अयोध्या विवाद: 33वे दिन की सुनवाई में मुस्लिम पक्षकारो ने एएसआई की रिपोर्ट पर उठाये सवाल

अयोध्या विवाद: 33वे दिन की सुनवाई में मुस्लिम पक्षकारो ने एएसआई की रिपोर्ट पर उठाये सवाल

नई दिल्ली। अयोध्या विवाद को लेकर सुप्रीमकोर्ट में चल रही नियमित सुनवाई के 33वे दिन मुस्लिम पक्ष की तरफ से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की रिपोर्ट पर सवाल उठाया गया।

मुस्लिम पक्ष की तरफ से दलीलें पेश करते हुए मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की रिपोर्ट पर अलग-अलग विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है। उन्होंने कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की रिपोर्ट से यह कहीं साबित नहीं होता कि वहां गुप्त काल का भी निर्माण था।

मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि जिस महल की बात की जा रही है, उसका निर्माण मध्यकाल का है। उन्होंने कहा कि ऐसे में उसे 12वीं सदी का मंदिर बताना गलत है। उसे दिव्य कहना भी उचित नहीं। मुस्लिम पक्ष की वकील ने कहा कि ढांचे पर बना गोल गुंबद भी छह पहलुओं वाला था।

इस पर जस्टिस नज़ीर ने कहा कि आप एएसआई की रिपोर्ट पर सवाल नहीं उठा सकतीं, क्योंकि एक कमिश्नर ने यह रिपोर्ट दी जो जज के समान थे। जस्टिस नज़ीर की टिप्पणी पर मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि पुरातत्व विभाग ने कहा है कि सभी पुरातत्व अधिकारी अपनी सोच के हिसाब से तस्वीर तैयार करता है। उसी के आधार पर वह निष्कर्ष तक पहुंचने की कोशिश करता है। पुरातत्व विज्ञान बिल्कुल हैडराइटिंग विज्ञान की तर्ज पर ही अनुमान पर काम करता है।

मीनाक्षी अरोड़ा ने जस्टिस नज़ीर की टिप्पणी पर तर्क दिया कि एक पुरातत्व वैज्ञानिक की राय दूसरे से आमतौर पर नहीं मिलती। मीनाक्षी ने कहा कि फिंगरप्रिंट की जांच बिल्कुल सटीक होती है, क्योंकि मिलान का प्रतिशत कहीं ज्यादा होने पर इसे सही माना जाता है।

Minakshi Arora

इस पर मीनाक्षी अरोड को रोकते हुए जस्टिस बोबड़े ने कहा कि क्या आपके पास कोई ऐसा पुरातत्व वैज्ञानिक है जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की रिपोर्ट को नकार सके, जैसे आप नकार रही हैं। इसके जबाव में मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि हिन्दू पक्ष की ओर से पेश गवाहों कि राय भी पुरातत्व विभाग से अलग थी। जयंती प्रसाद श्रीवास्तव, रिटायर्ड पुरातत्व अधिकारी ने भी विभाग की रिपोर्ट से अलग राय रखी है।

इस पर जस्टिस बोबड़े ने कहा कि दोनों ही पक्षों के पास कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं है. सभी पक्ष का मामला पुरातत्व रिपोर्ट के नजरिये पर टिका हुआ है। इस पर मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट में कहीं नहीं कहा गया कि अमुख स्थान राम मंदिर है, जबकि राम चबूतरे को वाटर टैंक बताया गया है।

मीनाक्षी अरोड़ा की तरफ से दलीलें पूरी होने के बाद मुस्लिम पक्षकारों की तरफ से वकील शेखर नाफड़े ने दलीलें रखीं। उन्होंने कहा कि फारुख अहमद की ओर से 1961 में मंदिर निर्माण के लिए सूट दाखिल किया गया था। इसमें चबूतरे को जन्म स्थान करार देते हुए मंदिर निर्माण कि मांग की गई थी।

शेखर नाफड़े ने कहा कि डिप्टी कमिश्नर ने 1885 में रघुबर दास के सूट पर अपना फैसला दिया था और चबूतरे पर मंदिर बनाने का दावा खारिज कर दिया था। ऐसे में यह रेस ज्यूडी काटा यानी न्यायिक समीक्षा का मामला है।

मुस्लिम पक्षकारो के वकील शेखर नाफड़े की दलील पर जस्टिस बोबड़े ने कहा कि एक बात तो साफ है कि वहां पर कब्जे को लेकर विवाद था, तो क्या विवाद सिर्फ राम चबूतरे का था या पूरे स्थान का?

Shekhar Naphade

इस पर नाफड़े ने जबाव में कहा कि हिंदुओं का वहां थोड़ी सी जमीन पर अधिकार था। उनका सिर्फ राम चबूतरे पर अधिकार था, वे स्वामित्व हासिल करने की कोशिश कर रहे थे। जिसे अस्वीकार कर दिया गया था। इसके बाद उन्होंने अतिक्रमण करने के लिए लगातार प्रयास किया।

नाफड़े ने कहा कि न्यायिक कमिश्नर ने अपने आदेश में साफ किया था कि हिंदुओं की पहुंच सीमित क्षेत्र तक थी। वह उसे बढ़ाने का प्रयास कर रहे थे, लेकिन यह चिन्हित हुआ कि उनका अधिकार सीमित है और उन्हें मालिकाना हक नहीं दिया जा सकता।

इस पर जस्टिस चंद्रचूण ने कहा 1885 का जो सूट है, वह निर्मोही अखाड़ा की तरफ से नहीं है। उसे एक महंत ने दाखिल किया था। यह कहना कि हिंदू पक्ष दोबारा केस फाइल नहीं कर सकता, यह ठीक नहीं लगता।

इसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने शेखर नाफड़े से कहा कि आपकी दलील देने का समय समाप्त हो चूका है। शेखर नाफड़े ने कहा कि उन्हें अपनी बात पूरी करने के लिए 30 मिनिट और चाहिए। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हम अपना शेड्यूल नहीं बदलेंगे। इसके बाद अदालत की सुनवाई सोमवार तक के लिए स्थगित कर दी गयी।

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