भगत सिंह को आतंकी बताने वाली किताब पर पाबंदी के विरोध में उतरे जाने-माने इतिहासकर
नई दिल्ली । जानेमाने इतिहासकारों रोमिला थापर, इरफान हबीब और अमर फारूकी का मानना है कि भगत सिंह को ‘क्रांतिकारी आतंकवादी’ लिखने की वजह से दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा एक पुस्तक की बिक्री पर रोक लगाना दुनिया के सामने इस अनभिज्ञता को प्रदर्शित करना है कि शहीदों ने उनके लिए इस शब्द का इस्तेमाल किया था।
इतिहासकारों ने एक संयुक्त वक्तव्य में कहा, ‘‘साफ है कि आज हममें से कई अपने राष्ट्रीय नायकों भगत सिंह या सूर्य सेन या चंद्रशेखर आजाद को आतंकवादी कहना पसंद नहीं करेंगे। लेकिन अगर हम राष्ट्रवादी होने का दावा करते हैं तो हमें कम से कम अपने राष्ट्रीय आंदोलन के बारे में थोड़ा जानना चाहिए और यह नहीं भूलना चाहिए कि एक वक्त था जब वास्तव में देश के लिए जान गंवा देने वाले लोग गर्व से इस ठप्पे को लगाना पसंद करते थे।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए हमें पुस्तकों में बदलाव की या उन पर पूरी तरह पाबंदी की मांग नहीं करनी चाहिए और इस तरह से दुनिया के सामने अपनी ही अनभिज्ञता को प्रदर्शित नहीं करना चाहिए। पिछले कुछ दिनों में ऐसा लगता है कि कुछ आधुनिक ‘राष्ट्रवादियों’ की अपनी देशभक्ति को प्रदर्शित करने के लिए विभाजनकारी या गैर-जरूरी मुद्दों को उठाने की आदत हो गयी है।’’
सफदर हाशमी मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा जारी बयान पर इतिहासकारों और शिक्षाविदों समेत 102 लोगों ने हस्ताक्षर किये हैं। बयान में कहा गया, ‘‘दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा पुस्तक के अनुवाद को वापस ले लेने और टीवी कार्यक्रमों और अदालतों में लेखकों के पीछे पड़ जाने की अब जो शुरूआत हो गयी है, वह घृणित है और आरएसएस तथा उसके अनेक मोर्चों के ऐसे अभियानों का यह चरित्र भी है।’’
पुस्तक ‘इंडियाज स्ट्रगल फॉर इंडिपेंडेंस’ दो दशक से दिल्ली विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल रही है। इसमें अध्याय-20 में भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सूर्य सेन और अन्य को ‘क्रांतिकारी आतंकवादी’ कहा गया है।