इस बार आसान नहीं है मथुरा में हेमा और अमेठी में स्मृति की राह
नई दिल्ली। 2014 के लोकसभा चुनाव में फिल्म अभिनेत्री हेमा मालिनी मथुरा लोकसभा सीट से एकतरफा मुकाबला जीती थीं वहीँ स्मृति ईरानी अमेठी में दूसरे नंबर पर रहीं थीं। लेकिन इस बार दोनों की राह 2014 के चुनाव के मुकाबले ज़्यादा मुश्किल भरी हो सकती है।
2014 के लोकसभा चुनाव में मथुरा सीट पर हेमा मालिनी ने रालोद नेता जयंत चौधरी को 3,30,743 वोटो से शिकस्त दी थी। इस चुनाव में सपा, बसपा, रालोद और कांग्रेस अलग अलग चुनाव लडे थे। लेकिन इस बार स्थति बदली हुई है।
जहाँ मथुरा लोकसभा सीट पर ग्रामीण इलाको में सांसद हेमा मालिनी से नाराज़गी है वहीँ सपा बसपा और रालोद गठबंधन के चलते मथुरा लोकसभा सीट पर जाट और दलित मतदाताओं के ध्रुवीकरण की संभावनाएं हैं। सपा बसपा रालोद गठबंधन के तहत इस बार रालोद कोटे से कुंवर नरेंद्र सिंह को उम्मीदवार बनाया गया है।
मथुरा लोकसभा सीटों में दो चीज़ें चुनाव तय करती हैं। पहले जाट मतदाताओं का रुख और दूसरा स्थानीय मुद्दे। पिछले चुनाव में मोदी लहर के कारण जाट मतदाताओं का रुझान बीजेपी की तरफ था लेकिन इस बार स्थति बदली हुई है।
जहाँ तक उच्च जाति के मतदाताओं का सवाल है तो वे कभी कांग्रेस के परम्परागत मतदाता हुआ करते थे लेकिन फ़िलहाल बीजेपी से जुड़े हुए हैं। इस सीट पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या बहुत कम है। दलित जाट कॉम्बिनेशन किसी भी लहर और हवा पर भारी पड़ सकता है।
ठीक ऐसी ही स्थति अमेठी लोकसभा सीट पर बनती दिख रही है। बीजेपी ने अमेठी लोकसभा सीट पर एक बार फिर स्मृति ईरानी को उम्मीदवार बनाया है। पिछले लोकसभा चुनाव में स्मृति ईरानी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को कड़ी टक्कर दी थी और वे 300,748 वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रही थीं।
2014 में अमेठी सीट पर आम आदमी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने भी उम्मीदवार खड़े किये थे लेकिन इस बार सपा बसपा गठबंधन ने इस सीट पर अपने उम्मीदवार न उतारने का एलान कर कांग्रेस के लिए रास्ता आसान कर दिया है।
अमेठी कांग्रेस की परम्परागत सीट रही है। यहाँ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से पहले यूपीए पर्सन सोनिया गांधी और उससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी, और कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर कैप्टेन सतीश शर्मा भी कई चुनाव जीत चुके हैं।