नोटबंदी – जीएसटी का कहर, आधे से अधिक एमबीए डिग्रियां साबित हो रहीं हैं रद्दी

नोटबंदी – जीएसटी का कहर, आधे से अधिक एमबीए डिग्रियां साबित हो रहीं हैं रद्दी

नई दिल्ली। नोट बंदी और जीएसटी की वजह से देश के युवाओं को भी बड़ा झटका लगा है। एक रिपोर्ट के अनुसार नोट बंदी और जीएसटी की मेहरबानी से एमबीए डिग्री धारको को भी नौकरियां नहीं मिल रहीं।

इतना ही नहीं नोट बंदी लागू होने के बाद कई कंपनियों में हुई छटनी से नौकरी गंवा चुके एमबीए प्रोफेसनल्स को मजबूरन दूसरी कंपनियों में कम तनख्वाह और पहले से छोटे ओहदे पर नौकरी करनी पड़ रही है।

द एसोसिएटेड चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स ऑफ इंडिया (एसोचैम) ने देशभर के बी-कैटगरी के बिजनेस स्कूलों पर एक रिपोर्ट जारी कर कहा है कि नोटबंदी और जीएसटी से इन बिजनेस स्कूलों के प्लेसमेंट का रिकॉर्ड खराब कर दिया है।

रिपोर्ट के मुताबिक इन स्कूलों के 20 फीसदी पास आउट एमबीए डिग्रीधारियों को भी रोजगार नहीं मिल पा रहा है। एसोचैम का मानना है कि नोटबंदी की वजह से देश में बिजनेस या नई इकाइयों की स्थापना में उद्योगपतियों का रवैया उदासीन बना हुआ है। इस कारण बाजार में रोजगार संकट बना हुआ है।

एसोचैम के मुताबिक पिछले साल तक एमबीए पास करने वाले लगभग 30 फीसदी लोगों को नौकरी मिल जाती थी लेकिन नवंबर 2016 के बाद इसमें गिरावट आई है।

एसोचैम के मुताबिक मैनेजमेंट और इंजीनियरिंग कॉलेजों के विद्यार्थियों को मिलने वाले सैलरी पैकेज में भी नोटबंदी के बाद पिछले साल की तुलना में 40 से 45 फीसदी की कमी आयी है। अखिल भारतीय तकनीकि शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) के आंकड़ों के मुताबिक शैक्षणिक वर्ष 2016-17 के दौरान देश में 50 फीसदी से अधिक एमबीए डिग्रीधारियों को नौकरी नहीं मिल सकी।

बता दें कि इन आंकड़ों में भारतीय प्रबंधन संस्थान यानी आईआईएम शामिल नहीं हैं क्योंकि ये प्रीमियर इंस्टीट्यूट एआईसीटीई से संबद्ध नहीं होते हैं। गौरतलब है कि देश में लगभग 5000 एमबीए इस्टीट्यूट हैं। शैक्षणिक सत्र 2016-17 के दौरान इन संस्थानों से करीब 2 लाख एमबीए ग्रैजुएट पास हुए लेकिन इनमें से अधिकांश को नौकरी नहीं मिली।

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TeamDigital