मध्य प्रदेश: कांग्रेस की इस गलती से आयीं बीजेपी की इतनी सीटें
नई दिल्ली (राजाज़ैद)। मध्य प्रदेश में नई सरकार बनाने के लिए कांग्रेस ने अपनी कवायद शुरू कर दी है। राज्य के विधानसभा चुनाव में भले ही कांग्रेस ने जीत हासिल कर ली हो लेकिन मतगणना होने के बाद कई ऐसे सवाल सामने आये हैं जिन पर कांग्रेस को मंथन अवश्य करना पड़ेगा।
मध्य प्रदेश में चुनावो के एलान से पहले ही कांग्रेस हावी थी। बीजेपी के सामने दो बड़ी मुश्किलें थीं, पहला एंटी इंकमबेंसी और दूसरा केंद्र सरकार पर लगे ताजा दाग। राज्य में मंदसौर काण्ड के बाद ही किसान शिवराज सरकार के खिलाफ हो चले थे। इसके बावजूद बीजेपी ने किसानो को अपने साथ बनाये रखने की तमाम कोशिशे जारी रखीं। जिसका नतीजा यह हुआ कि बीजेपी ने मतगणना के दौरान अंतिम समय तक कांग्रेस को उलझाए रखा।
कांग्रेस के पास केंद्र और राज्य सरकार के खिलाफ बड़े मुद्दे थे। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी मध्य प्रदेश में जमकर पसीना बहाया। आधे से अधिक किसान बीजेपी और शिवराज सरकार से नाराज़ थे, सवर्ण भी नाराज़ थे इसके बावजूद बीजेपी को कांग्रेस से अधिक वोट मिलना इस बात के साफ संकेत हैं कि कहीं न कहीं कांग्रेस ने इलेक्शन मैनेजमेंट में भूल हुई है।
चुनावी नतीजों पर नज़र डालें तो पता चलता है कि राज्य में बीजेपी को 41 प्रतिशत और कांग्रेस को 40.9 प्रतिशत वोट मिले और यानि कांग्रेस से 5 सीटें कम हासिल करने वाली बीजेपी को कांग्रेस से 0.1 प्रतिशत वोट अधिक मिले। बीजेपी के पास आया 0.1 प्रतिशत अधिक वोट उसी 1% मतदाता का हिस्सा है जिस पर कांग्रेस को काम करना था लेकिन कांग्रेस ने इस पर खास ध्यान नहीं दिया।
कम सीटें होने के बावजूद बीजेपी को एक करोड़ 56 लाख 42 हज़ार 980 वोट मिले हैं जबकि कांग्रेस को एक करोड़ 55 लाख 95 हज़ार 153 वोट मिले। यानि कि बीजेपी को कांग्रेस से 47 हज़ार 827 वोट अधिक मिले हैं।
माना जा रहा है कि यदि बीजेपी को 4,337 वोट और मिल जाते तो वह एक बार फिर राज्य में सरकार बनाने की स्थति में पहुँच जाती। चुनाव आयोग के मुताबिक मध्य प्रदेश विधानसभा की 10 सीटें ऐसी रहीं जहां जीत और हार का अंतर 1,000 वोट से भी कम रहा।
इन 10 सीटों में से बीजेपी को सिर्फ 3 पर विजय हासिल हुई और बाकी 7 सीटें कांग्रेस के पाले में चली गईं। इसकी अहम वजह रही नोटा को मिले वोटो की संख्या। इन सीटों पर नोटा को मिले वोटों की संख्या हारजीत के फैसले से अधिक थी।
कहाँ हुई चूक:
कांग्रेस के तीन कद्दावर नेता कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव की कमान संभाल रहे थे। दिग्विजय सिंह परदे के पीछे से अपनी सियासत को अंजाम दे रहे थे और वे बहुत हद तक इसमें कामयाब भी रहे नही तो शायद कांग्रेस 100 सीटों तक भी नहीं पहुँच पाती।
कांग्रेस की सबसे बड़ी चूक यह रही कि वह आम मतदाता को तो लुभाने में सफल रही लेकिन बीजेपी का परम्परागत कहे जाने वाले मतदाताओं का कुछ हिस्सा नहीं तोड़ सकी।
कांग्रेस ने अपनी टीम में किसी ब्राह्मण चेहरे को आगे नहीं रखा। ब्राह्मण चेहरों को पीछे रखने से बीजेपी से नाराज़ सवर्ण कांग्रेस के खेमे में नहीं आ सके। जिस 1% ब्राह्मण वोट पर कांग्रेस को काम करना चाहिए था, दरअसल वह हुआ ही नहीं।
चुनावी विश्लेषकों की माने तो यदि कांग्रेस ने बीजेपी के परम्परागत कहे जाने वाले ब्राह्मण वोट से 1% वोट हासिल करने के लिए भी मेहनत की होती तो बीजेपी की सीटों की संख्या 95 से 100 के बीच सिमट होती।
फिलहाल देखना है कि कांग्रेस चुनाव परिणामो पर जब आत्म मंथन के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में अपनी रणनीति में क्या बदलाव करेगी।