अब पैलेट गन की जगह इस्तेमाल होगा ये !
नयी दिल्ली। कश्मीर में छर्रे वाली बंदूकों का विकल्प खोजने के लिए केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति ने क्षमतावान और नव-विकसित पावा गोलों को इसके लिए उपयुक्त पाया है। मिर्च आधारित यह कम घातक हथियार निशाने को अस्थाई रूप से अक्षम बना देता है और वे कुछ मिनट के लिए जड़ हो जाते हैं।
पावा का पूरा नाम पेलऑर्गेनिक एसिड वैनिलिल एमिदे है और इसे नोनिवामिदे के नाम से भी जाना जाता है। यह एक ऑर्गेनिक यौगिक है जो प्राकृतिक रूप से मिर्च में पाया जाता है।
समिति ने इस सप्ताह के आरंभ में राष्ट्रीय राजधानी में इन गोलों का प्रदर्शन देखा और कश्मीर घाटी में प्रदर्शन जैसी स्थिति तथा भीड़ नियंत्रण के लिए सुरक्षा बलों को छर्रे वाली बंदूकों के स्थान पर इसके प्रयोग की हामी भर दी। छर्रे वाली बंदूकों के प्रयोग के कारण घाटी में कई लोग घायल हो गए हैं और अंधेपन के शिकार हो गए हैं, इसके कारण भारी आलोचना हो रही है।
इस संबंध में तैयार किए गए ब्लू-प्रिंट और पीटीआई को मिले दस्तावेजों के अनुसार, लखनउ स्थित वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् :सीएसआईआर: की प्रयोगशाला भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान में पावा गोलों का परीक्षण एक वर्ष से ज्यादा समय से चल रहा है और इसका पूर्ण विकास बिलकुल सही समय पर हुआ है, जब इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है।
समिति के कामकाज से जुड़े सूत्रों का कहना है कि पैनल ने छर्रे वाली बंदूकों के विकल्प के रूप में पावा गोलों का पक्ष लिया है और सिफारिश की है कि ग्वालियर स्थित बीएसएफ के टियर स्मोक यूनिट :टीएसयू: को तुरंत गोलों के उत्पादन का काम सौंप दिया जाए। पहली खेप में कम से कम 50,000 गोलों का उत्पादन किया जाए। मिर्च की ताकत मापने वाले स्कोविले स्केल पर पावा को अत्याधिक से उपर की श्रेणी में रखा गया है। इसका अर्थ है कि यह मनुष्य को बुरी तरह प्रभावित और लकवाग्रस्त कर सकता है, लेकिन अस्थाई रूप से।
इस यौगिक का प्रयोग भोजन सामग्री में तीखापन, फ्लेवर और मसालेदार स्वाद के लिए होता है। ब्लूप्रि्रंट के अनुसार, समिति ने पाया कि पावा को कम-घातक हथियार की श्रेणी में रखा जा सकता है। दागे जाने के बाद गोला फटता है और निशाने :प्रदर्शनकारियों: को अस्थाई रूप से सुन्न, जड़ और लकवाग्रस्त बना देता है। अच्छी बात यह है कि आंसू गैस और पेपर-स्प्रे के मुकाबले इसका प्रभाव तेजी से कम होता है।