अब सरकार ने दिया एक और झटका, पीएफ पर व्याज दरों में कटौती

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने अब नौकरपेशा लोगों को बड़ा झटका दिया है। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन ने वित्त वर्ष 2017-18 के लिए भविष्य निधि ब्याज दरों में 0.10 फीसदी की कटौती की है।
पीटीआई के अनुसार, चालू वित्त वर्ष के लिए पीएफ ब्याज दर 8.55 प्रतिशत तय की गई है। ईपीएफओ ने वित्त वर्ष 2016-17 के लिए 8.65 प्रतिशत ब्याज दर रखी थी। इसे नौकरीपेशा कर्मचारियों के लिए केंद्र सरकार द्वारा दिए गए एक और झटके के रूप में देखा जा रहा है।
गौरतलब है कि पीएफ के एक हिस्से को इक्विटी मार्केट से जोड़ने के बाद से ही इसमें लगातार कटौती की जा रही है। कुछ दिनों पहले ही ईपीएफ के 25 फीसद हिस्से का स्टॉक मार्केट में निवेश करने पर सरकार द्वारा विचार करने की रिपोर्ट सामने आई थी।
‘इकोनोमिक टाइम्स’ ने वरिष्ठ अधिकारियों के हवाले से यह रिपोर्ट दी थी। ऐसा करने के लिए मौजूदा इनवेस्टमेंट की सीमा को बढ़ाना होगा। हालांकि, इसके लिए सेंट्रल बोर्ड ऑफ ट्रस्टी की मंजूरी लेनी होगी। अप्रैल 2015 से लागू प्रावधानों के तहत पीएफ के 5 से 15 फीसद हिस्से को ही शेयर मार्केट में लगाया जा सकता है।
बताया जाता है कि शेयर बाजार में उछाल को देखते हुए सरकार निवेश की मौजूदा सीमा को बढ़ाने पर विचार कर रही है। इसको लेकर वरिष्ठ अधिकारियों ने अन्य देशों का उदाहरण दिया है, जहां पेंशन फंड का इक्विटी मार्केट में निवेश किया जाता है।
गौरतलब है कि पीएफ के एक हिस्से का स्टॉक मार्केट में निवेश करने का विरोध भी किया जाता रहा है। सरकार का तर्क है कि ऐसा करने से कर्मचारियों को ज्यादा रिटर्न हासिल हो सकेगा।
वहीं, विरोधियों का कहना है कि शेयर मार्केट के लगातार लुढ़कने की स्थिति में क्या होगा? विरोधी खेमा पीएफ को सीधे बाजार से जोड़ने का लगातार विरोध करता रहा है। इसके बावजूद निवेश की सीमा को बढ़ाने पर विचार किया जा रहा है।
पीएफ से जुड़े प्रावधानों में बदलाव को लेकर वर्ष 2016 में बेंगलुरु में कपड़ा फैक्ट्री के कर्मचारियों ने हिंसक विरोध-प्रदर्शन किया था। मोदी सरकार ने पीएफ निकासी पर कई तरह की पाबंदी लगा दी थी। बदले प्रावधानों के तहत कोई भी कर्मचारी रिटायरमेंट के बाद ही पीएफ की पूरी राशि निकाल पाता। इससे नाराज बेंगलुरु के तकरीबन 800 फैक्ट्रियों के कर्मचारी सड़क पर उतर आए थे।
नाराज़ लोगों ने शहर के कई हिस्सों में तोड़फोड़ के साथ वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया था। कई दिनों तक विस्फोटक स्थिति बने रहने के बाद केंद्र सरकार को अपने कदम पीछे खींचने पड़े थे।