटर नोएडा पहुंचें तो वहां एक ऐसे सेंटर का पता लगा जो वहां था ही नहीं। वहां एक हॉस्टल चल रहा था,जबकि नेशनल स्किल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन की वेबसाइट के मुताबिक वहां एसपीईजी नाम के कौशल विकास केन्द्र का संचालन हो रहा है और उसमें 480 छात्रों को ब्यूटी और हेयर ड्रेसिंग की ट्रेनिंग दी जा रही है। जब हॉस्टल के गार्ड से इस बारे में पूछा गया तो उसने किसी तरह के ट्रेनिंग सेंटर होने या किसी तरह का ट्रेनिंग कोर्स चलाए जाने से इनकार कर दिया।
गार्ड ने स्पष्ट कहा कि यहां एकमात्र ब्वॉयज हॉस्टल चलता है। ठीक इसी तरह से यूपी के ही दूसरे शहर इटावा के जसवंत नगर में एक फुटवेयर डिजायन इंस्टीटयूट का भी हाल जाना। वहां पहुंचने पर पता चला कि यहां भी किसी प्रकार की ट्रेनिंग नहीं दी जा रही है बल्कि यह एक वेडिंग हॉल है। जब कौशल विकास मंत्रालय के अधिकारियों को इस बाबत जानकारी दी गई तो उन लोगों ने इस तरह के संस्थानों का नाम वेबसाइट की लिस्ट से हटाने की बात कह कर अपना पल्ला झाड़ लिया।
खैर! इस तरह के सेंटर की जानकारी तो अफसरों के नालेज में पहले से ही होती है। इन अफसरों के कारण ही तो योजनाओं का ये हाल होता है। बहरहाल ये सब बड़े ही विवादित और पैचिदा मामले है। लेकिन यहां सौ टके का सवाल तो ये है कि न खाऊगां न खाने दूगां वाले प्रधानमंत्री के राज में इस तरह के कारनामे क्यों और कैसे हो रहे है। जब इस तरह की फर्जी गतिविधियों व अनियमितताओं की सूचना हमें कर्ज देने वाले विश्व बैंक तक पहुंचेगी तो हमारी साख का क्या होगा?
इन सबसे भी हट कर बात करे तो हमारे उन अकुशल युवाओं को रोजगार कौन देगा जो बेरोजगारी की कतार को दिन दुनी रात चौगुनी लंबी कर रहे है। आज भी हमारे पास बेरोजगार युवाओं की खासी तादात है। ऐसे बेरोजगार जो इंजीनियर, एमबीए है उन्हें हम रोजगार नही दे पा रहे है।हमारे पास इनके हाथों में काम देने की कोई कारगर रण्नीति भी नही है। केन्द्र सरकार योजना पर योजना बनाए जा रही है लेकिन जमीन पर इनका कोई प्रभाव नही दिखाई दे रहा है।
पिछले तीन सालों में एक दर्जन से अधिक राष्ट्रीय स्तर की योजनाएं शुरू की है-स्वच्छ भारत, मेक इन इंडिय़ा, प्रधानमंत्री जन-धन योजना, स्मार्ट सिटी, डिज़ीटल इंडिय़ा वगैरह। इन योजनाओं का भी खुदा ही मालिक है। अब तक जितनी भी योजनाएं बनी है इनकी सफलता भी इस बात पर निर्भर करती है कि कितनी जल्दी हम भारतीय युवाओं को भविष्य में पैदा होने वाली नौकरियों के लिए प्रशिक्षित कर पाते है। फिल वक्त भारत में श्रमिकों में सिर्फ 3. 5 फीसदी किसी खास कौशल में प्रशिक्षित है, जबकि चीन में 46, जर्मनी में 74 और कोरिया में 96 प्रतिशत तक श्रमिक प्रश्ििक्षत है।
इन देशों में पिछले पचास-साहठ वर्षों में सरकार व उद्योगों के प्रयास से ही वहां की श्रमशक्ति हुनरमंद बन सकी है। पर क्या हम 2022 तक एक तिहाई श्रमशक्ति को प्रशिक्षित व हुनरमंद बना पाएगें? पांच साल में 40 करोड़ युवाओं को हुनरमंद बनाना असंभव नही है, मगर जिस तरह से हुनरमंद बनाने की योजना चल रही है उसे देखते हुए तो ये काम बड़ा चुनौतीपूर्ण ही दिखाई देता है।
हम पीएम मोदी के कथन के अनुरूप संसार में मानव संसाधन प्रदान करने वाले राष्ट्र के रूप में धुरी बन सकते थे। पूरी दुनिया में प्रशिक्षित श्रमिक भेज सकते है, पर क्या हम उसे संभव बनाने के लिए जरूरी कार्य संस्कृति,सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन को तैयार है।
सवाल तो ये भी है कि अगर हम गैर जिम्मेदाराना रवैये से हटकर छोटी- मोटी गलतियों का सुधार कर भी ले और सही रास्ते पर चलना सीख भी जाए तब भी हम अपने मकसद में कितना सफल हो पाएगें यह यक्ष प्रश्र हमारे सामने फिर भी खड़ा है। इसके साथ ही कौशल विकास के लक्ष्यों को पूरा करते समय हमें भविष्य में आने वाले खतरों के प्रति भी सचेत रहना होगा।
आज जिस हुनर और कौशल के प्रति हम आशान्वित है, जरूरी नही कि भविष्य में भी उनकी जरूरत बनी रहे। काबिलेगौर हो कि सन 2030 में विकसित देशों में पांच करोड़ नौकरियों के लिए युवा शक्ति की कमी होगी और तब भारत में पांच करोड़ युवा नौकरियां ढूंढ़ रहे होगें। आने वाला समय और भी भयावह होने वाला है। रोबोटिक, इंटरनेट, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, बायोटेक्नालाजी, डाटा-एनेलिटिक्स, ई-कामर्स जैसे क्षेत्रों में जो क्रांतिकारी परिवर्तन हो रहे है, वे भी करोड़ों मौजूदा नौकरियों को निगल जाएगें। क्या ऐसी स्थिति में हमारे युवा फिर से बेरोजगारी का शिकार नही बनेगें? इस समय मोदी सरकार को युवाओं से संबंधित किसी भी योजना को हाथ में लेने के पूर्व उसकी कठिनाइयों पर खुल कर विचार कर लेना चाहिए।
हालाकि इस राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन की स्थापना तो यूपीए-2 के कार्यकाल में राष्ट्रीय कौशल नीति के तहत वर्ष 2009 में हो चुकी है। एनड़ीए सरकार ने तो एक अच्छा काम यह किया है कि विभिन्न मंत्रालयों में चल रही बहुत सारी कौशल योजनाओं को कौशल विकास मंत्रालय के अंतर्गत लाकर बिखराव को खत्म किया है। काबिलेगौर हो कि चालीस करोड़ युवाओं को हुनरमंद बनाने की यह मुहिम सिर्फ नया मंत्रालय बनाने और 11 मंत्रालयों में बेहतर तालमेल बिठाने भर से संभव नही होगी। इसके क्रियान्वयन में होनी वाली घपलेबाजी और अधां बाटे रोवड़ी अपनों- अपनों को दे कि नीति से उपर उठ कर काम करना होगा।
इस योजना को सफल बनाने का अहम पहलू बजट भी है। इस पर अनुमानत: 8 लाख करोड़ रूपये खर्च होगें। इस हिसाब से सालाना 6 हजार करोड़ रूपये का बजट ऊंट के मुंह में जीरा के समान है। बजट की समस्या से भी निजात पा ले तो भी प्रश्र यह है कि युवा कौशल विकास के प्रशिक्षण पर अपना पैसा और समय क्यों लगाएं,जब नियोक्ता उन्हें बेहतर पारिश्रमिक देने को तैयार न हो। अगर नौकरी देने वाला कम वेतन देकर अकुशल श्रमिकों से संतुष्ट है, तो कौशल प्रशिक्षण की मांग बहुत कम होगी।
आज के समय में यही हाल स्कूलों व कालेजों से निकलने वाले युवाओं का है, जो कि स्कील डेवलपमेंट की बजाय डिग्रियां लेना ज्यादा पसंद कर रहे है। आज के अभिभावक भी यह नही चाहते है कि उनके बच्चे प्लंबर, हेयर डे्रसर, ब्यूटीशियन, ड्राइवर, टेलर, इलेक्ट्रिशियन, कंपाउंडर या नर्स बने। अब अभिाभावक अपने बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, पत्रकार, चार्टड एकाउंटेंड, आईएएस, आईपीएस, स्टेट सिविल सर्विसेज के अफसर बने हुए देखना चाहते है।
बेशक ये सभी पद कभी भारतीय उच्च वर्ग की बपौती समझे जाते थे लेकिन आज तो हर कोई सामाजिक स्टेटस की जिंदगी जीना चाहता है। अब माता-पिता और युवा हुनर की बजाय आर्थिक सुरक्षा और संपन्नता देने वाले पेशों व नौकरियों की तरफ बढ़ रहे है। फिर क्यों कोई इस तरह के हुनर को लालायित होगे। बावजूद इसके कौशल विकास योजना तभी कामयाब होगी, जब हम हुनरमंद युवाओं के लिए देश के अंदर और बाहर एक इज्जतदार जिंदगी देना सुनिश्चत कर सके। चालीस करोड़ भारतीय युवाओं को हुनरमंद बनाने वाली यह महत्वााकांक्षी योजना देश का भाग्य बदल सकती है लेकिन यह अवसर हमारी सोच को बदलने का भी है। असल में यह कौशल विकास योजना मोदी सरकार नही बल्कि नरेन्द्र भाई मोदी के लिए सबक भी है।
नोट- लेखक मीडिय़ा रिलेशन पत्रिका का संपादन करने के साथ ही सम-सामयिक विषयों पर कलम चलाते है।
उपरोक्त लेख लेखक के निजी विचार हैं, लोकभारत का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है।