अल्पसंख्यकों के बिना यूपी में ताश के पत्तो की तरह बिखर जाएगी बीजेपी

अल्पसंख्यकों के बिना यूपी में ताश के पत्तो की तरह बिखर जाएगी बीजेपी

Modi-asha

ब्यूरो । उत्तर प्रदेश में अगले वर्ष होने जा रहे विधानसभा चुनावो के लिए सभी राजनैतिक दल अपनी अपनी तैयारियों को अंतिम रूप दे रहे हैं । सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी एक बार फिर सत्ता में वापसी की कोशिश करेगी, वहीँ बसपा और भाजपा उसे रोककर प्रदेश की सत्ता पर कब्ज़ा जमाने की कोशिश करेंगे । फ़िलहाल कांग्रेस के बारे में यही कहा जा सकता है कि उसे किसी करिश्माई चेहरे की तलाश है जिसके सहारे वह यूपी में अपना प्रदर्शन बेहतर कर सके ।

उत्तर प्रदेश में सत्ता पर कब्ज़ा जमाने की फ़िराक में बैठी बीजेपी की सबसे बड़ी मुश्किल दलितों और अल्पसंख्यकों में उसकी कटटर छवि है । अल्पसंख्यक मतदाता बीजेपी से कोसों दूर हैं वहीँ दलित मतदाता बसपा से कहीं ज़्यादा प्रभावित हैं । ऐसे में बीजेपी की जीत का रास्ता बेहद मुश्किलों भरा है । जानकार लोगों का कहना है कि सिर्फ मध्यमवर्गीय उच्च जाति के मतदाताओं के भरोसे चुनाव मैदान में उतरना बीजेपी के लिए एक बड़ी आत्म हत्या साबित हो सकता है । जहाँ तक पिछड़ो के वोट का सवाल है तो उस पर समाजवादी पार्टी भी पहले से नज़र जमाए बैठी है । यही कारण है कि सपा ने बैनी बाबू को पार्टी में फिर से वापस ले लिया ताकि बैनी बाबू के सहारे पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को छिटकने से रोका जा सके । जानकार लोगों का कहना है कि यदि बीजेपी से समय रहते अपनी रणनीति में परिवर्तन नहीं किया तो वह चुनाव में ताश के पत्तो की तरह बिखर जाएगी ।

नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर एक चुनाव विशेषज्ञ ने बताया कि यदि बीजेपी प्रदेश में किसी साफ़ छवि वाले नए मुस्लिम को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करे तो उसको कई फायदे एक साथ हो सकते हैं । पहले अल्पसंख्यक मतदाताओं में भरोसा पैदा होगा और बीजेपी के वोट प्रतिशत में उम्मीद से कई गुना ज़्यादा वृद्धि होगी और उत्तर प्रदेश चुनाव का अंक गणित बदल जायेगा, साथ ही अल्पसंख्यकों और बहुसख्यको के मतों से बीजेपी का सत्ता में आना तय हो जायेगा । दूसरा राष्ट्रीय स्तर भाजपा की छवि में बदलाव आएगा और विपक्ष उस पर सांप्रदायिक होने का आरोप नहीं लगा सकेगा । तीसरा आगामी लोकसभा चुनाव के लिए यह सुनिश्चित हो जायेगा कि अल्पसंख्यक मतदाताओं की एक बड़ी तादाद बीजेपी को केंद्र की सत्ता में वापसी का रास्ता बना सकती है ।

जब चुनाव विशेषज्ञ से पूछा गया कि क्या बीजेपी इस बड़े बदलाव के लिए तैयार होगी तो उन्होंने कहा कि राजनीति में कुछ भी संभव है । यदि बीजेपी को उत्तर प्रदेश में सरकार बनानी है तो उसे ऐसा करना चाहिए । यह पूछे जाने पर कि क्या बीजेपी के हार्डलाइनर किसी अल्पसंख्यक चेहरे को प्रदेश का मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करने का विरोध नहीं करेंगे ? इस पर उनका जबाव था कि विरोध तो ज़रूर होगा लेकिन विरोध भी राजनीति का एक हिस्सा होता है और जब पार्टी आलाकमान कुछ तय करके भेजता है तो अंततः हर कार्यकर्त्ता को उसे स्वीकार करना पड़ता ही है ।

क्या बीजेपी किसी अल्पसंख्यक को बना सकती है प्रदेश का मुख़्यमंत्री :

वर्तमान में उत्तर प्रदेश में बीजेपी की जो स्थति है उसे देखकर नहीं लगता कि बीजेपी सत्ता बनाने के आसपास है । उत्तर प्रदेश में जातिगत आंकड़ों के आगे हिन्दुत्व फेल होजाता है । ऐसे में बीजेपी को या तो अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ेगा या उसे सपा या बसपा से सीटों के बंटवारे के आधार पर एलाइंस करना होगा जिसकी सम्भावना फिलहाल बनते नहीं दिखाई दे रही ।

यदि बीजेपी किसी ऐसे मुस्लिम चेहरे को तलाश कर लाने में सफल रहती है जिसकी छवि बेदाग़ हो और जो बीजेपी के विकास के एजेंडे से अल्पसंख्यकों को जोड़ सके तो प्रदेश की ही नहीं बल्कि पूरे देश की राजनति बदल सकती है । इससे बीजेपी को सिर्फ यूपी में ही नहीं बल्कि यूपी के साथ हो रहे पंजाब के विधानसभा चुनावों में भी बड़ा फायदा होगा । बीजेपी अगर दूरदृष्टि से काम करना चाहती है तो उसे ये फैसला लेना चाहिए ।

बीजेपी के कटटर हिन्दुत्व वाले लोग कैसे करेंगे स्वीकार :

यदि बीजेपी आलाकमान चाहेगा तो सभी कुछ सामान्य तौर पर किया जा सकता है । प्रदेश में अल्पसंख्यक चेहरे को मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करने पर योगी आदित्यनाथ और साक्षी महाराज जैसे सांसदों से विरोध का सामना करना पड़ सकता है लेकिन सब कुछ आलाकमान के हाथ में होता है । जैसे पार्टी कार्यकर्ताओं को विरोध करना आता है वैसे ही पार्टी हाईकमान को अपने निर्णय लागू कराना भी आता है । इसलिए यदि पीएम नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह चाहेंगे तो इसे मुमकिन कर सकते हैं ।

संघ की क्या भूमिका होगी :

उत्तर प्रदेश में संघ का सहयोगी संगठन राष्ट्रीय मुस्लिम मंच पहले से ही एक्टिव है । जब संघ मुसलमानो को लेकर एक संगठन खड़ा कर सकता है तो कुछ शर्तों के साथ वह उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद पर मुस्लिम चेहरे को भी स्वीकार कर सकता है । यह अलग बात है कि संघ कुछ नयी शर्तें लेकर परदे के पीछे से बीजेपी आलाकमान से कोई पेशकश करे लेकिन सार्वजनिक रूप से संघ बीजेपी के किसी निर्णय पर कोई विरोध जताने से परहेज करेगा ।

कहाँ हो सकता है फायदा :

बीजेपी को सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि वह प्रदेश में मुस्लिम चेहरे को मुख्यमंत्री के तौर पर पेश करके समाजवादी पार्टी के यादव मुस्लिम और बसपा के दलित मुस्लिम कॉम्बिनेशन को ध्वस्त कर सकती है ।

वहीँ पश्चिमी उत्तर प्रदेश की करीब 20 से 50 सीटें ऐसी हैं जहाँ मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में होते हैं । सहारनपुर, मुज़फ्फरनगर, शामली, मेरठ, गौतमबुद्धनगर, बुलंदशहर, अमरोहा, संभल, मुरादाबाद, बदायूं, बरेली, शाहजहांपुर तथा अलीगढ जनपद में कई विधानसभा ऐसी हैं जहाँ मुस्लिम मतदाताओं की तादाद काफी अच्छी है और समाजवादी पार्टी मुस्लिम मतदाताओं के बूते ही पिछले चुनावो में इन जनपदों में उम्मीद से अधिक सीटें जीतने में कामयाब रही है लेकिन यदि बीजेपी में अल्पसंख्यक चेहरे को प्रोजेक्ट किया तो अधिकांश सीटों पर स्थति बीजेपी के पक्ष में हो जाएगी ।

वहीँ मुख्यमंत्री के तौर पर मुस्लिम चेहरे को प्रोजेक्ट करने से पूर्वी और मध्य उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी कई राजनैतिक दलों के समीकरण बिगाड़ सकती है । अपनी कट्टर छवि को किनारे कर एक मुस्लिम को मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट कर इलाहबाद, कानपुर, कन्नौज, बाराबंकी, वाराणसी, लखनऊ जैसे जनपदों में बीजेपी एक बड़ी ताकत बन कर उभरेगी ।

(राजा ज़ैद खान)
लेखक लोकभारत के मैनेजिंग एडिटर हैं

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