कागज पर दौड़ती पानी की रेल
ब्यूरो । टीकमगढ़ जिले के पलेरा विकासखंड के छरी पंचायत और टोरी पंचायत में कुछ दिनों से पानी बचाने के लिए मुहीम शुरू की गई है। यह मुहीम गांधीमार्गी संस्था एकता परिषद ने स्थानीय ग्रामीणों की मदद से शुरू की है। जल संचयन के उद्देश्य से चल रहे इस श्रमदान कार्यक्रम में बड़ी संख्या में समाज के लोग उत्साह से डंटे हुए हैं।
यहां किशोरों के साथ-साथ अधेड़ उम्र के ग्रामीण भी लगे हुए हैं। वे चाहते हैं कि इस बार की बारिश में उनके हिस्से का पानी बर्बाद न हो और उनका गांव हरा-भरा हो जाए। एक ओर पानी बचाने के लिए इस जिले के लोगो का अथक प्रयास औऱ दुसरी ओर महाराष्ट्र , मध्य-प्रदेश, छत्तीसगढ़ , झारखंड, कर्नाटक, ओडिशा, उत्रप्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान और आंध्रप्रदेश मे पड़ने वाला सूखा है जिससे लोगो को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
उधर केंद्र सरकार की गंभीरता का हाल भी देखें कि ” इंडिया वाटर वीक ” यानी केंद्र सरकार, जल सप्ताह भारत की राजधानी दिल्ली के राजपथ पर स्थित विज्ञान भवन के शानदार और वातानूकूलित हॉल में 4 से 8 अप्रैल 2016 मना चुकी है। जिसका विषय”सभी के लिए पानी” मिलकर प्रयास करें” था उसका फायदा क्या होगा यह नहीं पता, लेकिन जल सप्ताह मनाने की शुरुआत 2012 से होती है।
पहली बार 10 से 14 अप्रैल 2012 को “भारत वाटरवीक” आयोजित किया गया, जिसका विषय पानी, ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा का समाधान करना था, इसमें 32 देशों के 1000 लोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी। दूसरा भारत वाटरवीक 8 से 12 अप्रैल 2013 को आयोजित हुआ, जिसमें 21 देशों के 1371 स्दस्यो ने हिस्सा लिया, जिसका विषय “प्रभावी जल प्रबंधन: चुनौतियां और अवसर” था। तीसरा इंडिया वाटरवीक 13 से 17 जनवरी 2015 को आयोजित किया गया जिसका विषय “सतत विकास के लिए पानी की व्यवस्था” था, इसमें 24 देशों के 1450 लोगों ने भाग लिया था।
उपयुक्त वाक्य के साथ जल सप्ताह मनाने का क्या फायदा हुआ इसका जवाब तो जल संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार के मंत्री और नौकरशाह ही दे सकते हैं। राजधानी दिल्ली के राजपथ पर स्थित विज्ञान भवन के शानदार और एयरकंडिशनल हॉल में बैठ कर मंथन करने वालों को और पानी पर जनता का पैसा पानी की तरह बहाने वालों को ग्रामीण भारत पर भी नजर रखनी चाहिए।
इस संबध मे भारत का ताज कही जाने वाली जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती जिले पूंछ का ही आकलन किया जाए तो स्वर्ग रुपी पृथ्वी की सुंदरता खराब सरकारी प्रबंधन ने छीनने की पूरी कोशिश की है। इस बारे में जब जिला पुंछ के सीमावर्ती ब्लाक मंडी निवासी और ग्रामीण लेखक मौ0 रियाज मल्लिक से बात की गई तो उनके अनुसार “तहसील मंडी के अड़ाई गांव के कई इलाकों मे लोग पानी की बुंद बुंद के लिए तरस रहे हैं, मुहल्ला तारा गढ़ जहां कई साल पहले पानी की एक टंकी बनाई गई थी जिसके कारण मुहल्ला तारा गढ़, बांडयाँ, मुहल्ला गनहारी, मुहल्ला थब, इसावाली, तकड़ांवाली, सिक्की खेत, लोहनवाला आदि के लगभग ढाई हजार निवासी पानी से लाभ उठा रहे थे। लेकिन उक्त टैंक की सही देखभाल न होने की वजह से यह खराब हो चुकी है कारण वश यहाँ के ढाई हजार निवासी पानी की एक एक बूंद को तड़प रहे हैं।
पानी विभाग पी-एच-ई( पब्लिक हेल्थ इंजिनियरींग) ने टैंक को ठीक करने के बजाय अपने हाथ खड़े कर लिए हैं, इसलिए लोग अपने स्तर पर झरने से पाइप द्वारा पानी अपने घरो तक पहुँचा रहे हैं। मगर यें पाईपें सख्त बारिश और बर्फबारी के कारण टूट गई हैं, न टैंक मरम्मत करने के लिए कोई फंड दिया जा रहा है नाही पाइपें दी जा रही हैं क्योंकि पिछले दो सालो से पी-एच-ई द्वारा पाईपें नहीं दी गई हैं।
भूस्खलन के कारण पाइपें टूट कर बरबाद हो चुकी हैं जिसके कारण क्षेत्र के लोग इस भीषण गर्मी में दो-दो तीन- तीन किलोमीटर दुर से पानी लाने को मजबूर हैं, इसमें सबसे अधिक महिलाओं और लड़कियों को मुसीबतों का सामना करना पड़ता है, पानी न होने की वजह से उनकी शिक्षा पर असर पड़ रहा है”।
जम्मू पूंछ राजमार्ग पर स्थित सुरनकोट ब्लॉक निवासी मुर्सरत यास्मीन के अनुसार “हमारे मोहल्ले में पानी चार पांच दिनों के बाद केवल आधे घंटे के लिए आता है, वह भी बहुत कम मात्रा मे, इसलिए जिस दिन पानी आता है उस दिन कॉलेज जाने के बजाय पानी इकट्ठा करना जरूरी होता है”।
उर्दू के प्रसिद्ध कथा लेखक कृष्ण चन्दर से संबंधित धरती मेंढर ब्लॉक मे रहने वाली स्नातक की छात्रा आसिया फिरदौस के अनुसार “हमारे राज्य में पानी के प्राकृतिक संसाधनों की कमी नहीं है, बल्कि हमारे उपयोग में कमी है, अगर हम अपने प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करना चाहते हैं तो हमारे पास इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है कि हम लोगों को पानी के महत्व के बारे में जागरूक करें, पानी के महत्व और सही उपयोग का तरीका बताना होगा, यह काम सिर्फ सरकार के सिर पर डाल कर घर मे सोने से काम नहीं चलेगा, क्योंकि प्यास हमें परेशान करती है सरकार को नहीं। “
उक्त वाक्यांश पर विचार करना चाहिए, केवल सरकार पर सारी जिम्मेदारी डालकर संतोष न किया जाए बल्कि सबकी जिम्मेदारी है कि पानी के प्राकृतिक उपहार की न केवल रक्षा की जाए, बल्कि अपने हाथ पैर को भी हरकत दी जाए। इसलिए सूखे की मार झेल रहे राज्य महाराष्ट्र के नागपुर निवासी बापु राव ने सिर्फ 40 दिनों में प्रतिदिन छह घंटे जुनून के साथ काम करते हुए पानी का कुआँ खोद डाला, वह भी सिर्फ इसलिए कि उसकी पत्नी को पड़ोसी ने निम्न जाति होने का ताना देते हुए पानी देने से मना कर दिया था। मगर बापु राव ने अपना बड़प्पन दिखाते हुए अपने कुएं पर पानी लेने का अधिकार सबको दिया है। वह स्वीकार करता है कि मेहनत हमारी जरुर है मगर पानी पर किसी का एकाधिकार सही नहीं।
दूसरी ओर हमारे राज्य और केंद्र सरकारों में तालमेल न होने के कारण जनता का पैसा, अधिकारियों का समय और मेहनत बर्बाद हो जाता हैं, जिसकी ताजा मिसाल मई के पहले सप्ताह में देखने को मिली कि बुंदेलखंड की जनता की प्यास बुझाने के लिए केंद्र सरकार की वाटर एक्सप्रेस झांसी रेलवे स्टेशन पर खड़ी रही, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार के पास पानी लेने के लिए समय तक नहीं था, 10 वैगन वाली ट्रेन 5 लाख लीटर पानी के साथ जिला महोबा के निवासीयों की प्यास बुझाने का इंतजार कर रही थी, लेकिन जिला प्रशासन ने कहा कि हमें न पानी की जरूरत है और न ही हमें इस ट्रेन की कोई सूचना दी गई है।
झांसी रेल डीवीजन के ए-डी-आर- एम विनीत सिंह के अनुसार “वाटर एक्सप्रेस झांसी रेलवे स्टेशन पर पहुंच गई है”। महोबा के डीएम वीरेशवर सिंह के अनुसार “जिले में टैंकरों से पानी की आपूर्ति हो रही है, यहां ट्रेन के पानी की जरूरत नहीं है”। एक ओर जहां देश के लोग पानी की एक एक बूंद के मुहताज हैं, वहीं दूसरी ओर कहीं खेल-मैदान पर तो कहीं रेलवे-स्टेशन पर पानी बर्बाद हो रहा है और जनता के कंठ तक पानी पहुंचाने वाली सरकारों के ज़िम्मेदार कभी स्वयं तो कभी विज्ञान भवन में जल सप्ताह मना कर ही अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो रहे हैं, मानो कागज पर पानी की ट्रेन दौड़ा रहे हैं।
(चरखा फिचर्स)