कोहिनूर नहीं हुआ था चोरी , अंग्रेज़ो को दिया था गिफ्ट
नई दिल्ली । कोहिनूर को भारत वापस लाने की मांग पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि भारत को कोहिनूर हीरे पर दावा नहीं करना चाहिए। क्योंकि यह न तो ब्रिटेन ने चुराया और न इसे जबरदस्ती ले जाया गया। सोमवार को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यह जवाब दिया। सरकार की ओर से उच्चतम कोर्ट में पेश हुए सॉलिसीटर जनरल रंजीत कुमार ने कहा कि संस्कृति मंत्रालय का यही विचार है।
उन्होंने कहा कि 1849 सिख युद्ध में हर्जाने के तौर पर दिलीप सिंह ने कोहिनूर को अंग्रेजों के हवाले किया था। अगर उसे वापस मांगेंगे तो दुसरे मुल्कों की जो चीज़ें भारत के संग्रहालयों में हैं उन पर भी विदेशों से दावा किया जा सकता है। इस पर कोर्ट ने कहा की हिन्दुस्तान ने तो कभी भी कोई उपनिवेश नहीं बनाया न दूसरे की चीज़ें अपने यहां छीन कर रखी।
सॉलिसीटर जनरल ने सोमवार को कहा कि इस मामले में अभी विदेश मंत्रालय का जवाब आना बाकी है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र से छह सप्ताह के भीतर विस्तार से जवाब देने को कहा है। इससे पहले कोर्ट ने 9 अप्रैल को केंद्र से कोहीनूर को वापस लाने पर अपनी स्थिति साफ करने को कहा था। चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्या इस बात पर सहमति है कि केस को खारिज कर दिया जाए क्योंकि ऐसा होने पर सरकार को भविष्य में दिक्कत हो सकती है।
इस मामले में ऑल इंडिया ह्यूमन राइट्स एंड सोशल जस्टिस फ्रंट ने याचिका दायर कर रखी है। बता दें कि ब्रिटिश सरकार ने 2013 में कोहिनूर वापस देने की मांगों को खारिज कर दिया था। रोचक बात है कि 1850 में डलहौजी के मार्कीज ने पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह को कोहिनूर हीरा क्वीन विक्टोरिया को उपहार में देने को बाध्य किया था। कोहिनूर की कीमत 200 मिलियन डॉलर आंकी जा रही है।
कोहिनूर हीरे की खासित 105 कैरट का कोहिनूर करीब 150 साल से ज़्यादा वक्त से ब्रिटिश ताज का हिस्सा रहा है। माना जाता है कि यह आंध्र प्रदेश के गोलकुंडा के एक खान से निकला था। शुरुआत में कोहिनूर हीरा पूरे 720 कैरेट का हुआ करता था। कई सालों तक यह खिलजी वंश के खजाने में रहा।
इसके बाद यह मुगल शासक बाबर के पास पहुंचा। शाहजहां के मयूर सिंहासन से होता हुआ यह कोहिनूर हीरा महाराज रंजीत सिंह तक पहुंचा। कहा जाता है कि यह हीरा 1848 के ब्रिटेन-सिख युद्ध के बाद ब्रिटेन के हाथ उस वक्त आया जब नाबालिग दलीप सिंह ने इसे ब्रितानी शासकों को सौंप दिया था। तभी से कोहिनूर ब्रितानी ताज में लगा हुआ है।
ब्रिटेन का दावा है कि नाबालिग दलीप सिंह ने कोहिनूर क़ानूनी आधार पर उन्हें दिया, लेकिन भारतीय इतिहासकारों का तर्क है कि ऐसा नहीं हुआ और दलीप सिंह को कोहिनूर देने के लिए मजबूर किया गया।
पाकिस्तान भी करता रहा है दावा फरवरी में लाहौर कोर्ट में एक याचिका दायर करके इसे पाकिस्तान लाने की मांग की गई। कहा गया कि कोहिनूर हीरा अफ़ग़ानिस्तान के बादशाह ने लाहौर के बादशाह रंजीत सिंह को तोहफ़े के तौर पर दिया था। रंजीत सिंह के बेटे दलीप सिंह को जब हटाया गया तब पाकिस्तान के पंजाब के राजा थे। फिर ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनसे कोहिनूर ले लिया।
बाद में कहानी बनाई गई कि ये हीरा दलीप सिंह ने अंग्रेज़ों को दे दिया। ये हीरा जबरन लिया गया था। हीरे की चोरी लाहौर से की गई इसलिए कोहिनूर पर भारत से कहीं ज़्यादा पाकिस्तान का हक है। वहीं भारतीय इतिहासकार उनके इस दावे को खारिज करते हैं। उनका कहना है कि पाकिस्तान 1947 के बाद अस्तित्व में आया। उसके पहले का सब कुछ हिंदुस्तान का है। इसी तरह बांग्लादेश और साउथ अफ्रीका भी इस हीरे पर दावा करता रहा है।