यदि किसी जगह मस्जिद बन जाती है तो नष्ट किये जाने के बाद भी वह इबादत की जगह

यदि किसी जगह मस्जिद बन जाती है तो नष्ट किये जाने के बाद भी वह इबादत की जगह

नई दिल्ली। अयोध्या मामले पर 2010 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर की पीठ को बताया, “मस्जिद को भले ध्वस्त कर दिया गया हो, लेकिन फिर भी वह इबादत की जगह बनी रहेगी।”

शुक्रवार को इस मामले में सुनवाई के दौरान मुख्य याचिकाकर्ता मोहम्मद सिद्दीकी के वकील के तौर पर बहस में भाग लेते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राजिव धवन ने कहा कि यह दो बिलकुल अलग बात है कि किसी क्षेत्र का अधिग्रहण कर लिया गया है और यह कि मस्जिद, हमेशा मस्जिद नहीं रहती।

इस मामले में शीर्ष अदालत की पीठ द्वारा 1994 के फैसले पर दोबारा विचार करने की याचिका पर सुनवाई की जा रही है। इस फैसले में कहा गया था कि मस्जिद इस्लामिक धर्म परंपरा का अनिवार्य हिस्सा नहीं है और नमाज कहीं भी अदा की जा सकती है।

छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का ध्वंस करने के कार्य को ‘बर्बर कृत्य’ करार देते धवन ने कहा, “जिस चीज को अपवित्र किया गया वह एक मस्जिद थी और अदालत से जो कुछ भी कहा जा रहा है वह मूर्ति (रामलला की मूर्ति) की सुरक्षा के लिए कहा जा रहा है।”

धवन ने कहा, “यह पूरी तरह से साफ है कि एक मस्जिद के साथ किसी भी मंदिर के समान व्यवहार होना चाहिए…और रामजन्मभूमि मस्जिद के बराबर (इक्वल) है।”इस मामले में अगली सुनवाई पांच अप्रैल को होगी जब धवन अदालत को बताएंगे कि इस्लाम के अनुसार मस्जिद का क्या अर्थ है।

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