जल की धारा 144
ब्यूरो (मौ0 अनिस उर रहमान खान द्वारा) । महाराष्ट्र के कई इलाके भीषण सुखे की मार झेल रहै हैं। राज्य मे सबसे बुरी हालत लातुर की है यहाँ 12 दिन मे एक बार एक परिवार को 200 लीटर पानी दिया जा रहा है, पानी को लेकर घारा 144 भी लागु कर दी गई है जो नव भारत टाईम्स के अनुसार 31 मई तक जारी रहेगा।
पानी के आभाव के कारण किसान मजदुरो ने मुंबई, ठाणे और पुणे का रुख कर लिया है। एक और पानी की ये स्थिति और दुसरी ओर नासा ने दावा किया है कि मंगल ग्रह पर नमकीन पानी जैसी चीज पाई गई है वैज्ञानिको के अनुसार 4.5 अरब साल पहले मंगल पर अभी के मुकाबले साढ़े छह गुना ज्यादा पानी था परंतु धरती की भाँती मंगल पर चुंबकिय क्षेत्र न होने के कारण ये पानी गायब हो गया।
यूँ तो धरती पर पानी की मात्रा सुखे स्थानो से कहीं ज्यादा है अर्थात लगभग 71 प्रतिशत जल औऱ 29 प्रतिशत सुखा है लेकिन इस 71 प्रतिशत जल मे से केवल 2.5 प्रतिशत जल ही पीने लायक है जबकि 97.5 प्रतिशत जल खारा पानी है और इसमे भी 70 प्रतिशत जल बर्फ के रुप मे अंटार्कटिका और ग्रीन लैंड मे जमा हुआ है बाकी कुछ मिट्टी मे नमी के रुप मे मौजुद है तो कुछ जमीन की तह मे। इस कारण धरती पर उपलब्ध कुल जल का मात्र एक प्रतिशत ही हम दैनिक क्रिया कलाप मे उपयोग करते हैं।
जल की इसी अधिकतम मात्रा के कारण धरती को निला ग्रह भी कहते हैं, और इस नीले ग्रह पर जल के एक प्रतिशत का इस्तेमाल सिर्फ मनुषय ही नही, बल्कि जानवर भी करते हैं हालांकि इसका अर्थ ये बिल्कुल नही की प्रकृति ने हमे इस धरोहर को कम मात्रा मे उपलब्ध कराया है, हाँ ये और बात है कि हम स्वंय ही इस अनमोल धरोहर का इस्तेमाल लापरवाही से करते आ रहे हैं जिसके करण सिर्फ महाराष्ट्र ही नही बल्कि आज पूरा विश्व जल संकट की समस्या से जुंझ रहा है, और धरती का सर्वग कहा जाने वाला खुबसुरत राज्य कशमीर भी इस समस्या से अछुता नही है, जबकि प्रकृति ने इस राज्य को शुद्ध पानी के तोहफे से नवाजा है, जिसका सबसे बड़ा साक्ष्य है यहां बहने वाली कई खुबसुरत झीलों और उनमे बहने वाला साफ और मीठा पानी। इन झीलों के भी कई प्रकार हैं, अर्थात कुछ तो ऐसी हैं जिनमे सालो भर पानी एक ही मात्रा मे रहता है, और कुछ गर्मी के मौसम मे सुख जाती हैं, ध्यान देने योग्य बात ये है कि जम्मु कशमीर राज्य के गांव की अधिकतर आबादी पानी के लिए इन्ही झरनो और झिलो पर ही निर्भर है।
बात अगर कशमीर राज्य के सरहदी जिला पूंछ की करे तो मालूम होता है कि यहां के अधिकतर गांव अपने दैनिक क्रियाकलापो के लिए पानी की इन्ही प्राकृतिक स्त्रोतो- झीलो और तालाबो पर निर्भर हैं परन्तु जल के इन स्त्रोतो की देख रेख ठीक ढंग से नही होने के कारण झीले जमीन के नीचे अपना रास्ता बना लेती हैं जिस कारण लोगो को परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
जिला पूंछ की तहसील सूरनकोट के अधिकतर ग्रामीण इलाके ऐसे हैं जिनमे गर्मी के मौसम मे झीले सुख जाती हैं कारणवश पशु पक्षी भी पानी की एक एक बूंद को तरस जाते हैं विशेष रुप से सितम्बर और अक्टूबर के महिने मे ऐसी स्तिथि उत्पन्न होती है और कई बार पानी की परेशानी के कारण लोगो के बीच लड़ाईयाँ भी हो जाती हैं। पिछले महिने गर्मी के मौसम मे पूंछ के ग्रामीण इलाको मे कुछ ऐसी ही स्थिति देखने को मिली।
तहसील सूरनकोट के सब से दूर दराज क्षेत्र हिल काका जो हर तरह से पिछड़ा हुआ है इस क्षेत्र मे लोगो के जीवन यापन का साधन माल मवेशी है इस सबंध मे स्थानीय निवासी वजीर मोहम्मद ने बताया कि ” एक जगह थोड़ा सा जमा हुआ पानी है जिससे ना सिर्फ हम लोग पीने और दुसरी आवशयकताओ के लिए इस्तेमाल करते है बल्कि यहां से हर दिन 80 से 100 भैसें भी पानी पीती हैं” स्थानीय लोगो के अनुसार अब ये पानी भी कुछ दिन बाद सुख जाएगा।
हिन्द-पाक सिमा पर होने के कारण हमेशा सुर्खियों मे रहने वाले क्षेत्र बालाकोट परिचय का मुहताज नही। पूंछ जिला हेडक्वार्टर से लगभग 100 किलोमीटर दुरी पर स्थित बालाकोट गांव की एक बुढ़ी महिला मजफुदा के अनुसार “हमारे यहाँ सबसे बड़ी समस्या जल ही की है हम लोग सर्दियों मे लगभग 2 किलोमीटर की दुरी से पानी लाते हैं जबकि गर्मियों मे 4 किलोमीटर की दुरी तय करने के बाद अपने घरवालों की प्यास बुझाते हैं सरकार की ओर से किसी प्रकार की कोई व्यवस्था नही है लेकिन क्या करें पानी तो अनमोल है उसे प्राप्त करने के लिए सबकुछ बर्दाशत करना पड़ता है कभी कोई शादी- ब्याह या समारेह हो तो किसी मुसीबत से कम नही” 65 वर्षीय बिलकिस कहती हैं कि “ हमारे माल मवेशी जो हमारे बाल बच्चो के लालन पालन का मुख्य स्त्रोंत हैं उनके लिए भी पानी अपने सरो पर लाना पड़ता है क्या हम भारतीय नही हैं?”
इसी गांव की स्कुल टीचर नाजिया कहती हैं कि ” गांव मे यकीनन पीने के पानी की परेशानी है जिसकी ओर सरकार को ध्यान देने की आवश्यकता है हम गांव वाले भारतीय फौज को धन्यवाद देना चाहते हैं जो हमारे बच्चो को न केवल शिक्षा दे रही है बल्कि फौज की ओर से दिन मे एक दो बार पीने का पानी भी उपलब्ध कराया जा रहा है मगर इसका कोई स्थाई हल ढ़ुढ़ना जरुरी है क्योंकि एक बड़ी आबादी पीने का पानी उपलब्ध न होने के कारण प्रभावीत हो रही है, शादी –ब्याह, मौत- हयात जैसे समारोह मे पानी की आवश्यकता और बढ़ जाती है”
हालांकि पानी के लिए एक अलग विभाग और मंत्रालय भी उपलब्ध है जिसे पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग(पी.एच.ई) के नाम से जाना जाता है। ग्रामीण इलाको मे पानी की सप्लाई मे सुधार लाने के लिए वर्ष 2009-10 मे (त्वरित राष्ट्रीय ग्रामीण जल आपूर्ति कार्यक्रम) को बदल कर राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम रखा गया। ये केंद्र स्तरीय योजना है जिस को राज्य मे लागू करने के लिए अप्रैल 2013 मे राज्य जल एवं स्वच्छता मिशन इसी तरह से जिला स्तर पर (जिला जल एवं स्वच्छता मिशन) के अतंर्गत भी कमिटियां बनाई गई है जिस का चेयरमैन जिला विकास कमिशनर को रखा गया।
इसी प्रकार ग्रामीण स्तर पर भी इसकी कमिटियाँ बनाई गई है जिस का चेयरमैन गांव के सरपंच को रखा जाता है इसके बावजुद अगर जमीनी स्तर पर देखा जाए तो ये सब सिर्फ कागजो तक ही सीमित दिखाई देते है और लोगो को इससे फायदा न के बराबर मिलता है।
पूंछ मे एकीकृत जलग्रहण प्रबंधन के जिला तकनीकी विशेषज्ञ जनाब कफील भट्टी साहब ने बताया कि “हमारा भी बुनयादी मकसद पानी की देख रेख और उस का बचाव है। इस के अतिरिक्त पानी के सही प्रयोग की जानकारी भी लोगो को उपलब्ध कराई जाती है। आगे उन्होने बताया कि हम सिर्फ प्रोजेक्ट एरिया पर ही काम कर सकते हैं जिस मे हमने पानी को संरक्षित करने के लिए चशमो(झरनो) के समीप स्टोर टैंक पहले भी बनवाए हैं और अब भी बनवा रहे हैं।
इसके अतिरिक्त हारवेस्टिंग टैंक और छोटी टंकियाँ भी बनवाई जाती है जहाँ इनकी आवशयकता है लेकिन हमारे पास एक सीमित क्षेत्र ही होता है। अर्थात अगर हम पानी से जुड़ी परेशानियो की बात करे तो लगता है कि जैसे इस युग मे सरकार के पास बहुत कम स्त्रोत है, हालांकि सरकार के पास ऐसी बहुत सी योजनाए-परियोजनाए भी है जिनका उपयोग अगर सही रुप मे किया जाए तो हम इस परेशानी से छुटकारा पा सकते हैं”।
(चरखा फीचर्स)
नोट- उपरोक्त आलेख नेशनल फांउडेशन फॉर इंडिया(एन-एफ-आई) के द्वारा दिए गए फेलोशिप के अंतर्गत लिखा गया है।