आत्म हत्या की बढ़ती घटनाऐं: कारण और समाधान

आत्म हत्या की बढ़ती घटनाऐं: कारण और समाधान

ब्यूरो (अमीना खान)। देश में आत्म हत्याओं की बढ़ती तादाद चिंता का विषय है। पिछले कुछ वर्षो में आत्महत्याओं की घटनाओं में हुई वृद्धि से साफ़ होता है कि इंसान की ज़रूरतों पर उसकी नकारात्मक सोच हावी हो रही है। आत्महत्या करने के लिए सिर्फ वही व्यक्ति ज़िम्मेदार नहीं है बल्कि वह समाज भी ज़िम्मेदार है जो पीड़ित व्यक्ति के इर्दगिर्द रहता है और समय रहते पीड़ित व्यक्ति को उचित परामर्श या उसकी समस्या के निवारण के लिए प्रयास नहीं करता।

हाल ही में देश में हुई आत्महत्या की घटनाओं का अध्यन करने पर पता चलता है कि आत्महत्या करने का कोई एक मूल कारण नहीं है लेकिन सभी घटनाओं के पीछे एक परिस्थति डिप्रेशन की है जो इंसान को आत्महत्या के कगार पर लाकर खड़ा कर देती है।

आत्म हत्या करने की घटनाओं के शिकार सिर्फ प्रौढ़ लोग ही नहीं बल्कि युवा और छात्र भी इसके शिकार होते रहे हैं। अधिकतर घटनाओं के पीछे एक  परिस्थति मानसिक स्थति का ठीक न होना, डिप्रेशन में चले जाना और खुद को असहाय महसूस करना पायी गयी है।

भारत में वर्ष 2016 की जारी राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि देश में कम से कम 15 करोड़ लोग मानसिक अवसाद से पीड़ित हैं लेकिन इनमें से महज तीन करोड़ लोग ही विशेषज्ञों की सलाह लेते हैं।

कई मनोरोग विशेषज्ञों का कहना है कि आत्म हत्या के पीछे कोई भी कारण रहा हो लेकिन उन कारणों में सबसे बड़ा कारण डिप्रेशन होता है। विशेषज्ञों के अनुसार जब इंसान खुद को असहाय महसूस करने लगता है तो वह धीमे धीमे डिप्रेशन में चला जाता है। ऐसी स्थति में वह खुद को दुनिया में अकेला महसूस करता है। पीड़ित व्यक्ति अपनी समस्याओं से बाहर तो निकलना चाहता है लेकिन ऐसी स्थति में डिप्रेशन के चलते उसे कोई और रास्ता नहीं दिखता। इसलिए वह आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते है।

वहीँ युवाओं और बच्चो में आत्महत्या की घटनाओं के पीछे अहम कारण परिवारों में मतभेद, परिवार के सदस्यों की व्यस्तता, वित्तीय असमानताएं और पारिवारिक झगड़ो को बड़ी वजह माना जाता है।

मनोचिकित्स्कों का कहना है कि टूटते संयुक्त परिवार, माता-पिता का कामकाजी होना, बच्चों की छोटी-मोटी समस्याओं पर ध्यान नहीं देना और टीवी व इंटरनेट तक आसान पहुंच ने कम उम्र के बच्चों को भी स्वाभाव से जिद्दी और उग्र बना दिया है. इसकी वजह से उनमें मानसिक अवसाद बढ़ रहा है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूयएचओ) के आंकड़ों के हवाले मनोवैज्ञानिक डा. इंदिरा राय मंडल के अनुसार “भारत में आत्महत्या की दर 10 एशियाई देशों में सबसे ज्यादा है। यहां हर चार में से एक किशोर मानसिक अवसाद से पीड़ित है।”

डीडब्ल्यू की एक रिपोर्ट के अनुसार “मनोरोग विशेषज्ञ डा. सौमित्र घोष कहते हैं कि ‘ज्यादातर एकल परिवारों में माता-पिता दोनों के कामकाजी होने की वजह से उनके पास बच्चों की समस्याओं पर ध्यान देने की फुर्सत नहीं होती। इससे लगातार कुंठा के चलते बच्चा मानसिक अवसाद की हालत में पहुंच जाता है।’ वह कहते हैं कि माता-पिता को समय निकाल कर बच्चे की आदतों में होने वाले छोटे-छोटे बदलावों पर बारीक निगाह रखनी चाहिए।

क्या है समाधान:

डिप्रेशन के शिकार लोगों को किसी अच्छे मनोचिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए। अधिकतर सरकारी अस्पतालों में मनोचिकित्सक की मौजूदगी रहती है। वहीँ बड़े अस्पतालो और मेडिकल कॉलेजों में मनोचिकित्सा का एक अलग से विभाग होता है जिसमे कई मनोचिकित्सको की मौजूदगी रहती है।

डिप्रेशन से पीड़ित लोगों के परिजनों को चाहिए कि वे पीड़ित व्यक्ति को अकेला न छोड़ें और उसे अपना सहयोग और समर्थन दें।

डिप्रेशन के शिकार हुए किसी भी व्यक्ति को आत्महत्या तक न पहुँचने देने में समाज भी एक बड़ी भूमिका निभा सकता है। किसी संकट के चलते डिप्रेशन में गए व्यक्ति को सहायता देना, आश्वासन देना और उसका ज़िंदगी के प्रति उसका भरोसा बढ़ाना बेहद मददगार साबित होते हैं।

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