हाई कोर्ट ने कहा- केन्द्र अराजकता फैला रहा है, छीन रहा है निर्वाचित सरकारों के अधिकार

हाई कोर्ट ने कहा- केन्द्र अराजकता फैला रहा है, छीन रहा है निर्वाचित सरकारों के अधिकार

Uttarakhand-High-Court

देहरादून । उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन केंद्र के गले की फांस बन गया है । मंगलवार को उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने केन्द्र को फिर आड़े हाथ लेते हुए कहा कि राष्ट्रपति शासन लगाकर वह निर्वाचित सरकारों के अधिकार हड़प रहा है और अराजकता फैला रहा है तथा विधानसभा में ‘‘शक्ति परीक्षण की शुचिता को समाप्त नहीं किया जा सकता’’।

अदालत की पीठ इस बात पर कायम रही कि खरीद फरोख्त एवं भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद बहुमत के परीक्षण का एकमात्र संवैधानिक तरीका सदन में शक्ति परीक्षण है ‘‘जो अभी किया जाना शेष है।’’ मुख्य न्यायाधीश के एम जोसेफ एवं न्यायमूर्ति वी के बिष्ट की पीठ ने कहा, ‘‘यह (राष्ट्रपति शासन) केवल असामान्य मामलों में ही लागू किया जा सकता है।’’

उसने कहा कि राष्ट्रपति 28 मार्च के बाद उत्पन्न होने वाली स्थितियों की प्रतीक्षा कर सकते थे जब सदन में शक्ति परीक्षण होना था। पीठ अपदस्थ मुख्यमंत्री हरीश रावत एवं संबंधित पक्षों द्वारा राष्ट्रपति शासन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। अदालत ने कहा कि राष्ट्रपति शासन लगाकर ‘‘आप (केन्द्र) निर्वाचित सरकार के अधिकार ले रही है। आप अराजकता फैला रहे हैं।’’ साथ ही उसने कहा कि राज्यपाल ने अनुच्छेद 356 लागू करने की सिफारिश नहीं की थी। पीठ ने कहा कि 23 मार्च को शक्ति परीक्षण करवाने के राज्यपाल के कदम की शुचिता को समाप्त नहीं किया जा सकता है।

अदालत ने पूछा, ‘‘23 मार्च के (निर्णय के) बाद ऐसा क्या हुआ कि अनुच्छेद 356 को लागू करना पड़ा।’’ उसने कहा कि खरीद फरोख्त के आरोपों तथा सरकार में भ्रष्टाचार को इंगित करने वाले स्टिंग ऑपरेशन के बावजूद बहुमत साबित का एकमात्र तरीका सदन में शक्ति परीक्षण है। यह किया जाना अभी बाकी है। पीठ ने कहा, ‘‘स्टिंग ऑपरेशन ओर उससे निकाले गये निष्कर्ष पूरी तरह से अप्रासंगिक हैं।

केन्द्रीय कैबिनेट इस बात को नहीं जान सकता था कि विधानसभा अध्यक्ष 26 मार्च को नौ विधायकों को निलंबित कर देंगे।’’ अदालत ने कहा, ‘यदि वह (केन्द्र) जानता भी था तो केन्द्र के लिए इस (अयोग्यता) पर विचार करना अप्रासंगिक है। यदि उसने (केन्द्र ने) इस पर विचार किया तो उस पर पक्षपात करने तथा राज्य में राजनीति करने का आरोप लगेगा।’’

अदालत ने यह भी कहा कि सरकार यह नहीं कह सकती थी कि मुख्यमंत्री अपने बागी विधायकों को वापस लाने का प्रयास कर रहे थे और उसी समय वह उन्हें अयोग्य घोषित करवाने का प्रयास भी कर रहे थे। ‘‘दोनों बातें एक साथ नहीं चल सकतीं।’’

वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने उत्तराखंड राज्य की तरफ से पेश होते हुए केन्द्र से पूछा कि यदि केन्द्र के पास भ्रष्टाचार के अकाट्य प्रमाण हैं तो क्या वह सदन में शक्ति परीक्षण होने देता तथा वह मूक दर्शक बने रहकर एक भ्रष्ट एवं गैर कानूनी सरकार को चलने देता।

उन्होंने कहा कि केन्द्र इस स्थिति में अभागा बन कर नहीं रह सकता। केन्द्र लोकतंत्र की स्पष्ट हत्या में मूक दर्शक नहीं रह सकता। साल्वे ने कहा कि केन्द्र का काम संवैधानिक नैतिकता से संबंधित है, संख्या गणना करने से नहीं। रावत की तरफ से पेश होते हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने साल्वे की दलील का विरोध करते हुए कहा कि राज्य की कोई भूमिका नहीं क्योंकि राज्य में फिलहाल राष्ट्रपति शासन लागू है।

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