अयोध्या विवाद: सुप्रीमकोर्ट ने निर्मोही अखाड़े से मांगे कब्ज़े के सबूत
नई दिल्ली। अयोध्या के विवादित भूमि पर शुरू हुई नियमित सुनवाई के दूसरे दिन सुप्रीमकोर्ट ने निर्मोही अखाड़े से विवादित भूमि पर उसके कब्ज़े से जुड़े कागजी सबूत मांगे हैं। इससे पहले कल निर्मोही अखाड़े के वकील की तरफ से सुप्रीमकोर्ट में दावा किया गया था कि 1934 के बाद से निर्मोही अखाड़े का विवादित ज़मींन पर सतत कब्ज़ा रहा है।
इस पर आज सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े से पूछा कि क्या आपके पास अटैचमेंट से पहले रामजन्मभूमि पर मालिकाना हक का कोई कागजी सबूत या रेवेन्यू रिकॉर्ड हैं?
इसपर निर्मोही अखाड़े ने जवाब दिया कि 1982 में हुई डकैती में सारे रिकार्ड गायब हो गए। सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़ा से कहा कि आप दस्तावेज तैयार करें। हम आपको बाद में सुनेंगे। निर्मोही अखाड़े की तरफ से दलीलें पूरी होने के बाद रामलला पक्ष की तरफ से दलील पेश की गयीं।
रामलला की तरफ से दलील रखते हुए वकील परासरण ने कहा कि इस मामले के साथ देश के हिंदुओं की भावनाएं जुड़ी हैं। लोग रामजन्मभूमि को भगवान राम का जन्मस्थान मानते हैं। पुराण और ऐतिहासिक दस्तावेज में इस बात के सबूत भी हैं।
रामलला की तरफ से परासरण ने कहा कि धर्म का मतलब रिलीजन कतई नहीं है। गीता में धृतराष्ट्र ने पूछा कि धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे,.. वहां धर्मक्षेत्र का मतलब रिलीजन से कतई नहीं है।
परासरण ने कहा कि अंग्रेजों के ज़माने में भी तब की अदालत ने एक फैसले में वहां बाबर की बनाई मस्जिद और जन्मस्थान मन्दिर का ज़िक्र किया था। इस पर जस्टिस बोबड़े ने पूछा कि ऐसा ही किसी धार्मिक स्थान को लेकर दो समुदायों का कोई सवाल या विवाद दुनिया मे कहीं किसी भी अदालत में कभी आया है क्या? इसके जवाब में परासरण ने कहा कि वह इस मसले को चेक कराएंगे।
रामलला की ओर से परासरण ने कहा कि ब्रिटिश राज में भी जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस जगह का बंटवारा किया तो मस्जिद की जगह राम जन्मस्थान का मंदिर माना। उन्होंने इस दौरान वाल्मिकी की रामायण का उदाहरण भी दिया। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश राज में जज वैसे तो अच्छे थे, लेकिन वो भी अपने राज के उपनिवेशिक हित के खिलाफ नहीं जाते थे।
इस मामले की सुनवाई कर रही पीठ में न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी शामिल हैं।